
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
अमेरिकी अदालत ने फिर लगाई ट्रम्प प्रशासन की फटकार; हार्वर्ड विश्वविद्यालय को शोध फंडिंग में कटौती से मिली राहत
एक संघीय न्यायाधीश ने ट्रम्प प्रशासन द्वारा हार्वर्ड विश्वविद्यालय की शोध फंडिंग में की गई कटौती को अवैध बताया और उस पर रोक लगा दी। इस फैसले ने विश्वविद्यालय को लगभग $2–2.6 अरब की रिइंस्टेटमेंट में बड़ी जीत दिलाई है।
क्या है मामला?
ट्रम्प प्रशासन ने अप्रैल 2025 में आरोप लगाया कि हार्वर्ड ने अपने परिसर में यहूदी विरोधी घटनाओं को नियंत्रित नहीं किया। इसी आधार पर उसने $2.2–$2.6 अरब की फंडिंग को रोक या रद्द कर दिया। प्रशासन ने यह कटौती विश्वविद्यालय से कुछ नीतिगत और प्रशासनिक बदलाव न करवाए जाने की प्रतिक्रिया के रूप में की थी। हार्वर्ड ने इस कार्रवाई को संविधान के प्रथम संशोधन और प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम के उल्लंघन के रूप में अदालत में चुनौती दी।
अदालत का निर्णय
यूएस डिस्ट्रिक्ट जज एलिसन बरोह्स ने निर्णय देते हुए कहा कि ट्रम्प प्रशासन की कार्रवाई स्पष्ट रूप से अवैध प्रतिशोध थी। उन्होंने यह कहते हुए फंडिंग को बहाल करने का आदेश दिया कि इस निर्णय ने विश्वविद्यालय की शैक्षणिक स्वतंत्रता और विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को गंभीर खतरे में डाला था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि प्रशासन ने यहूदी विरोधी हिंसा को सिर्फ बहाना बनाया, जबकि असल उद्देश्य हार्वर्ड पर राजनीतिक दबाव डालना था।
इसके अलावा, न्यायाधीश ने Title VI सिविल राइट्स अधिनियम, 1964 और प्रशासनिक प्रक्रिया अधिनियम का उल्लंघन भी माना। उनकी नज़र में, सरकार ने बिना उचित जांच, नोटिस या सुनवाई के फंडिंग को बंद कर दिया था, जो कानूनी नहीं है।
प्रशासन का रुख
व्हाइट हाउस ने इस फैसले पर चेतावनी दी है कि इसे कार्यकर्ता ओबामा द्वारा नियुक्त न्यायाधीश द्वारा लिया गया निर्णय बताया जा रहा है, जिसे वे overturn कराने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि “हार्वर्ड को अमेरिकी करदाताओं के पैसे का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है” और इस पर पुनर्विचार किया जाएगा।
विशेषज्ञ और विश्वविद्यालय की प्रतिक्रिया
हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एलन गार्बर ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह निर्णय शैक्षणिक स्वतंत्रता और मुक्त भाषण के बचाव में महत्वपूर्ण था। विश्वविद्यालय की ओर से कहा गया कि यह निर्णय शोध, वैज्ञानिक स्वतंत्रता और अमेरिकी उच्च शिक्षा के मूल्यों की रक्षा करता है।
यह निर्णय ट्रम्प प्रशासन-शैक्षणिक संस्थाओं के बीच चल रही तीव्र टकराव में एक निर्णायक मोड़ साबित हुआ है। अदालत ने यह रेखांकित किया है कि फेडरल फंडिंग पर कार्यपालिका की शक्तियाँ भी संवैधानिक सीमाओं में बँधी हैं, और राजनीति कर विश्वविद्यालयों की स्वतंत्रता को दबा नहीं सकती।