Ad Image
Ad Image
दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराधियों के लिए चलाया साईं हॉक अभियान, 48 घंटे में 800 गिरफ्तार || झारखंड की मंत्री दीपिका पाण्डेय का EC पर हमला, SIR के कारण हारा महागठबंधन || पूर्वी चंपारण के रक्सौल में VIP पार्टी के अनुमंडल प्रमुख की गोली मार हत्या || राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन से शांति समझौते के प्रस्ताव को जल्दी स्वीकार करने का आग्रह किया || ईरान पर अमेरिका की सख्ती, आज नए प्रतिबंधों का किया ऐलान || BJP को 90 पर लीड, JDU को 80 पर लीड, महागठबंधन फेल || नीतीश कुमार CM हैं और आगे भी रहेंगे: जेडीयू की प्रतिक्रिया || NDA को शानदार बढ़त, 198 पर लीड जबकि महागठबंधन को 45 पर लीड || तुर्की : सैन्य विमान दुर्घटना में मृत सभी 20 सैनिकों के शव बरामद || RJD के एम एल सी सुनील सिंह का भड़काऊ बयान, DGP के आदेश पर FIR

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

कर्नाटक ने कामकाजी महिलाओं को 12 दिन मासिक अवकाश दिया

हेल्थ डेस्क, मुस्कान कुमारी |

बेंगलुरु: कर्नाटक सरकार ने कामकाजी महिलाओं के स्वास्थ्य और गरिमा को प्राथमिकता देते हुए एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। राज्य कैबिनेट ने 'कर्नाटक मासिक धर्म अवकाश नीति-2025' को मंजूरी देकर 18 से 52 वर्ष की आयु की हर महिला कर्मचारी को प्रतिमाह एक दिन का पेड मासिक धर्म अवकाश प्रदान करने का फैसला किया है। यह नीति सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों पर लागू होगी, जिससे राज्य देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है जहां मासिक धर्म अवकाश को सभी सेक्टर्स में अनिवार्य किया गया है। इस कदम से लाखों महिलाओं को कार्यस्थल पर बिना किसी झिझक के आराम का अधिकार मिलेगा, जो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देगा बल्कि कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को भी मजबूत करेगा।

नीति के प्रमुख प्रावधान: सरलता और सम्मान पर जोर

नीति के तहत महिलाओं को सालाना 12 दिन का पेड अवकाश मिलेगा, जो हर महीने एक-एक दिन के रूप में उपलब्ध होगा। यह अवकाश उसी महीने में उपयोग करना अनिवार्य है—इसे अगले महीने में कैरी फॉरवर्ड नहीं किया जा सकेगा न ही इसे नकद राशि में परिवर्तित किया जा सकेगा। सबसे बड़ी राहत यह है कि अवकाश लेने के लिए कोई चिकित्सा प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी। सरकारी आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नियोक्ता अवकाश के लिए किसी भी प्रकार का सवाल या दस्तावेज नहीं मांग सकते।

यह नीति राज्य के कारखाना अधिनियम-1948, कर्नाटक दुकान एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान अधिनियम-1961, बागान मजदूर अधिनियम-1951, बीड़ी एवं सिगार मजदूर अधिनियम-1966 तथा मोटर परिवहन मजदूर अधिनियम-1961 के तहत पंजीकृत सभी उद्योगों और प्रतिष्ठानों पर लागू होगी। स्थायी, संविदा तथा आउटसोर्स्ड महिलाओं—चाहे वे आईटी फर्मों में हों, गारमेंट यूनिट्स में काम करें या बहुराष्ट्रीय कंपनियों में—सभी को इसका लाभ मिलेगा। श्रम विभाग के अनुसार, यह नीति महिलाओं के स्वास्थ्य, दक्षता, प्रदर्शन और मानसिक कल्याण को बेहतर बनाने के उद्देश्य से लाई गई है।

मुख्यमंत्री सिद्धारामैया की अगुवाई वाली कैबिनेट ने 9 अक्टूबर 2025 को इस नीति को मंजूरी दी थी, जबकि 12 नवंबर को आधिकारिक अधिसूचना जारी की गई। श्रम मंत्री संतोष लाड ने इसे 'महिलाओं के कल्याण के लिए प्रगतिशील कदम' बताते हुए कहा, "यह नीति महिलाओं को कार्यस्थल पर उनकी शारीरिक वास्तविकताओं का सम्मान दिलाएगी। हम चाहते हैं कि महिलाएं बिना किसी दबाव के काम कर सकें।" नीति का मसौदा 18 अक्टूबर को श्रम विभाग की वेबसाइट पर सार्वजनिक किया गया था, जहां 75 टिप्पणियों में से 56 ने इसका समर्थन किया था।

महिलाओं के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव: दर्द को छिपाने की मजबूरी खत्म

मासिक धर्म के दौरान होने वाले शारीरिक दर्द, थकान और असुविधा को अब कार्यस्थल पर नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति महिलाओं की उत्पादकता बढ़ाएगी, क्योंकि जब तक वे स्वस्थ और आरामदायक नहीं होंगी, तब तक पूर्ण क्षमता से काम नहीं कर पाएंगी। राज्य में औपचारिक क्षेत्र में कार्यरत लगभग 3.5 से 4 लाख महिलाएं सीधे लाभान्वित होंगी, जबकि अनौपचारिक क्षेत्र की करीब 60 लाख महिलाओं के लिए भी यह एक मिसाल बनेगी।

गारमेंट इंडस्ट्री और आईटी सेक्टर जैसी महिला-प्रधान क्षेत्रों में यह नीति विशेष रूप से उपयोगी साबित होगी। एक सर्वे के अनुसार, भारत में 70 प्रतिशत से अधिक कामकाजी महिलाएं मासिक धर्म के दौरान दर्द के बावजूद काम पर जाती हैं, जो लंबे समय में स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देता है। कर्नाटक की यह पहल स्पेन, जापान, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों की नीतियों से प्रेरित है, जहां मासिक धर्म अवकाश लंबे समय से मान्यता प्राप्त है।

अन्य राज्यों के लिए मिसाल: समावेशी कार्य संस्कृति की दिशा में कदम

कर्नाटक का यह फैसला राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ चुका है। बिहार और ओडिशा में सरकारी कर्मचारियों के लिए सीमित अवकाश है, जबकि केरल ने विश्वविद्यालयों और आईटीआई में इसे लागू किया है। लेकिन कर्नाटक पहला राज्य है जिसने निजी क्षेत्र को भी शामिल किया। ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की कर्नाटक इकाई ने स्वागत करते हुए कहा, "यह लाखों महिलाओं को सशक्त बनाएगा। हम सरकार से विधायी कार्रवाई की मांग करते हैं ताकि इसे तुरंत लागू किया जा सके।"

हालांकि, आलोचक चिंता जता रहे हैं कि इससे लिंग भेदभाव बढ़ सकता है, लेकिन समर्थक इसे आवश्यक स्वास्थ्य अधिकार बता रहे हैं। विशेषज्ञों का सुझाव है कि गिग इकॉनमी और घरेलू कामगार महिलाओं को भी शामिल करने के लिए नीति का विस्तार हो। कर्नाटक सरकार ने इसे महिलाओं की शारीरिक विविधता को सम्मान देने का माध्यम बताया है, जो सच्ची समावेशिता की कुंजी है।

यह नीति न केवल छुट्टियों का प्रावधान है, बल्कि कार्यस्थल पर महिलाओं के सम्मान और समानता की नई परिभाषा गढ़ रही है। दर्द को अब छिपाने की जरूरत नहीं—बस एक दिन का आराम, और फिर पूरी ताकत से काम पर लौटना। राज्य सरकार का यह प्रयास अन्य राज्यों के लिए प्रेरणा स्रोत बनेगा, ताकि पूरे देश में महिलाएं बिना किसी बाधा के आगे बढ़ सकें।