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छठ पर पीरियड रोकने की गोलियों की होड़, सेहत पर संकट

स्पेशल रिपोर्ट, मुस्कान कुमारी | 

पटना: छठ महापर्व आज से शुरू हो रहा है और लाखों महिलाएं व्रत-उपवास की तैयारी में जुटी हैं। लेकिन इस उत्साह के बीच एक खतरनाक ट्रेंड उभर रहा है। राजधानी के मेडिकल स्टोरों में मासिक धर्म रोकने वाली दवाओं की मांग अचानक दोगुनी हो गई है। महिलाएं व्रत में 'अशुद्धि' की आशंका से बचने के लिए बिना डॉक्टर की सलाह के ये गोलियां निगल रही हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञों ने सख्त चेतावनी दी है कि ऐसी सेल्फ-मेडिकेशन से हार्मोनल डिसबैलेंस, लिवर डैमेज और यहां तक कि जानलेवा कॉम्प्लिकेशंस हो सकते हैं।

पिछले हफ्ते से पटना के प्रमुख इलाकों जैसे कंकड़बाग, पटेल नगर और गांधी मैदान के आसपास के दवा दुकानों में 'पीरियड डिले' गोलियों की बिक्री में भारी उछाल आया है। एक अनाम दुकानदार ने बताया, "छठ से पहले रोज 15-20 महिलाएं ऐसी दवाएं मांगती हैं। पहले महीने भर में मुश्किल से 6-7 बिकती थीं। ज्यादातर बिना पर्ची के ले जाती हैं।" ये दवाएं मुख्यतः प्रोजेस्टेरॉन या एस्ट्रोजन जैसे हार्मोन्स पर आधारित होती हैं, जो डॉक्टरी निगरानी के बिना खतरनाक साबित हो सकती हैं।

खाने से क्या-क्या दिक्कतें: हार्मोन्स का खेल बिगाड़ सकती हैं ये गोलियां

डॉक्टरों के मुताबिक, इन दवाओं को खाने से शरीर में कई गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। सबसे पहले हार्मोनल असंतुलन होता है, जो माहवारी को अनियमित कर देता है। महीनों तक पीरियड्स की टाइमिंग बिगड़ सकती है, जिससे तनाव और थकान बढ़ती है। वजन अचानक बढ़ना, चेहरे पर मुंहासे या त्वचा की अन्य दिक्कतें आम हैं। डॉ. संगम झा, एम्स पटना के सीनियर गायनेकोलॉजिस्ट, ने चेताया, "ये गोलियां लिवर पर हमला करती हैं। अगर पहले से लिवर की कोई समस्या है, तो टॉक्सिसिटी बढ़ सकती है, जो लिवर फेलियर तक ले जा सकती है।" 

और भी खतरे हैं। कुछ महिलाओं को सिरदर्द, चक्कर आना, जी मिचलाना या उल्टी जैसी तत्काल दिक्कतें होती हैं। लंबे समय में गर्भधारण की क्षमता प्रभावित हो सकती है, क्योंकि हार्मोन्स का बैलेंस बिगड़ने से ओव्यूलेशन प्रक्रिया गड़बड़ा जाती है। ब्लड क्लॉटिंग का रिस्क बढ़ता है, जो डीप वेन थ्रोम्बोसिस (DVT) जैसी जानलेवा स्थिति पैदा कर सकता है। एक केस में तो लड़की की मौत हो गई थी, क्योंकि दवा से ब्लड क्लॉट बन गया। डॉक्टर कहते हैं, "ये दवाएं प्राकृतिक साइकल को जबरन रोकती हैं, जो शरीर के लिए शॉक जैसा है।"

आस्था बनाम सेहत: क्यों रिस्क ले रही हैं महिलाएं?

छठ पर्व में महिलाएं 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं, और पीरियड्स को 'अशुद्ध' मानकर कई इसे बाधा समझती हैं। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि आस्था महत्वपूर्ण है, मगर जान जोखिम में डालना गलत। "यदि जरूरी हो, तो डॉक्टर से पहले ही प्लान करें। हर बॉडी अलग रिएक्ट करती है," डॉ. झा ने कहा। पटना के अन्य अस्पतालों जैसे पीएमसीएच और आईजीआईएमएस के विशेषज्ञों ने भी यही सलाह दी। वे बताते हैं कि त्योहारों के समय भावनाएं हावी हो जाती हैं, लेकिन सेहत का ख्याल रखना जरूरी है।

मेडिकल स्टोरों में ये दवाएं आसानी से मिल रही हैं। फार्मासिस्ट एसोसिएशन के एक सदस्य ने स्वीकार किया कि नियम तो पर्ची का है, लेकिन सीजन में दबाव के चलते कई बार अनदेखा हो जाता है। महिलाओं में जागरूकता की कमी है। कई सोचती हैं कि एक-दो गोली से क्या होगा, लेकिन ये छोटी गलती बड़ी मुसीबत बन सकती है।

वैकल्पिक तरीके: योग और नैचुरल रेमेडीज पर दें जोर

डॉक्टर सुझाते हैं कि दवाओं की बजाय योग, ध्यान या हर्बल तरीकों से साइकल मैनेज करें। लेकिन किसी भी चीज से पहले कंसल्टेशन जरूरी। इस साल छठ 25 अक्टूबर से शुरू हो रहा है, और लाखों महिलाएं व्रत रखेंगी। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को भी जागरूकता अभियान चलाना चाहिए।