
स्पेशल रिपोर्ट, ऋषि राज |
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की बदली रणनीति: सुरक्षित ठिकानों से हटकर जंगलों और पहाड़ी इलाकों में भूमिगत बंकर बनाने की शुरुआत
जम्मू-कश्मीर में आतंकी संगठनों की गतिविधियों ने एक नया मोड़ ले लिया है। लंबे समय से सुरक्षा एजेंसियों द्वारा सुरक्षित ठिकानों, घरों और शहरों में पनाह लेने की रणनीति अपनाई जाती रही है, लेकिन अब आतंकवादी संगठनों ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ी इलाकों में भूमिगत बंकर बनाना शुरू कर दिया है। यह बदलाव न केवल सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, बल्कि यह दर्शाता है कि आतंकियों ने आधुनिक युद्ध की तकनीकों और भूगोल का गहराई से अध्ययन कर अपनी गतिविधियों को छिपाने और लंबे समय तक टिके रहने की तैयारी कर ली है।
रणनीति में बदलाव की वजह
आतंकवादी संगठनों की पुरानी रणनीति में स्थानीय घरों, किराए के ठिकानों और भीड़भाड़ वाले इलाकों का इस्तेमाल मुख्य रूप से शरण लेने और स्थानीय समर्थन जुटाने के लिए होता था। लेकिन हाल के वर्षों में सुरक्षा बलों की लगातार छापेमारी, ड्रोन निगरानी, गुप्त सूचना नेटवर्क और स्थानीय सहयोगियों की मदद से कई आतंकी नेटवर्क ध्वस्त किए जा चुके हैं। ऐसे में आतंकियों ने अब अपनी पनाहगाहों को बदलने का निर्णय लिया है। जंगलों में बने बंकर न केवल प्राकृतिक आवरण प्रदान करते हैं, बल्कि दूरस्थ होने के कारण वहां पहुंचना भी कठिन होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में भूमिगत ठिकाने बनाने से विस्फोटक, हथियार, भोजन और संचार उपकरणों को छिपाकर लंबे समय तक युद्ध की तैयारी करना संभव हो जाता है।
भूमिगत बंकरों की संरचना और खतरे
प्रारंभिक जानकारी के अनुसार, आतंकवादी बंकरों को पत्थरों, मिट्टी और पेड़ों से छिपाकर बनाते हैं। इन बंकरों में प्रवेश केवल एक संकीर्ण मार्ग से होता है, जिससे अंदर की गतिविधियों का पता लगाना बेहद कठिन होता है। कई जगहों पर इन्हें प्राकृतिक गुफाओं का रूप दिया गया है ताकि सुरक्षा बलों की नजर से बचा जा सके। इनमें हथियार भंडारण, भोजन, चिकित्सा उपकरण और संचार साधनों को छिपाकर रखा जा रहा है। इन बंकरों में प्रशिक्षित आतंकवादी लंबे समय तक बिना बाहरी मदद के रह सकते हैं। इससे सुरक्षा बलों के लिए खोज अभियान और कठिन हो जाता है क्योंकि किसी भी संदिग्ध हलचल का पता लगाना मुश्किल हो जाता है।
सुरक्षा एजेंसियों के लिए नई चुनौतियाँ
जम्मू-कश्मीर में इन बंकरों की मौजूदगी सुरक्षा एजेंसियों के लिए कई स्तरों पर चुनौती पैदा कर रही है। पहला, इन स्थानों का पता लगाना कठिन है। दूसरा, दुर्गम इलाकों में ऑपरेशन चलाना जवानों के लिए जोखिम भरा होता है। तीसरा, बंकरों के भीतर से हमले कर आतंकवादी बिना पकड़े भाग सकते हैं। चौथा, स्थानीय समर्थन नेटवर्क के बिना आतंकियों के लिए सामान लाना कठिन हो सकता था, लेकिन अब वे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर लंबे समय तक टिक सकते हैं।
इसके अलावा, बंकरों की खोज में समय लगने से आतंकवादी नई योजना बनाने का अवसर पा रहे हैं। यह बदलाव इस बात का संकेत है कि आतंकी अब पारंपरिक मुकाबले की जगह गुरिल्ला शैली की रणनीति अपनाने लगे हैं। वे सीधे मुठभेड़ से बचते हुए छिपकर अपने अभियान को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
स्थानीय लोगों पर प्रभाव
जम्मू-कश्मीर के उन इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों के लिए यह स्थिति भय का कारण बन गई है। जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में आतंकियों की मौजूदगी से आम नागरिकों की आवाजाही सीमित हो गई है। खेती-बाड़ी, व्यापार और दैनिक जीवन प्रभावित हो रहा है। कई बार आतंकियों के छिपे होने की आशंका के चलते सुरक्षा बलों को तलाशी अभियान चलाना पड़ता है, जिससे स्थानीय निवासियों का सामान्य जीवन बाधित होता है। साथ ही, आतंकियों द्वारा स्थानीय युवाओं को बहकाकर अपने नेटवर्क में शामिल करने की कोशिशें भी तेज हो गई हैं।
आगे की राह
सुरक्षा बलों को अब नई रणनीति अपनानी होगी। जंगलों और पहाड़ों में बंकरों की खोज के लिए आधुनिक तकनीकों जैसे थर्मल इमेजिंग, ड्रोन सर्विलांस, उपग्रह निगरानी और गुप्तचर नेटवर्क का विस्तार आवश्यक है। साथ ही, स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाना होगा ताकि वे आतंकियों को पनाह देने से बचें। सुरक्षा बलों को प्राकृतिक संसाधनों की मदद से बंकरों का पता लगाने के लिए विशेष प्रशिक्षण भी देना होगा।
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी संगठनों द्वारा अपनाई गई नई रणनीति सुरक्षा बलों के लिए एक बड़ी चुनौती है। जंगलों और पहाड़ी इलाकों में भूमिगत बंकर बनाकर आतंकियों ने आधुनिक युद्ध की शैली अपनाई है, जिससे वे आसानी से पकड़े नहीं जा सकते। यह बदलाव आतंकवाद की बदलती रणनीति का प्रतीक है और इससे निपटने के लिए सुरक्षा एजेंसियों को अपनी तकनीक और मानव नेटवर्क को और मजबूत करना होगा। साथ ही, स्थानीय लोगों की सहभागिता और विश्वास बनाए रखना भी आतंकवाद के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार होगा।