
एंटरटेनमेंट डेस्क, मुस्कान कुमारी |
"जुग्नुमा द फेबल: मनोज बाजपेयी का करियर-डिफाइनिंग जादुई सफ़र, जहां हिमालय, मिथक और सत्ता का आईना टकराते हैं"
मुंबई: मनोज बाजपेयी की नई फिल्म 'जुग्नुमा द फेबल' रिलीज के साथ ही दर्शकों को एक ऐसी दुनिया में ले जा रही है, जहां जादुई यथार्थवाद न सिर्फ सजावट का माध्यम है, बल्कि सत्ता को आईना दिखाने का हथियार भी। निर्देशक राम रेड्डी की यह दूसरी फीचर फिल्म, जो बर्लिन इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में एनकाउंटर्स सेक्शन में चुनी गई थी, अब थिएटर्स में धूम मचा रही है। फिल्म की ताकत मनोज बाजपेयी के करियर के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शनों में से एक में निहित है, जहां वे एक सेब के बागान मालिक देव की भूमिका में डूब जाते हैं। 1989 के हिमालयी इलाके में सेट यह कहानी रहस्यमयी जंगल की आग, परिवार के राज और पारिस्थितिक संकट को जादुई तत्वों से जोड़ती है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर कर देती है।
फिल्म की शुरुआत एक लंबे अनब्रोकन शॉट से होती है, जहां एक साधारण सुबह अचानक असाधारण हो जाती है। देव (मनोज बाजपेयी) अपने बागान पर कब्जा जमाए हुए हैं, जो कभी ब्रिटिश मालिकों का था। लेकिन एक पेड़ के रहस्यमयी जलने से सब कुछ बदल जाता है। राम रेड्डी ने जादुई यथार्थवाद को इतनी बारीकी से बुना है कि यह गेब्रियल गार्सिया मार्केज या एम. नाइट श्यामलान की याद दिलाता है, लेकिन हिमालय की अपनी लीला रचता है। फिल्म 16 एमएम सेलुलॉइड पर शूट की गई है, जो ग्रेनी टेक्स्चर के साथ जादू और यथार्थ को जीवंत बनाती है। मनोज बाजपेयी की चुप्पी भरी एक्टिंग और दीपक डोब्रियाल की नरेशन ने इसे और प्रभावशाली बना दिया है।
जादुई यथार्थवाद का जादू: सत्ता और सत्य का आईना
राम रेड्डी का जादुई यथार्थवाद साहित्य की परंपरा का अनुसरण करता है, जहां अतियथार्थ सत्ता को चुनौती देता है। फिल्म में जुग्नु (जुगनू) एक leitmotif की तरह चमकते हैं, जो सामान्य जीवन को जादुई बनाते हैं। देव के पंख बांधने का दृश्य, जो मानव और मिथक के बीच का है, दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यह न सिर्फ उपनिवेशवाद और विस्थापन की रूपक है, बल्कि पर्यावरणीय क्षय और मानवीय अहंकार की भी आलोचना। निर्देशक ने कहा, "मैंने जादू को ओवरबोर्ड नहीं होने दिया, बल्कि यथार्थ के साथ स्लाइडर की तरह इस्तेमाल किया।" फिल्म का यह तत्व दर्शकों को अपनी दुनिया पर सवाल उठाने को मजबूर करता है, और अन्य दुनिया की संभावनाओं पर विचार करने को प्रेरित करता है।
फिल्म में देव का किरदार मनोज बाजपेयी के लिए परफेक्ट है। वे चुप्पी से इतना कुछ कह जाते हैं कि यह 'शूल' या 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' के बाद उनके टॉप परफॉर्मेंस में शुमार हो गया। देव के चेहरे पर डर और हताशा का भाव, जब आग उसके साम्राज्य को लीलने लगती है, बाजपेयी की बारीक एक्टिंग का कमाल है। दीपक डोब्रियाल मोहन के रूप में, जो बागान का मैनेजर और नैरेटर है, बिल्कुल फिट बैठते हैं - जमीन से जुड़े, विश्वसनीय और भावुक। प्रियंका बोस पत्नी की भूमिका में हॉन्टिंग काउंटरपॉइंट लाती हैं, जबकि तिलोत्तमा शोमे रंगीन साड़ियों में हल्कापन जोड़ती हैं। हिरल सिद्धू, अवान पूकोट और रवि बिष्ट जैसे कलाकार भी कहानी को समृद्ध करते हैं। आधे कास्ट लोकल विलेजर्स से लिए गए हैं, जो ऑथेंटिसिटी बढ़ाते हैं।
हिमालय की गोद में बुनी कहानी: रहस्य, सस्पेंस और परिवार का ड्रामा
'जुग्नुमा' 1989 में सेट है, जहां देव एक सम्मानित सेब एस्टेट ओनर है। लेकिन जंगल की आग उसके जीवन को उलट-पुलट कर देती है। राम रेड्डी ने असली जंगल की आग बुझाने के अनुभव से प्रेरित होकर स्क्रिप्ट लिखी, जो 9 साल में 36 ड्राफ्ट्स से गुजरी। फिल्म में 500 से ज्यादा वीएफएक्स शॉट्स हैं, लेकिन इतने सूक्ष्म कि यथार्थ बरकरार रहता है। एक पहाड़ी पर काला पेंट लगाकर पोस्ट-फायर लैंडस्केप बनाया गया, और ज्यादातर आग लाइटिंग और स्मोक से क्रिएट की गई। मनोज बाजपेयी ने 16 किलो के विंग सूट में असली जंप्स किए, जिसके लिए बड़ा रैंप बनाया गया।
फिल्म की धीमी गति मेडिटेटिव है, जो सस्पेंस और जादू को ब्लेंड करती है। यह फेयरी टेल की तरह शुरू होती है - "एक समय की बात है" - और धीरे-धीरे पारिवारिक राज खोलती है। देव की पत्नी का गाना तनाव को बढ़ाता है, जबकि नोमैड्स जो बोलते नहीं लेकिन शक्ति रखते हैं, जादुई दुनिया जोड़ते हैं। राम रेड्डी का विजन इंडियन सिनेमा में नया है, जहां जादुई यथार्थवाद कभी इतना अलग तरीके से नहीं दिखाया गया। फिल्म पर्यावरण और सामाजिक डिवाइड पर टिप्पणी करती है, जहां आग न सिर्फ शाब्दिक है बल्कि प्रतीकात्मक भी।
फिल्म ने पहले ही कई अवॉर्ड्स जीते हैं। बर्लिन फेस्टिवल में एनकाउंटर्स कॉम्पिटिशन में जगह मिली, जो पिछले 30 सालों में सिर्फ एक अन्य भारतीय फिल्म को मिली। लीड्स इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट फिल्म अवॉर्ड, और मामी मुंबई फिल्म फेस्टिवल में स्पेशल जूरी प्राइज। सिनेमेटोग्राफर सुनील बोर्खर की शॉट्स, जो शैडोज और डार्कनेस से खेलती हैं, फिल्म को खूबसूरत बनाती हैं। राम रेड्डी ने कहा, "यह सस्पेंस, मिस्ट्री और जादू का ब्लेंड है, जो रियलिज्म को हाइटन करता है।"
निर्देशक का विजन: सिनेमा को थीम पार्क जैसा अनुभव
राम रेड्डी के लिए सिनेमा स्टोरीटेलिंग से ज्यादा है - यह दर्शकों को नई दुनिया में ले जाना है। उनकी पहली फिल्म 'थिथी' एक कॉमेडी थी, लेकिन 'जुग्नुमा' में उन्होंने सस्पेंस और जादू चुना। निर्देशक ने जादुई तत्वों को संयमित रखा, ताकि फैंटसी और रियलिज्म सिललेसली जुड़ें। फिल्म का नाम जुग्नु से प्रेरित है, जो स्क्रीन पर चमकते हैं और कल्पना की शक्ति दिखाते हैं। मनोज बाजपेयी ने कहा कि यह रोल उनके लिए चैलेंजिंग था, लेकिन हिमालय की खूबसूरती और जादू ने इसे यादगार बना दिया।
फिल्म थिएटर्स में रिलीज हो चुकी है, और सोशल मीडिया पर हाइप क्रिएट हो रहा है। दर्शक इसे मेडिटेटिव सिनेमा के लिए पसंद कर रहे हैं, हालांकि कुछ को इसकी धीमी पेस पसंद न आए। लेकिन जो एम्बिगुइटी और सिम्बॉलिज्म पसंद करते हैं, उनके लिए यह स्ट्रेंज चार्म वाली फिल्म है। राम रेड्डी की यह कोशिश भारतीय सिनेमा को नया आयाम दे रही है, जहां फेबल सिर्फ जादू नहीं, बल्कि रोजमर्रा की सच्चाइयों का खुलासा है।