
स्टेट डेस्क, प्रीति पायल |
झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के चाईबासा में बुधवार को एक ऐतिहासिक घटना घटी जब दस माओवादी उग्रवादियों ने हथियार छोड़कर आत्मसमर्पण का निर्णय लिया। राज्य पुलिस प्रमुख अनुराग गुप्ता की उपस्थिति में चाईबासा पुलिस कार्यालय में संपन्न यह समारोह झारखंड की 'सरेंडर एवं रिहैबिलिटेशन पॉलिसी' की उपलब्धि को दर्शाता है।
सभी उग्रवादी प्रतिबंधित कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (माओवादी) के सदस्य थे और कोल्हान तथा सारंडा के वनाच्छादित इलाकों में सक्रिय रहे हैं। इस समूह में चार महिला कार्यकर्ता भी शामिल हैं, जो मिसिर बेसरा उर्फ सागर (एक करोड़ रुपए इनामी) और पतिराम मांझी उर्फ अनल के गिरोह से संबंधित थे।
समर्पित उग्रवादियों में रांडो बोईपाई (कांति बोईपाई), गरदी कोड़ा, जॉन पूर्ति, निरसो सिद्दू, कैरी कायम, सावित्री गोप, घोनोर देवगम, गौमेया कोड़ा, केरा कोड़ा और प्रदीप सिंह शामिल हैं। इन्होंने वर्षों तक विभिन्न हिंसक कारनामों में भागीदारी की है।
पुलिस महानिदेशक ने बताया कि विगत तीन वर्षों में केवल पश्चिम सिंहभूम और चाईबासा क्षेत्र में 26 उग्रवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं। 2025 में अब तक 24 माओवादी मुठभेड़ों में मारे गए हैं, 197 की गिरफ्तारी हुई है, और 10 से अधिक ने आत्मसमर्पण किया है।
पिछले तीन सालों में पश्चिम सिंहभूम में 9,631 सुरक्षा अभियान संचालित किए गए, जिसमें 175 नक्सलियों को पकड़ा गया। वर्तमान में 58 इनामी उग्रवादी बचे हैं, जिन पर कुल 5.46 करोड़ रुपए का पुरस्कार घोषित है।
राज्य सरकार का लक्ष्य मार्च 2026 तक झारखंड को पूर्णतः नक्सल-मुक्त बनाना है। डीजीपी ने स्पष्ट किया कि जो समर्पण करेंगे उन्हें नवजीवन मिलेगा, शेष के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई जारी रहेगी। यह घटना राज्य के 'रेड कॉरिडोर' के अंतिम चरण का प्रतीक है, जहां विकास कार्यों को तेज़ी दी जा रही है।