
स्टेट डेस्क, प्रीति पायल |
लद्दाख के मशहूर पर्यावरणविद् और शिक्षाविद् सोनम वांगचुक की हालिया गिरफ्तारी ने राष्ट्रीय राजनीति में तूफान मचा दिया है। आइस स्तूप के नवाचार के लिए प्रसिद्ध वांगचुक को 26 सितंबर को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के अंतर्गत हिरासत में लिया गया।
वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के लिए राज्य का दर्जा, छठी अनुसूची में शामिलीकरण और स्थानीय युवाओं को रोजगार की मांग उठा रहे हैं। 2019 में धारा 370 के निरसन के बाद उनके आंदोलन और भी तीव्र हो गए थे। पुलिस का आरोप है कि उन्होंने नेपाल की घटनाओं के बाद लेह में युवाओं को भड़काया, जिससे आगजनी, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान और चार लोगों की मृत्यु हुई।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पर वांगचुक का समर्थन करते हुए लिखा कि "उम्मीद की एक और किरण सलाखों के पीछे" है। उन्होंने इसे जल-जंगल-जमीन और संस्कृति की लड़ाई लड़ने वाली आवाजों को दबाने की रणनीति बताया। सोरेन ने वांगचुक के गांधीवादी विरोध प्रदर्शन और पर्यावरण संरक्षण के कार्यों की प्रशंसा की।
भाजपा के वरिष्ठ नेता और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने सोरेन के बयान को राष्ट्रविरोधी करार दिया। उन्होंने वांगचुक का एक पुराना वीडियो साझा किया, जिसमें वे कथित रूप से चीनी सैनिकों को रास्ता दिखाने की बात कह रहे थे। मरांडी ने 2007 के एक मामले का भी हवाला दिया, जब लेह के मजिस्ट्रेट ने वांगचुक पर विदेशी धन के दुरुपयोग का आरोप लगाया था।
झामुमो के केंद्रीय महासचिव विनोद कुमार पांडेय ने मरांडी के आरोपों को झूठी बयानबाजी बताया। उन्होंने कहा कि किसी नागरिक की आवाज का समर्थन करना लोकतांत्रिक जिम्मेदारी है। पांडेय ने वांगचुक की शिक्षा क्रांति और हिमालय संरक्षण के कार्यों की सराहना करते हुए उनकी गिरफ्तारी को लोकतंत्र पर हमला बताया।
यह मुद्दा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर तेजी से वायरल हो रहा है। समर्थक वांगचुक को गांधीवादी कार्यकर्ता बता रहे हैं, जबकि विरोधी उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मान रहे हैं।
यह विवाद झारखंड की चुनावी राजनीति और केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित कर सकता है। भाजपा घुसपैठ और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाए हुए है, जबकि झामुमो आदिवासी अधिकारों पर फोकस कर रही है। यह मामला लोकतंत्र, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन पर व्यापक बहस शुरू कर सकता है।