
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
ट्रंप को दोहरा झटका: अमेरिकी अदालत ने टैरिफ को गैरकानूनी बताया और फास्ट-ट्रैक डिपोर्टेशन पर लगाई रोक
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को एक ही दिन में दो बड़े झटके लगे हैं। एक तरफ संघीय अपीलीय अदालत ने उनके द्वारा लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ को असंवैधानिक करार दिया, वहीं दूसरी ओर जिला अदालत ने उनके फास्ट-ट्रैक डिपोर्टेशन आदेश को अप्रवासियों के अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए रोक दिया है। दोनों फैसले ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति और उनके कार्यकाल में लिए गए विवादास्पद फैसलों पर सवाल खड़े करते हैं।
टैरिफ पर अदालत की फटकार
ट्रंप प्रशासन नेभारत, ब्राज़ील, चीन, यूरोप समेत कई देशों पर 10% से लेकर 50% तक टैरिफ लगाई,यह कदम घरेलू उद्योगों को बचाने और प्रोत्साहित करने के लिए उठाया गया था। लेकिन इसके चलते वैश्विक व्यापार में तनाव बढ़ा और कई देशों ने अमेरिका पर प्रतिशोधात्मक शुल्क लगाया।
वॉशिंगटन स्थित संघीय अपीलीय अदालत ने स्पष्ट किया कि अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन आर्थिक शक्तियां अधिनियम (IEEPA) राष्ट्रपति को सीमित शक्तियां देता है, लेकिन टैरिफ लगाने का अधिकार कांग्रेस के पास है। अदालत ने कहा कि ट्रंप ने अपनी संवैधानिक शक्तियों से अधिक जाकर निर्णय लिया और “आपातकालीन शक्तियों” का गलत इस्तेमाल किया।
11 जजों की बेंच में से 7 ने टैरिफ को असंवैधानिक करार दिया जबकि 4 ने असहमति जताई। अदालत ने यह भी दोहराया कि कांग्रेस ने IEEPA बनाते समय जानबूझकर “टैक्स” और “टैरिफ” शब्दों को शामिल नहीं किया ताकि राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का दुरुपयोग न कर सके।
इससे पहले मई 2025 में अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार न्यायालय ने भी टैरिफ को अवैध बताया था। हालांकि, स्टील, एल्युमीनियम और ऑटोमोबाइल से जुड़े कुछ शुल्क अलग कानूनों के तहत लागू रहेंगे।
अदालत ने अपने आदेश को 14 अक्टूबर से लागू करने का निर्देश दिया है। तब तक ये टैरिफ प्रभावी रहेंगे। माना जा रहा है कि बाइडेन प्रशासन इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा।
भारत और वैश्विक असर
यह फैसला वैश्विक व्यापार के लिए बड़ी राहत है। भारत जैसे देशों के स्टील और एल्युमीनियम उद्योग को ट्रंप के टैरिफ से भारी नुकसान हुआ, टैरिफ हटने से भारत का निर्यात बढ़ सकता है और वैश्विक व्यापार संतुलन में सुधार आ सकता है।
ट्रंप ने अपने ट्रूथ सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “अगर ये टैरिफ हटते हैं तो यह अमेरिका के लिए आपदा होगी। सभी टैरिफ अभी प्रभावी हैं और रहेंगे।” वहीं व्हाइट हाउस प्रवक्ता कुश देसाई ने कहा कि राष्ट्रपति ने वैध शक्तियों का इस्तेमाल किया और सरकार को “अंतिम जीत” की उम्मीद है।
फास्ट-ट्रैक डिपोर्टेशन पर भी झटका
ट्रंप प्रशासन को दूसरी बड़ी चोट डिपोर्टेशन नीति पर लगी है। जनवरी 2025 से लागू की गई इस नीति के तहत, जिन अप्रवासियों के पास अमेरिकी नागरिकता या 2 साल का निवास प्रमाण नहीं था, उन्हें कहीं भी गिरफ्तार कर तुरंत निर्वासित किया जा सकता था।
लेकिन वॉशिंगटन डीसी की जिला जज जिया कॉब ने इसे अप्रवासियों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बताया। उन्होंने कहा कि “पांचवें संशोधन के तहत अप्रवासियों को भी अधिकार मिले हैं। केवल निर्वासन पर फोकस करना उनकी स्वतंत्रता का गहरा हनन है।”
जज ने यह भी कहा कि पहले से ही अप्रवासियों की पहचान कर डिपोर्टेशन किया जाता था, लेकिन जनवरी के बाद यह प्रक्रिया बहुत तेज़ और कठोर हो गई, जिससे बुनियादी अधिकार प्रभावित हुए।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और आगे की राह
ट्रंप प्रशासन ने जिला अदालत से इस फैसले पर रोक लगाने की अपील की, लेकिन जज ने इसे ठुकरा दिया। अब प्रशासन सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहा है।
गौरतलब है कि यह फैसला ऐसे समय आया है जब अमेरिका में इमिग्रेशन को लेकर बहस तेज़ है। ट्रंप की कड़ी नीतियां एक तरफ घरेलू समर्थकों को आकर्षित करती हैं, वहीं दूसरी तरफ मानवाधिकार और कानूनी विशेषज्ञ उन्हें कठोर और असंवैधानिक बताते हैं।
डोनाल्ड ट्रंप को एक ही दिन में दो बड़े न्यायिक झटके लगे हैं। टैरिफ को गैरकानूनी करार दिए जाने से उनकी आर्थिक नीतियों की नींव हिलती दिखाई दे रही है, वहीं फास्ट-ट्रैक डिपोर्टेशन पर रोक उनके कठोर इमिग्रेशन रुख को कमजोर करती है। अब सभी की नजरें सुप्रीम कोर्ट पर होंगी, जहां इन दोनों फैसलों को चुनौती दी जा सकती है।
इन घटनाओं ने न केवल अमेरिकी राजनीति में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी हलचल मचा दी है। भारत समेत कई देशों को उम्मीद है कि इन फैसलों से व्यापार और अप्रवास नीतियों में संतुलन आएगा।