
नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |
देश के बड़े शहरों में रिश्तों का चेहरा बदल रहा है। जहां पहले रिश्ते भरोसे और लगाव पर टिके होते थे, वहीं अब उनमें आर्थिक गणित शामिल हो गया है। महानगरों में तेजी से फैलती ‘होबोसेक्शुअलिटी’ की प्रवृत्ति इसका उदाहरण है। यहां लोग पार्टनर चुनने में इमोशनल कनेक्शन से ज्यादा रहने की जगह और खर्च बचाने पर ध्यान देने लगे हैं। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई जैसे शहरों में यह चलन युवाओं के बीच तेजी से पांव पसार रहा है। यह महज डेटिंग फैशन नहीं, बल्कि शहरी जीवन की महंगाई और आर्थिक दबाव का आईना है, जिसने रिश्तों को लेन-देन का रूप दे दिया है।
होबोसेक्शुअलिटी: इमोशन या इकोनॉमिक डील?
‘होबोसेक्शुअलिटी’ शब्द ‘होबो’ (बेघर/घुमक्कड़) और ‘सेक्शुअलिटी’ (यौन रुझान) के मेल से बना है। इसका अर्थ है— ऐसा रिश्ता जहां मकसद प्यार से ज्यादा घर, खाना या खर्चों में राहत पाना हो। यह ‘गोल्ड-डिगिंग’ से अलग है, क्योंकि यहां भव्य जीवनशैली नहीं बल्कि जीविका चलाना प्राथमिकता होती है।
उदाहरण के लिए, मुंबई की 27 वर्षीय IT इंजीनियर रिया (बदला हुआ नाम) बताती हैं— “मेरे पार्टनर ने कुछ ही हफ्तों में मेरे साथ रहना शुरू कर दिया, कहकर कि उसका रूममेट निकल गया है। शुरुआत में मैंने सोचा यह अस्थायी होगा, लेकिन छह महीने तक उसने किराए में एक रुपया नहीं दिया। ब्रेकअप के बाद भी घर खाली कराने में तीन महीने लगे।”
ऐसे किस्से अब आम हो रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह प्रवृत्ति उन शहरों में ज्यादा दिख रही है, जहां किराया और जीवन-यापन की लागत लगातार बढ़ रही है।
आर्थिक दबाव और अकेलेपन से जन्मा ट्रेंड
2025 में देश के बड़े शहरों में मकान किराया और प्रॉपर्टी रेट 8-14% तक बढ़े हैं। मुंबई में 1BHK के लिए 30 से 50 हजार रुपये महीने तक चुकाने पड़ रहे हैं— जो युवाओं की औसत आय का लगभग आधा हिस्सा है। साथ ही गिग-इकोनॉमी और टेक कंपनियों में छंटनी ने नौकरी की सुरक्षा को और कमजोर किया है।
बेंगलुरु के मनोवैज्ञानिक डॉ. अनिल शर्मा बताते हैं— “आर्थिक असुरक्षा और शहरी अकेलेपन ने कई युवाओं को रिश्तों को ‘सर्वाइवल टूल’ बना देने पर मजबूर कर दिया है। डेटिंग ऐप्स ने इसे और आसान कर दिया है, क्योंकि वहां जल्दी कनेक्शन बनाना संभव है।”
महानगरों में नए आए माइग्रेंट्स इस ट्रेंड में सबसे आगे हैं। विशेष रूप से पुरुष, जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिलाओं के साथ रिश्ते बनाकर उनके घर में शिफ्ट होने की कोशिश करते हैं। हालांकि यह चलन महिलाओं में भी देखा जा रहा है।
रेड फ्लैग्स: कैसे पहचानें होबोसेक्शुअल पार्टनर?
कुछ संकेत साफ़ बताते हैं कि रिश्ता होबोसेक्शुअलिटी की ओर बढ़ रहा है:
- रिश्ते का असामान्य रूप से तेजी से आगे बढ़ना— पहली मुलाकात में ही ‘साथ रहने’ की बात।
- पार्टनर का स्थायी एड्रेस न होना या बार-बार नौकरी बदलने का बहाना।
- बिल्स, किराया या खर्च साझा करने से बचना।
- भावनात्मक लगाव कम लेकिन शारीरिक निकटता पर जोर।
- ब्रेकअप के बाद भी घर खाली न करना (स्क्वाटिंग)।
दिल्ली की 29 वर्षीय मार्केटिंग
प्रोफेशनल नेहा (बदला हुआ नाम) का अनुभव भी ऐसा ही रहा— “मेरे एक्स ने हमेशा बिल्स से बचने की कोशिश की। बाद में पता चला कि वह पहले भी दो लड़कियों के साथ यही कर चुका था।”
सोशल मीडिया पर भी #Hobosexuality हैशटैग के साथ कई लोग अपने अनुभव साझा कर रहे हैं।
नुकसान: आर्थिक बोझ और भावनात्मक चोट
भले ही इस ट्रेंड पर मीम्स और मज़ाक बन रहे हैं, लेकिन इसके नतीजे गंभीर हैं।
- भावनात्मक तौर पर— भरोसा टूटता है और पीड़ित व्यक्ति डिप्रेशन या एंग्जायटी का शिकार हो सकता है।
- आर्थिक रूप से— पूरा खर्च एक व्यक्ति पर आ जाता है, जिससे आर्थिक तनाव बढ़ता है।
- कानूनी दृष्टि से— ब्रेकअप के बाद घर न खाली करने की स्थिति में ‘स्क्वाटिंग’ से कोर्ट केस तक हो सकते हैं।
- स्वास्थ्य की दृष्टि से— ऐसे ट्रांजेक्शनल रिश्तों में असुरक्षित संबंध (अनसेफ सेक्स) से STDs का खतरा बढ़ जाता है।
समाज स्तर पर भी इसका असर दिख रहा है— रिश्तों में भरोसा घट रहा है और जेंडर समीकरण बिगड़ रहे हैं। महिलाओं को ‘बचाने वाली’ की भूमिका में और पुरुषों को ‘फ्रीलोडर’ के रूप में देखा जाने लगा है।
बचाव: समझदारी से डेटिंग
विशेषज्ञों के अनुसार, इस प्रवृत्ति से बचने का तरीका है—
- खुलकर बातचीत और साफ सीमाएं तय करना।
- रिलेशनशिप की शुरुआत में ही खर्च और जिम्मेदारियों पर बात करें।
- किराए या बिल्स बांटने की शर्तें पहले तय करें।
- अचानक साथ रहने की जिद को संदेह की नजर से देखें।
- लिव-इन रिलेशनशिप में लीगल एग्रीमेंट जरूर बनवाएं।
- दोस्तों और परिवार की राय लें और जरूरत पड़े तो कानूनी मदद लें।
दिल्ली की रिलेशनशिप काउंसलर प्रिया मेहता कहती हैं “रिश्ते तभी टिकते हैं जब दोनों बराबरी से जिम्मेदारी निभाएं। अगर बोझ सिर्फ एक पर है, तो वह रिश्ता नहीं सौदा है।”
प्यार बनाम जुगाड़: चौकन्ना रहना ज़रूरी
‘होबोसेक्शुअलिटी’ शहरी भारत के लिए एक नई चुनौती है। यह बताती है कि कैसे बढ़ते खर्च और बदलते डेटिंग कल्चर रिश्तों की परिभाषा बदल रहे हैं। रिश्ते की असली बुनियाद बराबरी और भरोसा होनी चाहिए न कि किराए का जुगाड़।