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तमिलों को हिंदी और हिंदी भाषियों को तमिल सीखनी चाहिए: NAAC प्रमुख

नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |

राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC) के प्रमुख अनील सहस्रबुद्धे ने हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान दिए अपने बयान से भाषा और एकता पर एक नई बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे बहुभाषी देश में एकता की भावना को मजबूत करने के लिए यह आवश्यक है कि देश के अलग-अलग हिस्सों के लोग एक-दूसरे की भाषाओं को सीखें। विशेष रूप से उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के लोगों को हिंदी भाषा सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, वहीं हिंदी भाषी राज्यों जैसे बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को भी तमिल जैसी द्रविड़ भाषाओं को सीखने की कोशिश करनी चाहिए। उनका यह बयान तमिलनाडु के संदर्भ में दिया गया, जहाँ हिंदी विरोध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है।

सहस्रबुद्धे का मानना है कि भाषा को यदि राजनैतिक या सांस्कृतिक वर्चस्व के रूप में नहीं देखा जाए, तो वह केवल संप्रेषण का एक माध्यम है, जो दिलों को जोड़ सकती है। उनका कहना है कि एक-दूसरे की भाषाएं सीखकर हम न केवल संवाद बेहतर बना सकते हैं, बल्कि देश की विविधता में एकता की भावना को भी मजबूत कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि भाषा सीखना किसी पर जबरदस्ती थोपने का विषय नहीं होना चाहिए, बल्कि यह सांस्कृतिक समझ और सौहार्द का हिस्सा होना चाहिए।

हालाँकि, उनके इस बयान को लेकर दक्षिण भारत विशेषकर तमिलनाडु में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखी जा रही हैं। कुछ लोग इसे राष्ट्रीय एकता की दिशा में सकारात्मक कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे हिंदी थोपने की कोशिश के रूप में देख रहे हैं। तमिलनाडु में हिंदी विरोधी आंदोलन एक लंबे समय से चलता आ रहा है, जहाँ क्षेत्रीय भाषा और पहचान को प्रमुखता दी जाती है।

शिक्षा विशेषज्ञों और समाजशास्त्रियों ने सहस्रबुद्धे के इस बयान को एक "समावेशी दृष्टिकोण" बताया है। उनका मानना है कि यदि स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को भारत की अन्य भाषाओं से परिचय कराया जाए, तो वह देश के नागरिकों के बीच सहयोग और समरसता की भावना को बढ़ावा देगा। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि डिजिटल माध्यमों से और भाषा ऐप्स के ज़रिए यह कार्य बहुत सहज बनाया जा सकता है।

अंततः, सहस्रबुद्धे ने यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य किसी भी भाषा को प्रमुख बनाना नहीं, बल्कि सांस्कृतिक सेतु का निर्माण करना है। उनका यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय अखंडता और आपसी समझ को एक नई दिशा देने वाला हो सकता है, यदि इसे सकारात्मकता और स्वैच्छिक भावना के साथ अपनाया जाए।