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दो भारतीयों ने जीता 2025 का इग नोबेल पुरस्कार: बदबूदार जूतों का 'शू-रैक अनुभव' पर असर

इंटरनेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

बोस्टन (अमेरिका): इंजीनियरिंग डिजाइन की दुनिया में एक अनोखा रिकॉर्ड कायम हुआ है। भारत के दो शोधकर्ताओं, विकाश कुमार और सरथक मित्तल ने 2025 के इग नोबेल पुरस्कार जीत लिया है। उनका शोध? बदबूदार जूतों का शू-रैक इस्तेमाल के 'अच्छे अनुभव' पर इंजीनियरिंग नजरिए से विश्लेषण! हंसाते-हंसाते सोचने पर मजबूर करने वाला ये काम बोस्टन के सैंडर्स थिएटर में गुरुवार रात को सम्मानित हुआ। दुनिया भर के वैज्ञानिकों के बीच ये पुरस्कार 'पहले हंसाओ, फिर सोचाओ' का मंत्र है, और भारतीय जोड़ी ने इसे साकार कर दिखाया।

 'स्मेली शूज' से शुरू हुई क्रांति

इग नोबेल पुरस्कारों की 35वीं 'फर्स्ट एनुअल' समारोह में 10 श्रेणियों में विजेताओं को सम्मानित किया गया। इंजीनियरिंग डिजाइन कैटेगरी में विकाश कुमार और सरथक मित्तल का नाम चमका। उनका 2022 में प्रकाशित पेपर 'स्मेली शूज—एं अपॉर्च्युनिटी फॉर शू रैक री-डिजाइन' इंगोमिक्स फॉर इम्प्रूव्ड प्रोडक्टिविटी कॉन्फ्रेंस के प्रोसीडिंग्स में छपा था। इसमें उन्होंने 149 पहले साल के छात्रों पर पायलट स्टडी की। नतीजा? 90 फीसदी छात्र शू-रैक में जूते रखते हैं, लेकिन आधे से ज्यादा को खुद के या किसी और के बदबूदार जूतों से असहज महसूस होता है।

विकाश कुमार, शिव नादर यूनिवर्सिटी ऑफ इमिनेंस में डिजाइन के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। सरथक मित्तल न्यूजेन सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजीज में काम करते हुए स्टूडेंट रिसर्चर थे। उनका प्रोजेक्ट एक साधारण छात्र असाइनमेंट से शुरू हुआ। सरथक ने हॉस्टल में देखा कि छात्र अक्सर जूते कमरों के बाहर रख देते हैं—बदबू से बचने के लिए! इस 'साधारण परेशानी' को इंजीनियरिंग लेंस से देखते हुए उन्होंने डिजाइन सॉल्यूशन सुझाए। जैसे, ओडर-रेजिस्टेंट मटेरियल्स और यूवी लैंप्स वाली शू-रैक जो बैक्टीरिया को मारकर बदबू रोकें। "आइडियाज अक्सर ऑर्डिनरी ऑब्जर्वेशन से आते हैं," विकाश ने बताया। "यहां इंजीनियरिंग, डिजाइन और माइक्रोबायोलॉजी का मिश्रण था।" सरथक ने जोड़ा, "हमें लगा, क्यों न इस न्यूइसेंस को एर्गोनॉमिक स्टडी बनाएं?" उनका काम बताता है कि रोजमर्रा की छोटी-छोटी दिक्कतें भी डिजाइन इनोवेशन का सबब बन सकती हैं।

हंसी-मजाक में छिपी गहरी सीख

इग नोबेल पुरस्कार इम्प्रूव्ड साइंस के लिए है—वो रिसर्च जो पहले हंसाती है, फिर सोचने पर मजबूर करती है। इस बार थीम था 'डाइजेशन', जिसमें गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट्स पर एक मिनी-ओपेरा 'द प्लाइट ऑफ द गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट' भी पेश किया गया। लेकिन भारतीय जोड़ी का 'शू स्टिंक' प्रॉब्लम चुरा ले गया शो।  

समारोह में मार्क एबरहार्ड, इग नोबेल के एडिटर, ने ईमेल और वीडियो कॉल से विकाश को कन्विंस किया कि ये कोई प्रैंक नहीं। "हमें इग नोबेल के बारे में कुछ नहीं पता था," विकाश ने हंसते हुए कहा। "लेकिन ये सम्मान डिजाइनर्स को याद दिलाता है कि एवरीडे न्यूइसेंस भी मेरिट स्टडी का।" भारत का ये 22वां इग नोबेल है—पहले गायों के व्यवहार से लेकर चाय की पत्तियों तक के शोध जीत चुके हैं।
उनके स्टडी के हाइलाइट्स? छात्रों ने बताया कि बदबू से शू-रैक यूज 50 फीसदी कम हो जाता है। सॉल्यूशन में यूवी लाइट्स सुझाई गईं, जो जूतों के बैक्टीरिया को किल करें। मार्केट में ओडर-रेजिस्टेंट शू-रैक का बूम हो सकता है! "यह सिर्फ हंसी का विषय नहीं," सरथक बोले। "डिजाइन यूजर एक्सपीरियंस को बेहतर बनाता है—चाहे वो जूता ही क्यों न हो।"

भारतीय इनोवेशन की चमक

विकाश और सरथक का काम ह्यूमन-सेंटर्ड डिजाइन का बेहतरीन उदाहरण है। शिव नादर यूनिवर्सिटी में विकाश स्टूडेंट्स को सिखाते हैं कि प्रॉब्लम सॉल्विंग में मल्टीडिसिप्लिनरी अप्रोच जरूरी। सरथक का कॉर्पोरेट बैकग्राउंड सॉफ्टवेयर से आता है, लेकिन डिजाइन में उनका झुकाव स्टूडेंट प्रोजेक्ट से पनपा। उनका पेपर स्प्रिंगर पब्लिशर्स से आया, जो एर्गोनॉमिक्स कम्युनिटी में चर्चा का विषय बना। इग नोबेल समारोह लाइव स्ट्रीम्ड हुआ, जहां विजेता 60 सेकंड में अपना काम एक्सप्लेन करते हैं। भारतीय जोड़ी ने वर्चुअली जॉइन किया—हंसी के फव्वारे छूटे जब उन्होंने 'फाउल-स्मेलिंग शूज' का डेमो दिया। अन्य विजेताओं में जेब्रा जैसे पेंट की गई गायें (जो मक्खियों से बचती हैं) और पिज्जा खाने वाली छिपकलियां शामिल। लेकिन 'स्मेली शूज' ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया—#IgNobel2025 ट्रेंडिंग! यह पुरस्कार भारतीय वैज्ञानिकों की क्रिएटिविटी को हाइलाइट करता है। विकाश बोले, "इंडिया में ऐसे कई अनसॉल्व्ड प्रॉब्लम्स हैं—डिजाइन उनका हल निकाल सकता है।" सरथक ने कहा, "यह स्टूडेंट्स को प्रेरित करेगा कि छोटे आइडियाज बड़े बदलाव लाएं।"

वैश्विक चर्चा में भारतीय छाप

समारोह के बाद, उनके शोध पर डिबेट छिड़ गया। क्या बदबूदार जूते सिर्फ कल्चरल प्रॉब्लम है? भारत जैसे देशों में जहां जूते घर से बाहर उतारना रिवाज है, शू-रैक डिजाइन क्रिटिकल। उनका प्रोटोटाइप—यूवी-इनेबल्ड रैक—फ्यूचर प्रोडक्ट्स का आइडिया देता है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह एर्गोनॉमिक्स में नया चैप्टर खोलेगा।
विकाश और सरथक ने कहा, "हमें गर्व है कि हमारा काम ग्लोबल स्टेज पर पहुंचा।" यह जीत बताती है कि साइंस में ह्यूमर और इनोवेशन का मेल जादू पैदा करता है। इग नोबेल नोबेल का 'इग' वर्जन है—लेकिन असर वैसा ही गहरा।