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नवरात्रि का दूसरा प्रहर: तप की ज्योति जलाएं, मां ब्रह्मचारिणी के चरणों में समर्पण बिखेरें

स्पेशल रिपोर्टिंग, मुस्कान कुमारी |

नई दिल्ली: सुबह की पहली किरणों में घंटियों की ध्वनि गूंज रही है, हवा में अगरबत्ती की सुगंध घुल रही है। आज शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन है, जब घर-घर मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की आराधना हो रही है। कल की शांत शुरुआत के बाद आज का आकाश तपस्या की लौ से जगमगा उठा है। मां ब्रह्मचारिणी, जो तप की साक्षात देवी हैं, आज भक्तों को वैराग्य और संयम का संदेश दे रही हैं। यह दिन न सिर्फ पूजा का, बल्कि आत्मचिंतन का भी है, जहां हर कोई अपने भीतर की शक्ति को जगाने की कोशिश कर रहा है।

कल्पना कीजिए, हिमालय की गोद में एक युवती खड़ी है। उसके हाथ में कमंडलु, गले में रुद्राक्ष की माला। सूरज की किरणें उसके श्वेत वस्त्रों पर पड़ रही हैं, लेकिन वह अविचलित। यह मां पार्वती का वह रूप है, जब उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए हजारों वर्षों का कठोर तप किया। आज की सुबह उसी तप की याद दिलाती है। पूरे देश में मंदिरों में लाइनें लगी हैं, घरों में थालियां सज रही हैं। बच्चे उत्साह से फूल चुन रहे हैं, महिलाएं पीले वस्त्र धारण कर पूजा की तैयारी में लगी हैं। यह नवरात्रि का दूसरा दिन है – तप का दिन, समर्पण का दिन।

नवरात्रि: शक्ति की नौ रंगीन लहरें, क्यों उमड़ता है यह भक्तों का सैलाब?

नवरात्रि का अर्थ है 'नौ रातें' – वे रातें जब मां दुर्गा ने महिषासुर जैसे राक्षसों का संहार किया। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह उत्सव आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। शास्त्रों में वर्णित है कि नवरात्रि रामायण से जुड़ी है – भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई से पहले मां दुर्गा की नौ दिनों तक आराधना की थी, ताकि रावण का वध हो सके। लेकिन इसका महत्व सिर्फ युद्ध तक सीमित नहीं। यह प्रकृति के चक्र से जुड़ा है – वर्षा ऋतु के बाद आगमन, जब अंधकार मिटता है और प्रकाश फैलता है।

मान्यता है कि नवरात्रि में व्रत रखने से पाप नष्ट होते हैं, पुण्य प्राप्त होता है। यह समय है जब भक्त अपनी कमजोरियों को तप से जलाते हैं। शारदीय नवरात्रि, जो आज से चल रही है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दशहरा की ओर ले जाती है – बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक। चैत्र नवरात्रि नया साल लाती है, लेकिन शारदीय वाली तो शक्ति की पूर्ण जागृति का संदेश देती है। आज के दिन में यह महत्व और गहरा हो जाता है, क्योंकि ब्रह्मचारिणी का स्वरूप तप पर जोर देता है। भक्तों का मानना है कि इन नौ दिनों में मां की कृपा से जीवन की हर बाधा दूर हो जाती है। घरों में गरबे की धुनें बज रही हैं, लेकिन पूजा का माहौल शांत, एकाग्र। यह उत्सव सिर्फ धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक भी है – जहां गुजरात के गरबा से लेकर बंगाल के दुर्गा पूजा तक, हर कोना मां के नाम से रोशन है।

मां ब्रह्मचारिणी: तप की लौ, जो हिला देती हैं तीनों लोक

अब बात उस देवी की, जिसकी आराधना आज का केंद्र है। मां ब्रह्मचारिणी – ब्रह्म यानी तप, चारिणी यानी आचरण करने वाली। उनका स्वरूप ज्योर्तिमय है: दाहिने हाथ में जपमाला, बाएं में कमंडलु। श्वेत वस्त्रों से सुशोभित, चेहरे पर संयम की चमक। यह मां पार्वती का अविवाहित रूप है, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं।

कथा सुनिए, जैसे कोई पुरानी किताब के पन्ने पलट रही हो। बचपन से ही मां को भगवान शिव पसंद थे। नारद मुनि ने आकर कहा, "तप करो, शिव वरदान देंगे।" बस, क्या था! मां ने जटा धारण कर ली। पहली सवा वर्ष केवल बिल्व पत्र और फल खाए। फिर तीन वर्ष केवल सूखे फल। पांच सौ वर्ष तक केवल पानी पर निर्भर रहीं। तीन हजार वर्षों तक निराहार तपस्या! हिमालय पर खड़ीं, सांस भी नहीं लेतीं। देवता चिंतित हो गए – धरती कांपने लगी, आकाश में हाहाकार मच गया। ब्रह्मा जी ने वरदान दिया: "तुम्हारा तप सफल होगा।" अंत में शिव ने विवाह स्वीकार किया। इस कथा से सीख मिलती है – दृढ़ संकल्प से असंभव भी संभव हो जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह की अधिष्ठात्री हैं। उनकी पूजा से चंद्रमा मजबूत होता है, मानसिक शांति मिलती है। भक्तों में तप, त्याग, वैराग्य और सदाचार की वृद्धि होती है। जीवन की कठिनाइयों में भी मन विचलित नहीं होता। आज सुबह मंदिरों में हजारों भक्त कमंडलु लेकर खड़े हैं, मानो खुद तपस्या का संकल्प ले रहे हों।

पूजा की सरल राह: घर में कैसे जगाएं मां की ज्योति?

सुबह का समय है, सूर्योदय से पहले उठें। स्नान कर स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें – क्योंकि पीला मां को प्रिय है। पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़कें, चंदन का लेप लगाएं। कलश स्थापना कल हो चुकी है, आज उसमें कमल का फूल चढ़ाएं।

पूजा विधि सरल लेकिन भावपूर्ण। सबसे पहले मां की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। दीप जलाएं – घी का दीप प्रज्वलित करें। फिर पंचोपचार: गंध (चंदन), पुष्प (पीले फूल जैसे गुड़हल, कमल), धूप, दीप, नैवेद्य। अर्घ्य दें – पंचामृत से। मंत्र जप शुरू करें। मुख्य मंत्र है: 

ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः। इसे 108 बार जपें।
 बीज मंत्र: ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः।

जप के दौरान रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें।
आरती गाएं: "जय अंबे ब्रह्मचारिणी माता, जय चतुरानन प्रिय सुख दाता..."

व्रत रखने वाले फलाहार करें – दूध, फल, मिश्री। शाम को कुमारी पूजा का विशेष महत्व है। बच्चियों को भोजन कराएं, उन्हें मां का रूप मानें। पूजा के अंत में प्रसाद वितरित करें। यह विधि न सिर्फ मां को प्रसन्न करती है, बल्कि भक्त को आंतरिक शक्ति देती है। याद रखें, पूजा में भाव प्रधान है – जल्दबाजी न करें, हर क्रिया में समर्पण डालें।

 माता रानी को चढ़ाएं प्रिय वस्तुएं: भोग से खिल उठेगी कृपा की बौछार

मां ब्रह्मचारिणी को सरल भोग भाते हैं। मुख्य भोग है शक्कर या चीनी – सफेद मिश्री का टुकड़ा चढ़ाएं। पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) का विशेष महत्व। दूध से बनी मिठाइयां, जैसे खीर, भी प्रिय। फूलों में गुड़हल और कमल चढ़ाएं। पीले फल – केला, आम – अर्पित करें। वस्त्र के रूप में पीला साड़ी या दुपट्टा। ये चढ़ावे न सिर्फ पूजा को पूर्ण करते हैं, बल्कि मां की कृपा से घर में सुख-समृद्धि लाते हैं। मान्यता है कि शक्कर का भोग चढ़ाने से परिवार की आयु बढ़ती है। आज कई घरों में ये प्रसाद सज रहा है, खुशबू हवा में फैल रही है।

शारदीय नवरात्रि: आश्विन की रंगीन धारा, क्यों है यह इतनी प्रिय?

शारदीय नवरात्रि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चलती है। यह चैत्र वाली से अलग इसलिए है क्योंकि यह शरद ऋतु की शुरुआत है – फसल कटाई का समय, जब प्रकृति मुस्कुराती है। राम ने इसी नवरात्रि में तप किया था। आज के दूसरे दिन की ऊर्जा पूरे उत्सव को गति देती है। नौ दिनों में नौ स्वरूप, नौ भोग, नौ मंत्र – सब कुछ एक ताने-बाने में बंधा। यह उत्सव सिखाता है कि शक्ति के बिना जीवन अधूरा है। गरबे की थाप पर नाचते युवा, मंदिरों में भजन की धुन – यह सब मां की लीला का हिस्सा।

इस नवरात्रि में तप की यह लौ जलाकर भक्त नई ऊर्जा पा रहे हैं। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से जीवन के कष्ट दूर हो रहे हैं। कल का तीसरा दिन चंद्रघंटा का होगा, लेकिन आज का संदेश स्पष्ट है: तप से ही विजय मिलती है। घरों में घंटियां बज रही हैं, मंत्रों का जाप हो रहा है। यह नवरात्रि सिर्फ पूजा नहीं, जीवन का उत्सव है।