
एंटरटेनमेंट डेस्क, वेरोनिका राय |
पद्मविभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्र नहीं रहे: शास्त्रीय संगीत का चमकता सितारा हुआ अस्त.....
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दुनिया से आज एक दुखद खबर सामने आई है। देश के दिग्गज शास्त्रीय गायक और पद्मविभूषण से सम्मानित पंडित छन्नूलाल मिश्र का निधन हो गया है। गुरुवार, 2 अक्टूबर की सुबह करीब 4 बजे मिर्जापुर स्थित अपने आवास पर उन्होंने अंतिम सांस ली। वह 91 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके परिवार के अनुसार, उम्र से जुड़ी दिक्कतों के साथ-साथ उनके फेफड़ों में पानी भर गया था। कुछ दिनों पहले तबीयत बिगड़ने पर उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के बाद उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। अस्पताल से लौटने के बाद वह मिर्जापुर में रह रहे थे और वहीं उनका निधन हो गया। आज वाराणसी में उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
भारतीय शास्त्रीय संगीत का अमूल्य रत्न
पंडित छन्नूलाल मिश्र न केवल एक शास्त्रीय गायक थे, बल्कि वह कई गायन शैलियों और घरानों के गहरे जानकार माने जाते थे। उन्होंने अपने सुरों से दशकों तक संगीत प्रेमियों को मंत्रमुग्ध किया। उनकी गायकी में ठुमरी, दादरा, कजरी, झूला, सोहर और होली के गीत विशेष रूप से प्रसिद्ध थे।
उनकी खासियत यह थी कि वह रागों की जटिलताओं को बेहद सहज और रसपूर्ण तरीके से गाते थे, जिससे आम श्रोता भी भाव-विभोर हो जाते थे। बनारसी अंदाज में गाए उनके गीतों में लोकसंगीत और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम देखने को मिलता था। रामकथा के प्रसंगों से लेकर सोहर और होली के गीतों तक, पंडित जी की गायकी ने हर वर्ग के लोगों का दिल जीता।
जन्म और शिक्षा
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जन्म 3 अगस्त 1936 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था। उनका परिवार संगीत से गहराई से जुड़ा हुआ था। उनके दादा गुदई महाराज शांता प्रसाद एक प्रसिद्ध तबला वादक थे। संगीत की बुनियादी शिक्षा उन्हें उनके पिता पंडित बद्री प्रसाद मिश्र से मिली। मात्र छह साल की उम्र में उन्होंने राग-रागनियों की बारीकियों को समझना शुरू कर दिया था।
बाद में उनके पहले गुरु उस्ताद गनी अली साहब ने उन्हें शास्त्रीय संगीत की गहरी शिक्षा दी। इसी सीख और साधना के बल पर उन्होंने खुद को संगीत की दुनिया में स्थापित किया और अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई।
गायन शैली और लोकप्रियता
पंडित छन्नूलाल मिश्र की गायन शैली बेहद अनोखी और रसीली थी। वह शास्त्रीय संगीत को लोकभाषा और लोकसंगीत के साथ जोड़कर प्रस्तुत करते थे। इसी कारण उनके कार्यक्रम न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी खूब पसंद किए जाते थे।
उन्होंने बनारस की समृद्ध संगीत परंपरा को आगे बढ़ाया। उनकी गायकी का जादू इतना गहरा था कि चाहे कोई संगीत का जानकार हो या सामान्य श्रोता, हर कोई उनके सुरों से प्रभावित हो जाता था। उनकी ठुमरी और कजरी आज भी श्रोताओं के बीच उतनी ही लोकप्रिय है।
पुरस्कार और सम्मान
पंडित छन्नूलाल मिश्र को उनकी अद्वितीय गायकी और शास्त्रीय संगीत में योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए।
- भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण और बाद में पद्मविभूषण जैसे सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा।
- साल 2000 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया।
- उत्तर प्रदेश सरकार ने भी उन्हें यश भारती सम्मान से सम्मानित किया।
इन सम्मानों ने उनकी कला और योगदान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
अंतिम सफर और संगीत जगत की क्षति
पंडित छन्नूलाल मिश्र के निधन से संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। संगीत प्रेमियों, कलाकारों और उनके चाहने वालों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। बनारस की संगीत परंपरा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले पंडित जी का जाना भारतीय शास्त्रीय संगीत के लिए अपूरणीय क्षति है।
उनकी गायकी की गूंज दशकों तक संगीत प्रेमियों के दिलों में सुनाई देती रहेगी। वह भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके गाए गीत और सुर हमेशा भारतीय संगीत की धरोहर बने रहेंगे।