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पान के पत्ते से अल्ज़ाइमर उपचार का सुराग

स्टेट डेस्क, मुस्कान कुमारी |

पान के पत्ते से अल्ज़ाइमर उपचार का सुराग: लखनऊ विश्वविद्यालय की बड़ी खोज, वैज्ञानिकों ने हाइड्रॉक्सीचाविकोल नामक प्राकृतिक तत्व में खोजी दवा-जैसी संभावनाएँ

लखनऊ: लखनऊ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पान के पत्ते में मौजूद एक विशेष प्राकृतिक तत्व हाइड्रॉक्सीचाविकोल (Hydroxychavicol–HC) में अल्ज़ाइमर रोग के उपचार की नई संभावना ढूंढी है। प्रारम्भिक स्तर की इस वैज्ञानिक खोज ने गंभीर तंत्रिका संबंधी बीमारी डिमेंशिया के सबसे बड़े कारण अल्ज़ाइमर के लिए भविष्य में एक नई मल्टी-टार्गेट दवा विकसित होने की उम्मीद जगा दी है।

क्या मिला शोध में?

विश्वविद्यालय की बायोजेरोन्टोलॉजी और न्यूरोबायोलॉजी प्रयोगशाला में तैयार इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कम्प्यूटर आधारित तकनीकों (नेटवर्क फार्माकोलॉजी, मॉलिक्यूलर डॉकिंग और डायनेमिक सिम्युलेशन) का उपयोग किया। शोध में पाया गया कि पान के पत्ते में पाया जाने वाला हाइड्रॉक्सीचाविकोल अल्ज़ाइमर से जुड़े कई महत्वपूर्ण प्रोटीनों पर एक साथ प्रभाव डाल सकता है। यही गुण इसे संभावित दवा-उम्मीदवार बनाते हैं।

अल्ज़ाइमर रोग में याददाश्त, सोचने-समझने की क्षमता और दिमागी प्रक्रियाएँ धीरे-धीरे कमजोर होती जाती हैं। अब तक उपलब्ध दवाएँ सीमित राहत ही देती हैं, इसलिए नई औषधीय खोजों की आवश्यकता लगातार बनी रहती है।

88 जीनों की पहचान, तीन प्रमुख प्रोटीन केंद्र में

शोध का नेतृत्व कर रहे वैज्ञानिकों ने बताया कि उनके विश्लेषण में ऐसे 88 जीन/प्रोटीन चिन्हित हुए, जो हाइड्रॉक्सीचाविकोल और अल्ज़ाइमर दोनों से संबंध रखते हैं। इनमें से तीन प्रोटीन—COMT, HSP90AA1 और GAPDH—सबसे महत्वपूर्ण “हब प्रोटीन” के रूप में सामने आए।

COMT क्या करता है?

यह प्रोटीन डोपामिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर को नियंत्रित करता है, जो दिमाग में संदेश भेजने और संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं से जुड़े होते हैं।

HSP90AA1 की भूमिका

यह प्रोटीन मस्तिष्क कोशिकाओं की सुरक्षा में अहम माना जाता है और टाउ प्रोटीन के असामान्य जमाव जैसे अल्ज़ाइमर-संबंधी परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

GAPDH का महत्व

यह ऊर्जा उत्पादन से जुड़ा प्रोटीन है, लेकिन शोधों में यह भी पाया गया है कि यह न्यूरोनल क्षति और अल्ज़ाइमर-सम्बन्धी प्रक्रियाओं से भी जुड़ता है।

कम्प्यूटर-आधारित परीक्षणों में देखा गया कि हाइड्रॉक्सीचाविकोल इन तीनों प्रोटीनों से मजबूत व स्थिर रूप से जुड़ता है। इसका अर्थ यह है कि यह एक साथ कई रोग-जन्य मार्गों को प्रभावित कर सकता है—जो आधुनिक मल्टी-टार्गेट दवा डिजाइन का आधार है।

दवा-जैसी संभावनाएँ: क्या बन सकती है गोली?

विश्लेषण में हाइड्रॉक्सीचाविकोल की केमिकल प्रोफाइल भी दवा जैसी पाई गई। अध्ययन में यह संकेत मिला कि यह तत्व शरीर में आसानी से अवशोषित हो सकता है और भविष्य में इसे मौखिक दवा (गोली) के रूप में तैयार किया जा सकता है।
हालाँकि, यह चरण केवल प्रयोगशाला और कम्प्यूटर मॉडलिंग पर आधारित है। अभी न तो किसी पशु-परीक्षण में इसे पूर्ण रूप से परखा गया है और न ही मानवीय क्लिनिकल परीक्षण हुए हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि आगे इसे इन-विट्रो, एनिमल स्टडीज़ और उसके बाद चरणबद्ध मानव परीक्षणों से गुजरना होगा, तभी इसकी चिकित्सीय उपयोगिता को साबित किया जा सकेगा।

पान का पत्ता और स्वास्थ्य: एक सांस्कृतिक पौधे की वैज्ञानिक यात्रा

भारत में पान का पत्ता धार्मिक, सांस्कृतिक और औषधीय दृष्टि से सदियों से प्रयोग में है। इसमें पाए जाने वाले प्राकृतिक यौगिक एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के लिए जाने जाते हैं।
पूर्व में किए गए कई छोटे शोधों में पान के पत्ते के अर्क ने याददाश्त सुधार और न्यूरोप्रोटेक्शन जैसे लाभ भी दिखाए थे। नया अध्ययन इसी दिशा में विस्तृत वैज्ञानिक पड़ताल का हिस्सा है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज पान के पत्ते को “अल्ज़ाइमर की दवा” घोषित नहीं करती, बल्कि उसके एक प्रमुख घटक में चिकित्सीय संभावना की पहचान करती है—जो आने वाले वर्षों में शोध का आधार बन सकती है।

गलतफहमी से सावधान: पान खाना दवा नहीं

वैज्ञानिकों ने स्पष्ट किया है कि यह खोज पान के पत्ते को सीधे खाने को दवा का विकल्प नहीं बताती।
विशेष रूप से सुपारी और तंबाकू मिश्रित पान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माने जाते हैं और कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों से जुड़े होते हैं।
शोध केवल हाइड्रॉक्सीचाविकोल नामक शुद्ध तत्व पर आधारित है, जो प्रयोगशाला में निकालकर अध्ययन किया गया।

शोध की स्थिति: उम्मीद तो मिली है, मंज़िल अभी दूर है

लखनऊ विश्वविद्यालय की यह स्टडी वैज्ञानिक समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक है कि पारंपरिक पौधों में पाए जाने वाले दुर्लभ बायोमॉलिक्यूल आधुनिक न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के समाधान में भूमिका निभा सकते हैं।
अल्ज़ाइमर जैसी जटिल बीमारी के लिए एक साथ कई प्रोटीनों को लक्ष्य करने वाली दवा की आवश्यकता लंबे समय से महसूस की जा रही थी। हाइड्रॉक्सीचाविकोल इसी संभावना की पहली कड़ी के रूप में उभर रहा है।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने यह भी दोहराया कि यह शोध प्रारम्भिक है और किसी चिकित्सीय निष्कर्ष तक पहुँचना अभी संभव नहीं।