
स्टेट डेस्क, मुस्कान कुमारी |
बिहार में तेंदुए का आतंक: पूर्वी चंपारण में इंसानों पर हमला, मवेशी बने शिकार, गांवों में खौफ का साया
रामगढ़वा (पूर्वी चंपारण): बिहार-नेपाल सीमा से सटे वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व (वीटीआर) से भटककर आया एक तेंदुआ पिछले एक सप्ताह से पूर्वी चंपारण जिले के रामगढ़वा थाना क्षेत्र और उसके आसपास के गांवों में दहशत का कारण बना हुआ है। इस जंगली शिकारी ने दो ग्रामीणों को गंभीर रूप से घायल कर दिया, वहीं कई बकरियों को मारकर किसानों को बड़ा आर्थिक नुकसान पहुंचाया है। दिन में गन्ने के घने खेतों में छिपकर और रात में हमलावर बनकर यह तेंदुआ ग्रामीणों की नींद उड़ा रहा है। वन विभाग की टीमें इसे पकड़ने के लिए चौबीसों घंटे लगी हुई हैं।
दो ग्रामीण घायल, अस्पताल में भर्ती
बुधवार रात भेड़ीहरवा गांव में 54 वर्षीय नागेंद्र सहनी पर उस समय हमला हुआ, जब वे अपने गोशाले में सो रहे थे। अचानक हुए इस हमले में वे गंभीर रूप से घायल हो गए। इसी तरह, बिलासपुर के धरमिनिया रेलवे स्टेशन इलाके में 47 वर्षीय शेख जब्बार भी तेंदुए का शिकार बने और बुरी तरह जख्मी हो गए। दोनों को रक्सौल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उनकी हालत अब स्थिर बताई जा रही है। इन घटनाओं ने पूरे इलाके में दहशत फैला दी है और ग्रामीण तेंदुए के अगले हमले की आशंका में जी रहे हैं।
पशुधन पर हमले से बढ़ी परेशानी
तेंदुए का खौफ केवल इंसानों तक सीमित नहीं रहा। उसने कई बकरियों को मारकर किसानों की आजीविका पर चोट की है। ग्रामीणों के मुताबिक, तेंदुआ अक्सर घरों के पास मंडराता है और दिन के समय गन्ने के खेतों में छिप जाता है। इससे ग्रामीण न केवल अपनी सुरक्षा बल्कि अपनी रोज़मर्रा की आमदनी को लेकर भी चिंतित हैं।
वन विभाग की सघन निगरानी
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पूर्वी चंपारण के डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) राज कुमार शर्मा खुद मौके पर पहुंचे। उन्होंने भेड़ीहरवा और बिलासपुर के प्रभावित इलाकों का दौरा कर हालात का जायजा लिया। शर्मा ने कहा, “तेंदुआ दिन में खेतों में छिपा रहता है और रात में सक्रिय हो जाता है, जिससे उसे पकड़ना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है।” वन विभाग ने इलाके में दिन-रात निगरानी बढ़ा दी है और टीमों को चौकसी पर तैनात किया गया है।
गांवों में दहशत का माहौल
लगातार हमलों ने रामगढ़वा, भेड़ीहरवा और बिलासपुर के ग्रामीणों को भयभीत कर दिया है। लोग अंधेरा होते ही घरों से बाहर निकलने से कतराने लगे हैं। माता-पिता बच्चों को बाहर खेलने नहीं दे रहे और पशुपालक रात में अपने मवेशियों को खुले में नहीं छोड़ रहे। एक स्थानीय किसान ने कहा, “हम हर वक्त डर के साए में जी रहे हैं। तेंदुए ने हमारी जिंदगी उलट-पुलट कर दी है।”
तेंदुए को पकड़ने की चुनौतियां
गन्ने के खेतों की घनी बनावट तेंदुए के लिए सुरक्षित छिपने का ठिकाना बन गई है। यही कारण है कि वन विभाग की टीमों के लगातार प्रयासों के बावजूद अब तक उसे पकड़ा नहीं जा सका है। रात के अंधेरे में तेंदुआ और ज्यादा सक्रिय हो जाता है, जिससे हमले का खतरा और बढ़ जाता है। वन विभाग अब जाल, कैमरा ट्रैप और आधुनिक निगरानी उपकरण लगाने की योजना बना रहा है, लेकिन इलाके की भौगोलिक स्थिति और तेंदुए की फुर्ती इसे कठिन बना रही है।
मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती चिंता
वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व, जो नेपाल सीमा के करीब है, तेंदुओं और बाघों का प्रमुख आवास माना जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि भोजन और आश्रय की तलाश में जंगली जानवर कई बार गांवों में घुस आते हैं और इंसानों व मवेशियों पर हमला कर देते हैं। पूर्वी चंपारण में तेंदुए की हालिया गतिविधियों ने मानव और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष को एक बार फिर उजागर कर दिया है।
प्रशासन की अपील और राहत का वादा
स्थानीय प्रशासन और वन विभाग मिलकर ग्रामीणों को जागरूक करने की मुहिम चला रहे हैं। लोगों को सलाह दी जा रही है कि वे समूह में यात्रा करें, रात में बाहर न सोएं और किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना तुरंत अधिकारियों को दें। वन विभाग ने यह भी भरोसा दिलाया है कि पशुधन के नुकसान की भरपाई सरकारी नियमों के तहत की जाएगी।
ग्रामीणों की उम्मीद – जल्द पकड़ा जाए तेंदुआ
फिलहाल, पूरे इलाके में दहशत का माहौल है और लोग सिर्फ एक ही उम्मीद कर रहे हैं कि वन विभाग जल्द से जल्द तेंदुए को पकड़ ले। जब तक यह शिकारी काबू में नहीं आता, तब तक ग्रामीणों का खौफ और बेचैनी खत्म होना मुश्किल है।