
नेशनल डेस्क, श्रेयांश पराशर l
न्यायपालिका किसी भी लोकतंत्र की आधारशिला होती है और न्यायिक तंत्र की मजबूती सीधे तौर पर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा से जुड़ी होती है। इसी कड़ी में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा बॉम्बे हाईकोर्ट में 14 अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश और विधि एवं न्याय मंत्रालय की प्रक्रिया के बाद की गई है।
बॉम्बे हाईकोर्ट देश के सबसे व्यस्त उच्च न्यायालयों में से एक है, जहां लम्बित मामलों की संख्या लगातार चिंता का विषय रही है। आंकड़े बताते हैं कि यहां लाखों मामले वर्षों से लंबित पड़े हैं। ऐसे में अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति से अदालत के कामकाज की गति तेज होगी और न्यायिक प्रणाली पर जनता का भरोसा और मजबूत होगा।
नियुक्त किए गए नए न्यायाधीश विविध कानूनी पृष्ठभूमियों से आते हैं। इनमें आपराधिक, दीवानी, संवैधानिक और वाणिज्यिक मामलों का अनुभव रखने वाले अधिवक्ता शामिल हैं। यह विविधता हाईकोर्ट को अलग-अलग विषयों पर विशेषज्ञता के साथ निर्णय देने में मदद करेगी। साथ ही, यह नियुक्तियां न्यायपालिका में नए दृष्टिकोण और ऊर्जा का संचार भी करेंगी।
कानूनविदों का मानना है कि इन नियुक्तियों से न केवल न्याय वितरण में तेजी आएगी बल्कि न्यायालयों पर बढ़ते बोझ को भी कुछ हद तक कम किया जा सकेगा। हालांकि, विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि केवल नियुक्तियों से ही समस्या का समाधान नहीं होगा। न्यायपालिका में डिजिटलीकरण, प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और न्यायाधीशों की संख्या में और बढ़ोतरी जैसे कदम भी समानांतर रूप से आवश्यक हैं।
कुल मिलाकर, बॉम्बे हाईकोर्ट में 14 अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति एक सकारात्मक पहल है, जो न्यायिक व्यवस्था को मजबूती देने और न्याय में तेजी लाने की दिशा में अहम योगदान देगी। यह कदम भारत की न्यायपालिका की विश्वसनीयता और लोकतांत्रिक मजबूती का भी प्रतीक है।