हेल्थ डेस्क, मुस्कान कुमारी |
नई दिल्ली: भारत में ब्रेन अटैक यानी स्ट्रोक का खतरा खतरनाक रूप से बढ़ता जा रहा है। यह एक ऐसी जानलेवा स्थिति है, जो मस्तिष्क में ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने या अचानक ब्लीडिंग होने से होती है। चिंता की बात यह है कि अब यह बीमारी सिर्फ बुजुर्गों तक सीमित नहीं रही; देश में हर साल स्ट्रोक का शिकार होने वाले करीब 18 लाख लोगों में एक बड़ा हिस्सा युवा और कामकाजी आबादी का है।
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन के अनुसार, स्ट्रोक दुनिया भर में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है और विकलांगता का एक प्रमुख कारण भी। स्ट्रोक एक मेडिकल इमरजेंसी है, जिसमें हर एक मिनट की देरी मरीज के मस्तिष्क की लाखों कोशिकाओं को स्थायी रूप से नष्ट कर देती है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह तबाही रोकी जा सकती है। स्ट्रोक के लगभग 80 प्रतिशत मामलों को रोका जा सकता है, अगर हम उन पांच बड़े कारणों को नियंत्रित कर लें, जो हमारी जीवनशैली से सीधे तौर पर जुड़े हैं। ये पांच कारक चुपचाप हमारे शरीर में पलते हैं और एक दिन अचानक 'ब्रेन अटैक' को अंजाम देते हैं।
क्या है स्ट्रोक और क्यों है यह इतना खतरनाक?
आम भाषा में समझें तो स्ट्रोक तब होता है, जब दिमाग के किसी हिस्से को खून की सप्लाई नहीं मिल पाती। यह दो मुख्य कारणों से होता है:
- इस्केमिक स्ट्रोक (Blockage): यह सबसे आम (87% मामले) है। इसमें खून की नली में थक्का (क्लॉट) जमने से या कोलेस्ट्रॉल (प्ला) जमा होने से ब्लॉकेज हो जाती है, जिससे दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिलती।
- हेमोरेजिक स्ट्रोक (Bleeding): इसमें दिमाग की कोई कमजोर रक्त वाहिका (नली) फट जाती है, जिससे मस्तिष्क के अंदर ब्लीडिंग होने लगती है। यह अक्सर अनियंत्रित हाई ब्लड प्रेशर या एन्यूरिज्म के कारण होता है।
दोनों ही स्थितियों में, ऑक्सीजन की कमी से मस्तिष्क की कोशिकाएं (ब्रेन सेल्स) मरने लगती हैं, जिससे शरीर के उस हिस्से का नियंत्रण खत्म हो जाता है, जिसे वह ब्रेन सेल कंट्रोल करता था (जैसे- बोलना, हाथ हिलाना या चेहरा)।
ये हैं स्ट्रोक के 5 सबसे बड़े गुनहगार:
चिकित्सा विशेषज्ञों ने उन पांच प्रमुख जोखिम कारकों की पहचान की है, जो स्ट्रोक के खतरे को कई गुना बढ़ा देते हैं।
1. हाई ब्लड प्रेशर: स्ट्रोक का सबसे बड़ा और खामोश दुश्मन
हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension) को स्ट्रोक का 'नंबर वन' कारण माना जाता है। इसे 'साइलेंट किलर' इसलिए कहते हैं, क्योंकि अक्सर इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। लगातार बढ़ा हुआ बीपी (140/90 mmHg से ऊपर) मस्तिष्क की नाजुक रक्त वाहिकाओं पर जबरदस्त दबाव डालता है। इस दबाव से नसें कमजोर हो सकती हैं, सख्त हो सकती हैं या फट भी सकती हैं। अनियंत्रित हाइपरटेंशन से हेमोरेजिक स्ट्रोक (ब्रेन ब्लीडिंग) का खतरा सबसे ज्यादा होता है। यह आपके स्ट्रोक के जोखिम को दोगुना से भी ज्यादा कर सकता है।
2. डायबिटीज: 'मीठा जहर' जो दिमाग की नसें बंद कर रहा है
डायबिटीज यानी मधुमेह स्ट्रोक का दूसरा बड़ा कारण है। भारत में 7 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। डायबिटीज के मरीजों में स्ट्रोक का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में तीन गुना तक अधिक होता है। जब खून में शुगर का स्तर लगातार बढ़ा रहता है, तो यह 'मीठा जहर' धीरे-धीरे रक्त वाहिकाओं की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचाता है। इससे नसें सख्त हो जाती हैं और उनमें क्लॉट बनने की प्रक्रिया तेज हो जाती है। यह स्थिति इस्केमिक स्ट्रोक को जन्म देती है, जहां थक्के दिमाग की सप्लाई को रोक देते हैं।
3. धूम्रपान: हर कश के साथ स्ट्रोक को सीधा न्योता
सिगरेट या तंबाकू का सेवन स्ट्रोक को सीधा निमंत्रण देना है। धूम्रपान करने वालों में स्ट्रोक का खतरा दोगुना हो जाता है। तंबाकू में मौजूद निकोटिन रक्त वाहिकाओं को सिकोड़ता है और ब्लड प्रेशर बढ़ाता है। वहीं, सिगरेट के धुएं में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड खून में ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता को कम कर देता है। यह दोहरा हमला दिमाग को ऑक्सीजन से वंचित करता है और साथ ही खून को गाढ़ा बनाकर थक्के (क्लॉटिंग) जमने का खतरा बढ़ाता है। जो लोग चेन स्मोकर हैं, उनमें 'मिनी स्ट्रोक' (TIA) का खतरा हमेशा बना रहता है।
4. मोटापा: दिमाग पर 'फैट' का जानलेवा बोझ
बढ़ा हुआ वजन या मोटापा (Obesity) स्ट्रोक का एक प्रमुख ट्रिगर है। जिन लोगों का बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 30 से ऊपर होता है, वे हाई रिस्क पर होते हैं। मोटापा सीधे तौर पर स्ट्रोक के अन्य दो बड़े कारणों- हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रॉल- को जन्म देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि पेट पर जमा चर्बी (Belly Fat) सबसे खतरनाक है। यह चर्बी मेटाबॉलिक रूप से सक्रिय होती है, जो इंसुलिन रेजिस्टेंस (डायबिटीज का कारण) पैदा करती है और धमनियों में सूजन बढ़ाती है। पेट का मोटापा स्ट्रोक के खतरे को 50 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है।
5. हाई कोलेस्ट्रॉल: धमनियों में 'प्लास्टर' जमाने वाला किलर
हाई कोलेस्ट्रॉल, खासकर 'बैड' कोलेस्ट्रॉल (LDL) का बढ़ा हुआ स्तर, स्ट्रोक का एक मुख्य कारण है। यह अतिरिक्त कोलेस्ट्रॉल धीरे-धीरे धमनियों की दीवारों पर 'प्लाक' के रूप में जमा होता जाता है, ठीक वैसे ही जैसे पाइप के अंदर कचरा जमता है। इस प्रक्रिया को एथेरोस्क्लेरोसिस कहते हैं। यह प्लाक धमनियों को संकरा और सख्त बना देता है, जिससे ब्लड फ्लो में रुकावट आती है। अगर यह प्लाक टूटता है, तो वहां तुरंत खून का थक्का बन जाता है, जो बहकर दिमाग की किसी नली को ब्लॉक कर सकता है और इस्केमिक स्ट्रोक का कारण बन सकता है। जंक फूड और ट्रांस-फैट युक्त आहार इसका मुख्य कारण है।
TIA या 'मिनी स्ट्रोक' को न करें नजरअंदाज
कभी-कभी स्ट्रोक के लक्षण कुछ मिनटों के लिए आते हैं और फिर अपने आप ठीक हो जाते हैं। इसे 'ट्रांजिएंट इस्केमिक अटैक' (TIA) या मिनी स्ट्रोक कहते हैं। यह अस्थायी ब्लॉकेज के कारण होता है। लोग इसे अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह भविष्य में आने वाले एक बड़े और विनाशकारी स्ट्रोक का सबसे बड़ा चेतावनी संकेत है। सीडीसी के अनुसार, TIA का अनुभव करने वाले लगभग एक-तिहाई लोगों को एक साल के भीतर एक बड़ा स्ट्रोक आता है।
लक्षण पहचानें, 'FAST' तरीके से बचाएं जान
स्ट्रोक के इलाज में समय ही सबसे बड़ी दवा है। लक्षण पहचानकर तुरंत अस्पताल पहुंचना जान बचा सकता है। इसके लिए F.A.S.T. फॉर्मूला याद रखें:
- F - Face (चेहरा): क्या मरीज का चेहरा एक तरफ लटक रहा है? मुस्कुराने के लिए कहें।
- A - Arms (बाजुएं): क्या मरीज दोनों बाजुओं को ऊपर उठाने में असमर्थ है? क्या एक बाजू नीचे गिर रही है?
- S - Speech (आवाज़): क्या मरीज को बोलने में दिक्कत हो रही है? क्या वह साफ बोल नहीं पा रहा या शब्दों को दोहरा नहीं पा रहा?
- T - Time (समय): अगर इनमें से कोई भी लक्षण दिखे, तो Time (समय) बर्बाद न करें। तुरंत इमरजेंसी (108) पर कॉल करें या अस्पताल ले जाएं।
अन्य लक्षणों में अचानक भ्रमित होना, तेज सिरदर्द, एक या दोनों आंखों से देखने में दिक्कत, या चलने में संतुलन खोना शामिल हैं।
इलाज और बचाव :
अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टर सीटी स्कैन या एमआरआई से यह पता लगाते हैं कि स्ट्रोक ब्लॉकेज (इस्केमिक) से हुआ है या ब्लीडिंग (हेमोरेजिक) से।
इस्केमिक स्ट्रोक में, अगर मरीज 4.5 घंटे (गोल्डन आवर) के भीतर पहुंच जाए, तो tPA नामक एक 'क्लॉट बस्टर' इंजेक्शन थक्के को घोल सकता है। हेमोरेजिक स्ट्रोक में ब्लीडिंग रोकने के लिए दवाओं या सर्जरी की जरूरत पड़ती है।
बचाव का सबसे अच्छा तरीका जीवनशैली में बदलाव है। फल-सब्जियां खाएं, नियमित व्यायाम करें, वजन नियंत्रित रखें, स्मोकिंग और अल्कोहल छोड़ें। साथ ही, अपना ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल नियमित रूप से जांच करवाएं और उन्हें नियंत्रण में रखें।







