नेशनल डेस्क, वेरोनिका राय |
मद्रास उच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) को भारतीय कानून के तहत ‘संपत्ति’ (Property) के रूप में माना जाएगा। हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानूनी मुद्रा (Legal Tender) नहीं है, लेकिन इसमें संपत्ति के सभी गुण मौजूद हैं। इस फैसले से भारत में डिजिटल संपत्ति और क्रिप्टो निवेश को लेकर बड़ा कानूनी आधार मिल गया है।
क्यों आया यह मामला अदालत में?
यह मामला उस समय अदालत में पहुंचा जब तमिलनाडु की एक निवेशक महिला ने क्रिप्टो प्लेटफॉर्म WazirX के खिलाफ याचिका दायर की। उन्होंने बताया कि जनवरी 2024 में उन्होंने लगभग 1,98,516 रुपये निवेश कर 3,532.30 XRP क्वॉइन खरीदे थे। लेकिन जुलाई 2024 में वजीरएक्स के प्लेटफॉर्म पर साइबर हमला (Cyber Attack) हुआ, जिसमें Ethereum और ERC-20 टोकन चोरी हो गए।
इस घटना के बाद कंपनी ने सभी यूजर अकाउंट को फ्रीज कर दिया, जिससे निवेशक अपने XRP क्वॉइन तक नहीं पहुंच पाईं। वजीरएक्स ने माना कि हैकिंग से करीब 230 मिलियन डॉलर (लगभग 1,900 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ था।
निवेशक का पक्ष: 'मेरे क्वॉइन चोरी नहीं हुए'
निवेशक ने अदालत में कहा कि उनके XRP टोकन चोरी हुए टोकनों से अलग हैं, इसलिए कंपनी को उन्हें रोकने या पुनर्वितरित करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने दलील दी कि वजीरएक्स उनके क्वॉइन को ट्रस्ट कस्टोडियन के रूप में संभाल रहा था, इसलिए उनके टोकन किसी अन्य यूजर को नहीं दिए जा सकते।
वजीरएक्स की दलील: 'संपत्ति सिंगापुर कंपनी की है'
वजीरएक्स की भारतीय ऑपरेटर कंपनी Zanmai Labs ने अदालत में कहा कि वजीरएक्स का असली मालिकाना हक सिंगापुर की कंपनी Zettai Pte Ltd के पास है। उन्होंने बताया कि सिंगापुर की अदालत ने एक पुनर्गठन योजना (Reconstruction Plan) को मंजूरी दी है, जिसके तहत सभी यूजर्स का नुकसान प्रो-राटा आधार पर साझा किया जाएगा।
लेकिन निवेशक ने तर्क दिया कि उनका लेनदेन भारत से हुआ था, इसलिए यह मामला भारतीय कानून के तहत ही सुना जाना चाहिए।
अदालत का फैसला: क्रिप्टो ‘वर्चुअल डिजिटल एसेट’ यानी संपत्ति है
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस आनंद वेंकटेश ने अपने 54 पन्नों के विस्तृत फैसले में कहा कि क्रिप्टोकरेंसी भले ही मुद्रा नहीं है, लेकिन यह एक ऐसी संपत्ति है जिसे व्यक्ति अपने पास रख सकता है या ट्रस्ट में रखी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि ब्लॉकचेन पर मौजूद डिजिटल टोकन की पहचान की जा सकती है, उन्हें ट्रांसफर किया जा सकता है, और निजी कुंजी (Private Key) के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है — ये सभी गुण किसी संपत्ति के हैं।
अदालत ने किन उदाहरणों का हवाला दिया?
न्यायालय ने अपने फैसले में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों ही मामलों का जिक्र किया।
भारत में दिए गए उदाहरणों में —
- अहमद जीएच आरीफ बनाम CWT
- जिलूभाई नानभाई खाचर बनाम स्टेट ऑफ गुजरात
शामिल थे, जिनमें संपत्ति को “हर उस मूल्यवान अधिकार या हित” के रूप में परिभाषित किया गया जो व्यक्ति के पास हो सकता है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों में अदालत ने —
- Ruscoe vs Cryptopia (न्यूजीलैंड)
- AA vs Persons Unknown (यूके)
के फैसलों का हवाला दिया, जिनमें विदेशी अदालतों ने भी क्रिप्टोकरेंसी को संपत्ति के रूप में मान्यता दी थी।
अदालत ने निवेशक को दी राहत
जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि वजीरएक्स पर हुए साइबर हमले में केवल Ethereum और ERC-20 टोकन चोरी हुए थे, जबकि निवेशक के XRP टोकन सुरक्षित थे। इसलिए कंपनी को उन क्वॉइन को किसी भी तरह से पुनर्वितरित, बांटने या पुनः आवंटित करने से रोका गया है, जब तक मध्यस्थता (Arbitration) में अंतिम फैसला नहीं आ जाता।
भारत में क्रिप्टो निवेश के लिए बड़ा कदम
यह फैसला भारत में डिजिटल संपत्तियों की कानूनी स्थिति को लेकर मील का पत्थर साबित हो सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भले ही क्रिप्टो को अभी मुद्रा की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, लेकिन यह संपत्ति है — यानी निवेशक का उस पर स्वामित्व अधिकार (Ownership Right) होता है।
यह निर्णय भारत में क्रिप्टो निवेशकों और कंपनियों दोनों के लिए कानूनी स्पष्टता लाता है और आने वाले समय में क्रिप्टो विनियमन (Regulation) की दिशा तय कर सकता है।
मद्रास हाईकोर्ट का यह फैसला न सिर्फ साइबर ठगी के मामलों में निवेशकों की सुरक्षा को मजबूत करता है, बल्कि यह भी तय करता है कि भारत में क्रिप्टोकरेंसी अब “वर्चुअल डिजिटल एसेट” के रूप में कानूनी संपत्ति मानी जाएगी।







