Ad Image
Ad Image
टाइफून मातमो तूफान को लेकर चीन में ऑरेंज अलर्ट, सेना तैयार || हमास बंधकों को करेगा रिहा, राष्ट्रपति ट्रंप ने गाजा पर बमबारी रोकने को कहा || पहलगाम हमले के बाद पता चला कौन भारत का असली मित्र: मोहन भागवत || भारत के साथ व्यापार असंतुलन कम करने का अपने अधिकारियों को पुतिन का आदेश || मेक्सिको की राष्ट्रपति शीनबाम की इजरायल से अपील, हिरासत में लिए मेक्सिको के नागरिकों को जल्दी रिहा करें || शास्त्रीय गायक पद्मविभूषण छन्नूलाल मिश्र का मिर्जापुर में निधन, PM मोदी ने दी श्रद्धांजलि || स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं: मोहन भागवत || अमित शाह ने कहा, देश अगले 31 मार्च तक नक्सलवादी लाल आतंक से मुक्त होगा || भारतीय क्रिकेट टीम ने जीता एशिया कप, PM समेत पूरे देश ने दी बधाई || तमिलनाडु: एक्टर विजय की रैली में भगदड़, 31 की मौत, 40 से ज्यादा घायल

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

मां की गुहार: सिपाही जी बच्चा होने का समय आ गया है, हमें जाने दीजिए

नेशनल डेस्क, एन.के. सिंह |

नेपाल में चल रहे 'जेनजी आंदोलन' ने भारत-नेपाल सीमा पर आवाजाही पर रोक से आम लोगों को भारी परेशानी हो रही।

रक्सौल: नेपाल में चल रहे 'जेनजी आंदोलन' ने भारत-नेपाल सीमा पर आम लोगों की जिंदगी में भारी मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। वाहनों की आवाजाही इक्का दुक्का छोड़ ठप है और आवागमन के नियमों को बेहद सख्त कर दिया गया है। ऐसे ही मुश्किल भरे माहौल में, गुरुवार को रक्सौल के मैत्री पुल पर एक मार्मिक घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया। यह कहानी थी एक गर्भवती महिला के दर्द, उसकी बेबसी और सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों की संवेदनशीलता की, जिसने मानवता को हर नियम से ऊपर साबित कर दिया।

दर्द से कराहती सुगंधी और सरहद की बेड़ियां

मैत्री पुल के पास दर्द और बेबसी से भरी आँखों के साथ 30 वर्षीय सुगंधी खड़ी थीं। उनके साथ उनके पति, भाई और सास भी थे। वे नेपाल के बीरगंज से आई थीं और प्रसव के लिए रक्सौल के अस्पताल जाना चाहती थीं। लेकिन जेनजी आंदोलन के चलते सीमा पर वाहनों के लिए पूरी तरह से प्रतिबंध लगा हुआ था। उनके चेहरे पर पीड़ा साफ झलक रही थी और आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, जो उनकी अंदरूनी जंग को बयां कर रहे थे।

उन्होंने एक सिपाही से गुहार लगाते हुए काँपती आवाज़ में कहा, "सिपाही जी, हमार बच्चा इशू होय के समय हो गेल बा, बॉर्डर पार जाएं दीं।" उनकी यह मार्मिक पुकार सुनकर सिपाही भी कुछ पल के लिए शांत हो गए। सुगंधी ने आगे अपनी व्यथा बताते हुए कहा, "आज तो गजब हो गया। अपनी 30 साल की उम्र में पहली बार देख रही हूँ कि इस पार से उस पार जाने के लिए हमें आधार कार्ड और अन्य दस्तावेज दिखाने पड़ रहे हैं।" यह उस सहज आवाजाही पर एक करारा प्रहार था, जिसके लिए भारत और नेपाल के रिश्ते जाने जाते हैं।

जब इंसानियत ने सरहद को पार किया

जेनजी आंदोलन ने बड़े वाहनों की आवाजाही पर पूरी तरह से रोक लगा रखी थी, और सिर्फ आपातकालीन मामलों में ही लोगों को पैदल जाने की अनुमति थी। सुगंधी और उनके परिवार को भी पैदल ही यह लंबी और दर्द भरी दूरी तय करनी पड़ी। एक-एक कदम उनके लिए मुश्किल था, लेकिन उम्मीद की एक किरण उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दे रही थी।

जब भारतीय और नेपाली पुलिस के जवानों ने सुगंधी और उनके परिवार के पहचान पत्रों और आधार कार्ड की जाँच की, तो उन्हें तुरंत स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ। उन्होंने देखा कि दर्द से कराहती हुई सुगंधी को तुरंत चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता थी। कानून और नियम अपनी जगह थे, लेकिन मानवता का तकाजा कहीं ज्यादा बड़ा था। बिना किसी देरी के, जवानों ने इंसानियत को सर्वोपरि रखते हुए सुगंधी और उनके परिवार को भारतीय क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी।

सुगंधी की यात्रा भले ही मुश्किलों से भरी रही, लेकिन सीमा पार करते ही उन्हें और उनके परिवार को बड़ी राहत मिली। यह घटना न केवल नेपाल-भारत के गहरे और ऐतिहासिक रिश्तों को दर्शाती है, बल्कि यह भी याद दिलाती है कि जब बात इंसानियत की आती है, तो कोई भी सरहद या नियम मायने नहीं रखता। सीमा पर तैनात ये जवान सिर्फ कानून का पालन नहीं करते, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर अपनी संवेदनशीलता से जीवन को भी बचाते हैं।