स्टेट डेस्क, ऋषि राज |
उत्तर प्रदेश में बीते कुछ वर्षों में एयरपोर्ट निर्माण को लेकर बड़ी रफ्तार दिखाई दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की डबल इंजन सरकार ने प्रदेश को “हवाई नेटवर्क से जोड़ने” का सपना दिखाया। लेकिन, अब सवाल उठ रहा है कि जब उड़ानें ही नहीं हैं तो ये एयरपोर्ट किस काम के? आंकड़े बताते हैं कि 7 एयरपोर्ट; 6 घरेलू और 1 अंतरराष्ट्रीय, जिनका उद्घाटन खुद प्रधानमंत्री ने किया था, आज बंद पड़े हैं। इनमें से कई जगहों पर महीनों से कोई उड़ान नहीं भरी गई है, जबकि कर्मचारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती जारी है।
चित्रकूट एयरपोर्ट: चार महीने में बंद हो गया बुंदेलखंड का सपना
10 मार्च 2024 को पीएम मोदी ने बुंदेलखंड के पहले एयरपोर्ट चित्रकूट का वर्चुअल उद्घाटन किया था। लखनऊ से जुड़ने के लिए हफ्ते में चार दिन उड़ानें शुरू हुईं। 19 सीटर विमान महज 55 मिनट में राजधानी पहुंचाता था। लेकिन दिसंबर 2024 आते-आते उड़ानें बंद हो गईं। एयरलाइन कंपनी एयरबिग ने संचालन “ऑपरेशनल इश्यू” और “कम विजिबिलिटी” का हवाला देते हुए सेवाएं स्थगित कर दीं।
एयरपोर्ट डायरेक्टर आलोक सिंह के मुताबिक, “हमने एयरपोर्ट को रेडी-टू-फ्लाई रखा है, लेकिन कंपनी ने खुद उड़ानें नहीं शुरू कीं।” फिलहाल यहां लगभग 70 कर्मचारी और 40 सीआईएसएफ जवान ड्यूटी पर हैं, लेकिन कोई यात्री विमान नहीं उड़ता।
कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट: 260 करोड़ की परियोजना, पर कोई विदेशी उड़ान नहीं
2021 में उद्घाटन के समय कुशीनगर एयरपोर्ट को “बौद्ध तीर्थ स्थलों की अंतरराष्ट्रीय पहुंच” के रूप में पेश किया गया था। श्रीलंका से प्रतिनिधिमंडल भी उद्घाटन दिवस पर आया था। लेकिन 47 महीने बाद भी यहां से कोई अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू नहीं हो सकी।
डायरेक्टर प्रणेश कुमार रॉय का कहना है कि ILS सिस्टम (इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग सिस्टम) न लग पाने से विमानों को लैंडिंग में दिक्कत होती है। यह तकनीकी कमी अब तक दूर नहीं हुई है। शुरुआती दिनों में दिल्ली, मुंबई और कोलकाता की कुछ उड़ानें चलीं, लेकिन यात्रियों की कमी और ऑपरेशनल लागत के कारण बंद हो गईं।
आजमगढ़, अलीगढ़, मुरादाबाद और श्रावस्ती: यात्रियों की कमी बनी बड़ी वजह
मार्च 2024 में पीएम मोदी ने यूपी के कई छोटे एयरपोर्ट जैसे आजमगढ़, अलीगढ़, मुरादाबाद और श्रावस्ती का वर्चुअल उद्घाटन किया था। इन एयरपोर्टों को “UDAN योजना” के तहत जोड़ा गया, ताकि छोटे शहरों को राजधानी से सीधा जोड़ा जा सके।
- आजमगढ़ में लखनऊ के लिए उड़ानें कुछ महीनों तक चलीं, लेकिन पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे शुरू होने के बाद लोग सड़क मार्ग से यात्रा करने लगे।
- अलीगढ़ एयरपोर्ट से लखनऊ के लिए शुरू हुई उड़ानें एक महीने में बंद हो गईं।
- मुरादाबाद एयरपोर्ट से 75 मिनट की लखनऊ उड़ान भी यात्रियों की कमी से स्थगित कर दी गई।
- श्रावस्ती एयरपोर्ट, जो एक अनोखा मामला है — यहां रेलवे स्टेशन तक नहीं है, फिर भी 523 रुपए किराए पर 19 सीटर फ्लाइट शुरू की गई थी। परंतु, यात्रियों की कमी और सड़क से आसान कनेक्टिविटी के कारण यहां भी उड़ानें बंद करनी पड़ीं।
सहारनपुर एयरपोर्ट: उद्घाटन हुआ, लेकिन एक भी उड़ान नहीं
अक्टूबर 2024 में पीएम मोदी ने सहारनपुर एयरपोर्ट का उद्घाटन किया। 55 करोड़ की लागत से बना यह एयरपोर्ट अब तक एक भी उड़ान नहीं देख सका है। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि “सूरत और मुंबई के लिए उड़ान शुरू करने का वादा किया गया था, लेकिन उद्घाटन के बाद सब कुछ ठंडा पड़ गया।”
क्यों बंद हो रहे हैं ये एयरपोर्ट?
विश्लेषकों का मानना है कि यूपी में एयरपोर्ट निर्माण में राजनीतिक प्राथमिकता और चुनावी प्रतीकवाद अधिक दिखा, न कि व्यावहारिक मांग और यात्री घनत्व का विश्लेषण।
1.कम यात्री मांग: अधिकतर एयरपोर्ट ऐसे जिलों में बने, जहां पहले से नजदीकी बड़े एयरपोर्ट मौजूद थे — जैसे प्रयागराज से चित्रकूट (101 किमी), गोरखपुर से कुशीनगर (51 किमी) या अयोध्या से श्रावस्ती (110 किमी)।
2.सड़क मार्ग की प्रतिस्पर्धा: एक्सप्रेस-वे और हाईवे ने यात्रा को इतना आसान बना दिया कि हवाई यात्रा की जरूरत ही नहीं बची।
3.तकनीकी और ऑपरेशनल सीमाएं: कई एयरपोर्टों पर ILS सिस्टम, नेविगेशन लाइटिंग और सुरक्षा मंजूरी की कमी रही।
4.एयरलाइन कंपनियों की अनिच्छा: निजी कंपनियां खाली विमानों के साथ उड़ान भरने को तैयार नहीं होतीं। उन्हें सरकारी सब्सिडी भी सीमित समय तक ही मिलती है।
यूपी में मेरठ, ललितपुर, सोनभद्र, लखीमपुर खीरी और नोएडा (जेवर) में एयरपोर्ट का निर्माण जारी है। इनमें जेवर एयरपोर्ट एशिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बताया जा रहा है — 6 रनवे, 178 विमान पार्किंग और 29,650 करोड़ की लागत। वहीं, लखीमपुर और सोनभद्र में छोटे विमान सेवा की योजना है।
आर्थिक और प्रशासनिक विफलता
एविएशन विशेषज्ञों के अनुसार, यूपी में हवाई अड्डों की यह श्रृंखला “अवसंरचना आधारित राजनीतिक प्रदर्शन” बनकर रह गई है। अरबों रुपए खर्च कर बने एयरपोर्ट अब “निष्क्रिय परिसंपत्ति” बन गए हैं — जहां कर्मचारी हैं, सुरक्षा बल हैं, लेकिन उड़ानें नहीं। “एयरपोर्ट खोलना आसान है, चलाना मुश्किल। अगर व्यावसायिक मांग नहीं है, तो विमान कंपनियां नहीं आएंगी।”
हवाई सपनों की उड़ान जमीन पर
यूपी में एयरपोर्टों की यह कहानी एक सबक देती है — सिर्फ उद्घाटन नहीं, संचालन ही विकास का पैमाना है। बुंदेलखंड से लेकर पूर्वांचल और पश्चिम यूपी तक, एयरपोर्ट तो बन गए, लेकिन हवाई कनेक्टिविटी नहीं टिक सकी। जब यात्रियों की जरूरत और आर्थिक व्यवहार्यता का अध्ययन गहराई से नहीं होता, तो ऐसी परियोजनाएं कागजों पर विकास और जमीन पर बोझ बन जाती हैं।
अगर सरकार सचमुच “उड़ान” योजना को सफल बनाना चाहती है, तो जरूरी है कि एयरपोर्ट निर्माण के बजाय संचालन, सर्विस नेटवर्क और स्थानीय अर्थव्यवस्था के विकास पर ध्यान दिया जाए वरना यूपी के ये एयरपोर्ट आने वाले समय में सिर्फ “उद्घाटन स्मारक” बनकर रह जाएंगे।







