स्टेट डेस्क, आर्या कुमारी |
राजभवन ने पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अजय कुमार सिंह को अनिवार्य अवकाश पर भेजते हुए उन पर लगे आरोपों की जांच का निर्णय लिया है। राज्यपाल ने उम्मीद जताई है कि इससे विश्वविद्यालयों की स्थिति में सुधार होगा, क्योंकि शैक्षणिक सत्रों में अनियमितता और कुलपतियों की नियुक्ति प्रक्रिया में गड़बड़ियां बनी हुई हैं। कुलाधिपति को इन समस्याओं की जड़ पर प्रहार करते हुए नियुक्तियों में पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है, ताकि शैक्षणिक माहौल बेहतर हो सके।
राजभवन ने स्पष्ट किया है कि जांच पूरी होने तक कुलपति को दोषी नहीं माना जाएगा। यदि आरोप प्रमाणित होते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है। इस वर्ष जनवरी में जब आरिफ मोहम्मद खान राज्यपाल बने थे, तब उम्मीद जताई गई थी कि विश्वविद्यालयों की स्थिति में सुधार होगा। उन्होंने विश्वविद्यालयों का निरीक्षण किया और पाया कि हालात संतोषजनक नहीं हैं तथा सुधार जरूरी है।
नियमित पढ़ाई और समय पर परीक्षा
विश्वविद्यालयों के दो प्रमुख कार्य हैं, लेकिन सत्र अब तक नियमित नहीं हो पाए हैं — यह राज्य के विश्वविद्यालयों की पुरानी समस्या है, जिसमें अब तक कोई सुधार नहीं हुआ है।
असल में कुलाधिपति को इस “बीमारी” की जड़ पर प्रहार करना होगा। वर्षों से कुलपतियों की बहाली विवादों में रही है। नियुक्ति के लिए कुछ मानक तय तो हैं, लेकिन व्यवहार में अलग पैमाने अपनाए जाते हैं। जाति, धर्म, क्षेत्र जैसे अघोषित मानदंडों को वरीयता दी जाती है। ऐसी प्रक्रिया से चयनित कुलपतियों का ध्यान शैक्षणिक सुधारों से भटकना स्वाभाविक है। यदि राज्यपाल इसे समझ रहे हैं, तो उम्मीद की जा सकती है कि आगामी नियुक्तियों में इस समस्या का प्रभावी समाधान करेंगे।







