मुस्कान कुमारी, हेल्थ डेस्क
वायु प्रदूषण अब सिर्फ फेफड़ों की बीमारी नहीं, बल्कि हृदय घात और स्ट्रोक का प्रमुख कारण बन चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, प्रदूषित हवा से हर साल लाखों लोग अकाल मृत्यु का शिकार हो रहे हैं, जिनमें हार्ट अटैक के मामले सबसे अधिक हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण रक्त वाहिकाओं में सूजन पैदा कर हृदय पर सीधा हमला करते हैं।
प्रदूषण का हृदय पर घातक असर
शहरों में बढ़ते वाहनों, फैक्टरियों और निर्माण कार्यों से निकलने वाला धुआं हवा में जहर घोल रहा है। रिपोर्ट में पता चला है कि वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों में 25 प्रतिशत से ज्यादा हृदय रोगों से जुड़ी हैं। दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में प्रदूषण का स्तर सुरक्षित सीमा से कई गुना ऊपर पहुंच चुका है, जिससे युवाओं में भी हार्ट अटैक के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार, प्रदूषित हवा में मौजूद जहरीले तत्व रक्त में घुलकर धमनियों को सख्त बनाते हैं। इससे ब्लड प्रेशर बढ़ता है और हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। एक अध्ययन से खुलासा हुआ कि लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने वालों में हार्ट अटैक का जोखिम 40 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। खासकर सर्दियों में कोहरा और धुआं मिलकर स्थिति को और भयावह बना देते हैं।
वैश्विक स्तर पर बढ़ती चिंता
दुनिया भर में वायु प्रदूषण से हर साल करीब 70 लाख लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। इनमें से आधे से ज्यादा मौतें हृदय और मस्तिष्क संबंधी बीमारियों से हो रही हैं। विकासशील देशों में यह समस्या ज्यादा गंभीर है, जहां औद्योगिक उत्सर्जन और वाहनों की संख्या अनियंत्रित है। भारत में प्रदूषण से होने वाली मौतों का आंकड़ा सबसे ऊपर है, जो चिंता का विषय बन गया है। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रदूषण के कण फेफड़ों से होते हुए रक्त प्रवाह में पहुंच जाते हैं। वहां ये सूजन फैलाते हैं और प्लाक जमने की प्रक्रिया तेज कर देते हैं। परिणामस्वरूप, हृदय की धड़कन अनियमित हो जाती है और अचानक हमला हो सकता है। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर सबसे ज्यादा पड़ता है, क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है।
जोखिम कारक और लक्षण
वायु प्रदूषण से हार्ट अटैक का खतरा उन लोगों में ज्यादा है जो पहले से उच्च रक्तचाप, मधुमेह या धूम्रपान की आदत रखते हैं। प्रदूषण इन समस्याओं को बढ़ावा देकर हृदय को कमजोर बनाता है। शुरुआती लक्षणों में सीने में दर्द, सांस फूलना और थकान शामिल हैं, लेकिन ज्यादातर लोग इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। शहरों में रहने वाले लोग रोजाना औसतन 10 माइक्रोग्राम पीएम 2.5 सांस के जरिए अंदर ले रहे हैं, जो सुरक्षित सीमा से दोगुना है। इससे रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है और हृदय को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। लंबे समय तक ऐसा चलने से हार्ट फेल्योर की स्थिति बन सकती है।
बचाव के उपाय
प्रदूषण से बचने के लिए मास्क का इस्तेमाल जरूरी है, खासकर एन95 वाला जो सूक्ष्म कणों को रोक सके। घर में एयर प्यूरीफायर लगाना और बाहर निकलते समय सावधानी बरतना मददगार साबित हो सकता है। सुबह की सैर प्रदूषण कम होने पर करें और व्यायाम इंडोर करें। आहार में एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर फल-सब्जियां शामिल करें, जो शरीर को प्रदूषण के नुकसान से लड़ने की ताकत दें। धूम्रपान छोड़ें और वाहनों का कम इस्तेमाल करें। सरकार से अपेक्षा है कि सख्त नियम लागू कर प्रदूषण नियंत्रित किया जाए, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर भी जागरूकता जरूरी है।
वायु प्रदूषण हृदय के लिए खामोश हत्यारा बन चुका है। समय रहते सतर्कता न बरती तो यह महामारी का रूप ले लेगा। स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह है कि प्रदूषण के स्तर पर नजर रखें और जरूरत पड़ने पर डॉक्टर से परामर्श लें।







