Ad Image
Ad Image
दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराधियों के लिए चलाया साईं हॉक अभियान, 48 घंटे में 800 गिरफ्तार || झारखंड की मंत्री दीपिका पाण्डेय का EC पर हमला, SIR के कारण हारा महागठबंधन || पूर्वी चंपारण के रक्सौल में VIP पार्टी के अनुमंडल प्रमुख की गोली मार हत्या || राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन से शांति समझौते के प्रस्ताव को जल्दी स्वीकार करने का आग्रह किया || ईरान पर अमेरिका की सख्ती, आज नए प्रतिबंधों का किया ऐलान || BJP को 90 पर लीड, JDU को 80 पर लीड, महागठबंधन फेल || नीतीश कुमार CM हैं और आगे भी रहेंगे: जेडीयू की प्रतिक्रिया || NDA को शानदार बढ़त, 198 पर लीड जबकि महागठबंधन को 45 पर लीड || तुर्की : सैन्य विमान दुर्घटना में मृत सभी 20 सैनिकों के शव बरामद || RJD के एम एल सी सुनील सिंह का भड़काऊ बयान, DGP के आदेश पर FIR

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

संघ में मुसलमान-ईसाई भी शामिल हो सकते हैं: मोहन भागवत

नेशनल डेस्क, वेरॉनिका राय |

बेंगलुरू में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को एक बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि आरएसएस किसी धर्म, जाति या राजनीतिक दल से बंधा संगठन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा आंदोलन है जो पूरे समाज को जोड़ने का काम करता है।

मुसलमान और ईसाई भी आ सकते हैं संघ में

भागवत ने कहा कि आरएसएस में मुसलमानों और ईसाइयों सहित सभी समुदायों के लोग शामिल हो सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ किसी भी व्यक्ति से उसकी जाति या धर्म नहीं पूछता।
भागवत ने कहा – “मुसलमान शाखा में आते हैं, ईसाई शाखा में आते हैं, और हिंदू समाज की सभी जातियां शाखा में आती हैं। हम उनकी गिनती नहीं करते और ना ही पूछते हैं कि वे कौन हैं। हम सभी भारत माता के पुत्र हैं और संघ इसी तरीके से काम करता है।”

उन्होंने आगे कहा कि जो व्यक्ति खुद को भारत माता का पुत्र और विस्तृत हिंदू समाज का हिस्सा मानता है, वह संघ में स्वागत योग्य है। भागवत ने कहा कि संघ का हिंदुत्व किसी धर्म विशेष का नाम नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक पद्धति है, जो सबको जोड़ती है।

“संघ केवल नीतियों का समर्थन करता है, किसी राजनीतिक दल का नहीं”

अपने संबोधन में मोहन भागवत ने राजनीतिक जुड़ाव के सवाल पर भी सफाई दी। उन्होंने कहा कि आरएसएस किसी राजनीतिक दल का समर्थन नहीं करता, बल्कि वह नीतियों और राष्ट्रहित में लिए गए फैसलों का समर्थन करता है।

भागवत ने कहा – “हम किसी पार्टी के साथ नहीं हैं। राजनीति बांटने का काम करती है और संघ जोड़ने का। हम केवल नीतियों का समर्थन करते हैं, व्यक्ति या दल का नहीं।”

उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब राम मंदिर का मुद्दा उठा था, तो संघ ने उन लोगों का समर्थन किया जो इसके निर्माण के पक्ष में थे। भागवत ने कहा,
 “हम चाहते थे कि अयोध्या में राम मंदिर बने, इसलिए हमारे स्वयंसेवकों ने उन लोगों को वोट दिया जो इसके पक्ष में थे। अगर कांग्रेस ने यह काम किया होता, तो हम उनका समर्थन करते।”

संघ की 100 साल की यात्रा: समाज निर्माण की दिशा में कदम

आरएसएस की स्थापना 1925 में डॉ. हेडगेवार ने नागपुर में की थी। अब जब संघ अपने 100वें वर्ष की ओर बढ़ रहा है, तो मोहन भागवत ने कहा कि संगठन का लक्ष्य भारत को एक मजबूत, संस्कारी और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है।

उन्होंने बताया कि संघ आज लाखों स्वयंसेवकों के माध्यम से समाज सेवा, शिक्षा, संस्कृति और राष्ट्रभक्ति के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
भागवत ने कहा,
 “हम राजनीति में हिस्सा नहीं लेते, लेकिन हम समाज को संगठित करते हैं। एक संगठित समाज ही मजबूत राष्ट्र की नींव रखता है।”

‘हिंदू समाज’ का अर्थ क्या है?

भागवत ने अपने भाषण में यह भी स्पष्ट किया कि जब संघ “हिंदू समाज” की बात करता है, तो उसका अर्थ किसी धार्मिक पहचान से नहीं होता। उन्होंने कहा - “हमारे लिए हिंदू समाज का मतलब है भारत की उस संस्कृति से जुड़े लोग जो इस भूमि को अपनी मातृभूमि मानते हैं। चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से हों, अगर वे भारत माता को पूजनीय मानते हैं, तो वे इस समाज का हिस्सा हैं।”

संघ का लक्ष्य – समाज को जोड़ना, नहीं तोड़ना

मोहन भागवत ने कहा कि आज जब दुनिया में कई समाज धर्म और राजनीति के नाम पर विभाजित हो रहे हैं, तब भारत के लिए जरूरी है कि वह एकता का उदाहरण बने।
उन्होंने कहा,
 “संघ का उद्देश्य किसी के खिलाफ काम करना नहीं है। हम सबको जोड़ने का काम करते हैं। देश का विकास तभी होगा जब समाज संगठित रहेगा।”

मोहन भागवत के इस बयान से साफ है कि आरएसएस अपने दायरे को केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं मानता, बल्कि वह हर उस व्यक्ति को अपने साथ जोड़ना चाहता है जो भारत को अपनी मातृभूमि मानता है।
भागवत का यह बयान ऐसे समय आया है जब देश में धर्म और राजनीति को लेकर बहस तेज है। उन्होंने संघ की सोच को स्पष्ट करते हुए कहा कि संघ भारतीय संस्कृति, एकता और राष्ट्रभक्ति की भावना से प्रेरित होकर काम करता है — धर्म या राजनीति के आधार पर नहीं।