
नेशनल डेस्क, श्रेया पांडेय |
सुप्रीम कोर्ट ने लिंग परीक्षण कानून पर राज्यों को चेताया, कहा- 'पड़ोसी से झगड़ा आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं'
नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत ने हाल ही में दो महत्वपूर्ण फैसलों पर अपनी मजबूत राय रखी है, जिनका समाज और कानून व्यवस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना है। एक तरफ जहां कोर्ट ने लिंग परीक्षण कानून के सख्त अनुपालन को लेकर पांच राज्यों से जवाब तलब किया है, वहीं दूसरी तरफ एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि "पड़ोसी से झगड़ा या हाथापाई को आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता।" इन दोनों फैसलों ने कानूनी हलकों और आम जनता के बीच एक नई बहस छेड़ दी है।
लिंग परीक्षण कानून, जिसे प्री-कंसेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (PCPNDT) अधिनियम के नाम से जाना जाता है, का उद्देश्य भारत में घटते लिंगानुपात को रोकना है। इसके बावजूद, देश के कई हिस्सों में अवैध लिंग परीक्षण और कन्या भ्रूण हत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पांच राज्यों - हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और गुजरात - से उनके यहां इस कानून के प्रभावी क्रियान्वयन पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने इन राज्यों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि इस कानून का पालन नहीं किया गया, तो उन्हें इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह की खंडपीठ ने कहा कि यह एक संवेदनशील सामाजिक मुद्दा है और किसी भी कीमत पर कन्या भ्रूण हत्या को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने राज्यों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों और डायग्नोस्टिक सेंटरों की नियमित जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। यह फैसला भारत में घटते महिला-पुरुष अनुपात की समस्या से निपटने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
वहीं, एक अन्य महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) की व्याख्या पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल किसी के साथ झगड़ा करना या हाथापाई करना, विशेष रूप से जब वह पड़ोसी हो, तो उसे आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं माना जा सकता, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से साबित न हो जाए कि आरोपी का इरादा पीड़ित को आत्महत्या के लिए मजबूर करना था। यह फैसला न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने सुनाया।
यह मामला एक व्यक्ति की आत्महत्या से जुड़ा था, जिसने अपने पड़ोसी के साथ हुए झगड़े के बाद खुदकुशी कर ली थी। निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने पड़ोसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी ठहराया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलटते हुए कहा कि धारा 306 के तहत सजा देने के लिए यह आवश्यक है कि आरोपी का 'दुष्प्रेरण' (instigation) प्रत्यक्ष और स्पष्ट हो। महज किसी के साथ बहस या हाथापाई का मतलब यह नहीं है कि आपने उसे आत्महत्या के लिए उकसाया है। कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या एक जटिल मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है और इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। इस फैसले से उन मामलों में राहत मिल सकती है, जहां किसी झगड़े के बाद हुई आत्महत्या के मामले में निर्दोष लोगों को फंसाया जाता है। इन दोनों फैसलों ने एक बार फिर से यह साबित कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट देश में सामाजिक और कानूनी सुधारों को लेकर कितनी गंभीर है।