
मुस्कान कुमारी, नेशनल डेस्क |
11 जून की शाम आसमान में दिखा खगोलीय चमत्कार, लोगों ने कैमरे में कैद किया दृश्य
नई दिल्ली। 11 जून 2025 को भारत के आसमान में एक दुर्लभ खगोलीय घटना देखने को मिली, जिसे 'स्ट्रॉबेरी मून' कहा जाता है। यह जून की पूर्णिमा थी, जो खगोलीय दृष्टि से इस बार बेहद खास रही। 'मेजर लूनर स्टैंडस्टिल' के कारण यह चंद्रमा लगभग 20 वर्षों में सबसे निम्न क्षितिज पर दिखाई दिया। इस दौरान उसका रंग सुनहरा-नारंगी प्रतीत हुआ, जिसने देशभर में खगोल प्रेमियों और आम लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
इतिहास और परंपरा से जुड़ा है नाम
'स्ट्रॉबेरी मून' शब्द की उत्पत्ति उत्तरी अमेरिका की अल्गोंक्विन जनजातियों से हुई थी। वे इसे स्ट्रॉबेरी की फसल आने का संकेत मानते थे। यह पूर्णिमा वसंत के अंत और गर्मी की शुरुआत का प्रतीक मानी जाती है। हालांकि इसे 'स्ट्रॉबेरी' कहा जाता है, लेकिन चंद्रमा का रंग सामान्य रूप से वैसा नहीं होता। इसे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में रोज़ मून, हॉट मून और मीड मून जैसे नामों से भी जाना जाता है।
इस बार की पूर्णिमा क्यों थी खास
इस वर्ष स्ट्रॉबेरी मून और भी खास इसलिए बन गई क्योंकि यह 'मेजर लूनर स्टैंडस्टिल' के दौरान देखी गई। यह एक दुर्लभ खगोलीय घटना है, जो हर 18.6 वर्षों में घटित होती है, जब चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर अपनी कक्षा में अत्यधिक झुकाव पर पहुंचता है। इससे वह क्षितिज के बहुत करीब दिखाई देता है और वातावरण की स्थिति के कारण उसका रंग सुनहरा या नारंगी प्रतीत होता है। पिछली बार यह दृश्य 2006 में देखने को मिला था और अगली बार यह 2043 में दिखेगा।
भारत में शानदार नज़ारा
यह दृश्य भारत में 11 जून को सूर्यास्त के बाद शाम 7:15 से 8:00 बजे IST के बीच पूर्वोत्तर दिशा में देखा गया। चंद्रमा का चरमोत्कर्ष रात 1:14 बजे IST पर था, लेकिन सूर्यास्त के समय उसकी निम्न स्थिति ने दृश्य को और भी भव्य बना दिया।
इन शहरों से मिला बेहतरीन दृश्य
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, अहमदाबाद और जयपुर जैसे शहरों में इस चंद्र दृश्य को स्पष्ट रूप से देखा गया। विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां प्रकाश प्रदूषण कम था—जैसे समुद्र तट, खुले मैदान, ऊंचे स्थान और ग्रामीण इलाके—वहां चंद्रमा का सौंदर्य और भी निखर कर सामने आया।
ऐसी घटनाओं को देखने के टिप्स
खगोलीय घटनाओं का बेहतर अवलोकन करने के लिए खुले और ऊंचे स्थानों का चयन करना उपयुक्त माना जाता है, जहां कृत्रिम रोशनी कम हो और आकाश साफ हो। DSLR कैमरे, ट्रिपोड, दूरबीन या टेलीस्कोप की सहायता से चंद्रमा की सतह और रंग को अधिक स्पष्टता से देखा जा सकता है। सूर्यास्त के समय पूर्वोत्तर दिशा की ओर देखना सबसे उपयुक्त बताया गया।
विज्ञान के दृष्टिकोण से भी अहम
खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार, इस प्रकार की घटनाएं पृथ्वी और चंद्रमा के गुरुत्वीय संबंधों को समझने में सहायक होती हैं। 'मेजर लूनर स्टैंडस्टिल' चंद्रमा की कक्षा, झुकाव और परिक्रमा संबंधी बदलावों के विश्लेषण के लिए एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है। इससे वैज्ञानिकों को सटीक गणनाएं और अनुसंधान करने का मौका मिलता है।
देशभर में उत्साह और सोशल मीडिया पर छाया चंद्रमा
भारत के कई हिस्सों में लोगों ने इस अनोखे नज़ारे को कैमरे में कैद किया और सोशल मीडिया पर साझा किया। ट्विटर, इंस्टाग्राम और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर ‘#StrawberryMoon’ ट्रेंड करता रहा। दिल्ली का इंडिया गेट, मुंबई का मरीन ड्राइव और कोलकाता का मैदान जैसे स्थानों पर लोगों की भीड़ इस दृश्य को निहारने के लिए जुटी।
शहरों में समय और स्थान की झलक
दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, चेन्नई, अहमदाबाद और जयपुर जैसे प्रमुख शहरों में शाम 7:15 बजे से 8:00 बजे के बीच इस चंद्र दृश्य को देखा गया। दिल्ली और जयपुर में खुले मैदान और पहाड़ी इलाकों से दृश्य बेहद आकर्षक रहा, जबकि मुंबई और चेन्नई में समुद्र तटों से लोगों ने इसे देखा। कोलकाता और बेंगलुरु में पूर्वोत्तर दिशा की ओर खुले क्षेत्रों से दृश्यता बेहतर रही।
लोगों में रहा विशेष आकर्षण
खगोल प्रेमियों के अलावा आम लोग, बच्चे और परिवार इस अद्वितीय दृश्य को देखने के लिए उत्साहित दिखे। देश के विभिन्न हिस्सों में स्कूलों, विज्ञान केंद्रों और खगोल विज्ञान संस्थानों ने रात्रिकालीन स्काई वॉचिंग कार्यक्रम आयोजित किए। इन आयोजनों में बड़ी संख्या में छात्रों और युवाओं ने भाग लिया, जिससे विज्ञान और खगोल शास्त्र के प्रति उत्साह और रुचि का संचार हुआ।