मुस्कान कुमारी, हेल्थ डेस्क
शहर की भागदौड़, परिवार की जिम्मेदारियां और काम के अंतहीन दबाव—ये सब मानसिक स्वास्थ्य को चुपचाप खोखला कर देते हैं। लेकिन ऑस्ट्रेलिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की ताजा खोज से उम्मीद की किरण जगी है: थोड़ी सी हरियाली ही काफी है मानसिक समस्याओं से बचाव के लिए। बीएमजे क्लाइमेट जर्नल में प्रकाशित इस बहु-देशीय अध्ययन में पाया गया कि शहरी इलाकों में हरी जगहों की उपलब्धता से मानसिक विकारों के कारण अस्पताल में भर्ती होने की संभावना 7 प्रतिशत तक कम हो जाती है। 2000 से 2019 तक सात देशों के 11.4 मिलियन भर्ती के आंकड़ों पर आधारित यह रिसर्च बताती है कि प्रकृति का स्पर्श दवा से ज्यादा असरदार साबित हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि शहरों में पार्क और पेड़-पौधों को बढ़ावा देकर हम लाखों जिंदगियां बचा सकते हैं।
वैश्विक चुनौती: मानसिक स्वास्थ्य संकट में हरियाली की भूमिका
मानसिक स्वास्थ्य आज वैश्विक महामारी बन चुका है। अध्ययन के अनुसार, 2021 में 11 अरब लोग मानसिक विकारों से जूझ रहे थे, जो वैश्विक रोग बोझ का 14 प्रतिशत है। आर्थिक और सामाजिक नुकसान अरबों डॉलर का है। मोनाश यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शैंडी ली और युमिंग गुओ के नेतृत्व में यह सबसे बड़ा अध्ययन है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चिली, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड के 6,842 स्थानों के डेटा का विश्लेषण किया गया।
हरियाली को नॉर्मलाइज्ड डिफरेंस वेगिटेशन इंडेक्स (एनडीवीआई) से मापा गया, जो सैटेलाइट से वनस्पति घनत्व बताता है। आंकड़ों में मौसम, आबादी, प्रदूषण, सामाजिक-आर्थिक स्थिति और मौसमी बदलावों को ध्यान में रखा गया। नतीजा चौंकाने वाला: हरियाली से सभी प्रकार के मानसिक विकारों में 7 प्रतिशत कमी, जिसमें नशीली दवाओं का दुरुपयोग (9%), साइकोटिक विकार (7%) और डिमेंशिया (6%) शामिल हैं। शहरी क्षेत्रों में यह प्रभाव सबसे मजबूत दिखा, जहां सालाना 7,712 भर्तियां रोकी जा सकती हैं।
अध्ययन का खुलासा: हरी जगहें कैसे काम करती हैं मानसिक शांति के लिए
शहरों में रहने वालों के लिए यह खोज वरदान है। अध्ययन में पाया गया कि हरियाली का असर उम्र, लिंग और मौसम पर निर्भर करता है। शहरी इलाकों में 10 प्रतिशत हरियाली बढ़ने से दक्षिण कोरिया में 100,000 में से 1 भर्ती कम हुई, जबकि न्यूजीलैंड में 1,000। ब्राजील, चिली और थाईलैंड में हर विकार पर सकारात्मक प्रभाव दिखा, लेकिन ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में कुछ मामलों में मामूली वृद्धि भी नजर आई—शायद सांस्कृतिक या जलवायु कारणों से। प्रोफेसर गुओ ने कहा, "यह अध्ययन शहरी डिजाइन और स्वास्थ्य नीतियों को नई दिशा देगा। हरी जगहें न सिर्फ मानसिक स्वास्थ्य बचाती हैं, बल्कि स्वास्थ्य व्यय कम करती हैं, उत्पादकता बढ़ाती हैं और समुदाय को मजबूत बनाती हैं।" मौसमी पैटर्न भी महत्वपूर्ण: गर्मियों में पार्कों का इस्तेमाल ज्यादा होता है, जो तनाव कम करता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि प्रकृति का संपर्क तनाव हार्मोन कोर्टिसोल घटाता है, सेरोटोनिन बढ़ाता है और एकांत का एहसास देता है।
क्यों है यह अध्ययन मील का पत्थर: पहले से अलग क्या है
पिछली रिसर्च हरियाली और मानसिक स्वास्थ्य के बीच लिंक तो बता चुकी थी, लेकिन यह पहली बार इतने बड़े पैमाने पर बहु-देशीय विश्लेषण है। शोधकर्ताओं ने मूड डिसऑर्डर, व्यवहारिक विकार, चिंता और डिमेंशिया जैसे छह विशिष्ट श्रेणियों को कवर किया। आंकड़ों को उम्र, लिंग, शहरीकरण और मौसम के आधार पर वर्गीकृत किया गया। शहरीकरण के दौर में यह खोज समयोचित है। भारत जैसे देशों में, जहां 35 प्रतिशत आबादी शहरों में रहती है, मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं 20 प्रतिशत सालाना बढ़ रही हैं। अध्ययन सुझाव देता है कि भविष्य की रिसर्च विभिन्न प्रकार की हरी जगहों—जैसे पार्क बनाम जंगल—पर फोकस करे, साथ ही उनकी गुणवत्ता और पहुंच पर। प्रोफेसर ली ने जोर दिया, "हरियाली का फायदा बढ़ने के साथ बढ़ता है, कोई सीमा नहीं। शहरों को हरा-भरा बनाने से स्वास्थ्य प्रणाली पर बोझ कम होगा।"
शहरवासियों के लिए संदेश: आज से अपनाएं हरी आदतें
यह अध्ययन शहरवासियों को सीधा संदेश देता है: नजदीकी पार्क में टहलें, बालकनी में पौधे लगाएं। रोजाना 30 मिनट प्रकृति के करीब रहने से चिंता 20 प्रतिशत कम हो सकती है। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि नीतिनिर्माताओं को हरे क्षेत्रों को अनिवार्य बनाना चाहिए। आर्थिक लाभ भी स्पष्ट: कम भर्तियां मतलब कम खर्च, ज्यादा उत्पादकता। मानसिक स्वास्थ्य अब कोई लग्जरी नहीं, बल्कि जरूरत है। यह अध्ययन साबित करता है कि प्रकृति का सरल स्पर्श ही सबसे मजबूत दवा है। शहरों को हरा करने का समय आ गया है, ताकि आने वाली पीढ़ियां तनावमुक्त रह सकें।







