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हवाई जहाज में क्यों नहीं होती 13 नंबर सीट? जानिए सच!

ट्रैवल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

नई दिल्ली: हवाई यात्रा के दौरान अगर आपने कभी सीट नंबरों पर गौर किया है, तो एक अजीब बात जरूर नजर आई होगी- ज्यादातर एयरलाइंस में 13 नंबर की रो बस नाम की नहीं होती। रो 12 के बाद सीधे 14 आ जाती है। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि एयरलाइंस का सोचा-समझा फैसला है, जिसके पीछे अंधविश्वास और बिजनेस की चतुराई छिपी हुई है। दुनिया भर में लाखों यात्री इस वजह से बेखबर उड़ान भरते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह छोटा-सा बदलाव कितना बड़ा असर डालता है?

एयरलाइंस कंपनियां जानबूझकर 13 नंबर की सीट को हटाती हैं, क्योंकि कई संस्कृतियों में इस नंबर को अशुभ माना जाता है। पश्चिमी देशों में यह डर इतना गहरा है कि इसे 'ट्रिस्काइडेकाफोबिया' नाम दिया गया है। ईसाई परंपरा में लास्ट सपर की घटना से जुड़ी मान्यता है कि 13वें व्यक्ति के आने के बाद ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया। इसी तरह, नॉर्स मिथकों में भी 13 को लेकर नकारात्मक कहानियां प्रचलित हैं। नतीजा? एयरलाइंस नहीं चाहतीं कि कोई यात्री सिर्फ एक नंबर की वजह से असहज महसूस करे या फ्लाइट बदलने का सोचे।

यात्रियों का डर दूर करने की साइकोलॉजिकल ट्रिक

हवाई यात्रा वैसे भी तनावपूर्ण होती है। ऊंचाई का डर, टर्बुलेंस की चिंता- इन सबके बीच अगर सीट नंबर ही मन में बुरा खयाल लाए, तो एयरलाइंस के लिए मुसीबत। इसलिए, कंपनियां इस नंबर को छोड़ देती हैं, ताकि यात्री रिलैक्स रहें। यह सिर्फ सुपरस्टिशन नहीं, बल्कि एक स्मार्ट बिजनेस मूव है। कल्पना कीजिए, कोई यात्री 13 नंबर की सीट पर बैठने से मना कर दे और दूसरी फ्लाइट की तलाश करे- इससे कंपनी को नुकसान। इंटरनेशनल फ्लाइट्स में, जहां अलग-अलग देशों के लोग सफर करते हैं, यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। एयरलाइंस जैसे लुफ्थांसा, एयर फ्रांस और कई अमेरिकी कंपनियां सालों से इस प्रथा को फॉलो कर रही हैं।

इसके अलावा, कुछ देशों में 13 से अलग नंबरों को भी अशुभ माना जाता है। मिसाल के तौर पर, इटली और ब्राजील में 17 नंबर से डर लगता है। रोमन अंकों में 17 को लिखने का तरीका लैटिन में 'मैं अपनी जिंदगी जी चुका हूं' जैसा मतलब निकालता है। इसलिए, वहां की एयरलाइंस 17 को भी छोड़ सकती हैं। लेकिन 13 का असर सबसे ज्यादा वैश्विक है, क्योंकि पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव दुनिया भर में फैला हुआ है।

क्या सिर्फ अंधविश्वास है या विज्ञान भी जुड़ा?

हालांकि मुख्य वजह सुपरस्टिशन है, लेकिन एयरलाइंस इसे यात्रियों की मेंटल हेल्थ से जोड़कर देखती हैं। स्टडीज बताती हैं कि उड़ान के दौरान 40 प्रतिशत से ज्यादा लोग किसी न किसी डर से जूझते हैं। ऐसे में, एक छोटा-सा बदलाव जैसे सीट नंबर हटाना, यात्रा को ज्यादा सुखद बना सकता है। एयरलाइंस के डिजाइनर प्लेन के लेआउट बनाते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि नंबरिंग में कोई गैप न लगे, लेकिन 13 को स्किप कर दिया जाता है। इससे सीटों की कुल संख्या पर कोई फर्क नहीं पड़ता, बस नंबर बदल जाते हैं।

दुनिया की कई बड़ी एयरलाइंस जैसे डेल्टा, यूनाइटेड और यहां तक कि कुछ भारतीय कंपनियां भी इस ट्रेंड को अपनाती हैं। हालांकि, सभी एयरलाइंस ऐसा नहीं करतीं। कुछ एशियाई कंपनियां जैसे एयर इंडिया या जेट एयरवेज (जो अब बंद हो चुकी है) में 13 नंबर की सीट मिल सकती है, क्योंकि यहां की संस्कृति में 13 से वैसा डर नहीं जुड़ा। लेकिन ग्लोबल ट्रैवल में, जहां यात्री मिक्स होते हैं, ज्यादातर कंपनियां सेफ साइड खेलती हैं।

बिजनेस के नजरिए से क्यों फायदेमंद?

एयरलाइंस इंडस्ट्री में कॉम्पिटिशन इतना तगड़ा है कि छोटी-छोटी बातें मायने रखती हैं। अगर कोई यात्री 13 नंबर की वजह से असहज हो, तो वह अगली बार दूसरी कंपनी चुन सकता है। इसलिए, कंपनियां कस्टमर सेटिस्फैक्शन को प्राथमिकता देती हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, यात्रा इंडस्ट्री में सुपरस्टिशन से जुड़े फैसले सालाना करोड़ों का कारोबार प्रभावित करते हैं। होटलों में भी 13वीं मंजिल या रूम नंबर 13 को अक्सर स्किप किया जाता है, ठीक उसी तरह जैसे प्लेन में।

यह प्रथा दशकों पुरानी है। 20वीं सदी के शुरुआती दिनों से एयरलाइंस ने इसे अपनाना शुरू किया, जब हवाई यात्रा अमीरों की चीज थी और कस्टमर की हर छोटी इच्छा पूरी की जाती थी। आज भी, जब लाखों लोग रोज उड़ान भरते हैं, यह ट्रेडिशन बरकरार है। दिलचस्प बात यह है कि कुछ यात्री तो खासतौर पर 13 नंबर की सीट मांगते हैं, अगर उपलब्ध हो, क्योंकि वे इसे लकी मानते हैं। लेकिन एयरलाइंस रिस्क नहीं लेतीं।

दुनिया भर में अलग-अलग मान्यताएं

13 का डर सिर्फ ईसाई या पश्चिमी संस्कृति तक सीमित नहीं। कई अन्य देशों में भी संख्याओं से जुड़े अंधविश्वास हैं। चीन में 4 नंबर को अशुभ माना जाता है, क्योंकि इसका उच्चारण 'मौत' जैसा लगता है। इसलिए, वहां की एयरलाइंस और होटल 4 को स्किप कर सकती हैं। जापान में भी 4 और 9 से डर लगता है। लेकिन 13 का प्रभाव इतना व्यापक है कि यह ग्लोबल स्टैंडर्ड बन गया है।

एयरलाइंस के लिए सुरक्षा सबसे ऊपर है, लेकिन कस्टमर का मनोबल भी उतना ही जरूरी। इसलिए, वे ऐसे छोटे बदलाव करती रहती हैं। अगली बार जब आप फ्लाइट में बैठें, तो सीट नंबर चेक करके देखिए- शायद 13 गायब मिले। यह छोटी-सी बात हवाई यात्रा को और रोचक बना देती है।