51 दिन जेल में रहने के बाद दुष्कर्म के आरोपी की बरी, महिला ने कहा; "गलतफहमी हो गई थी"

नेशनल डेस्क, वेरोनिका राय |
कोलकाता की एक अदालत ने बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार एक व्यक्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने पाया कि शिकायतकर्ता महिला के बयान में विरोधाभास था और उसने खुद स्वीकार किया कि मामला केवल गलतफहमी के कारण दर्ज हुआ था।
मामला कैसे शुरू हुआ?
24 नवंबर 2020 को साल्ट लेक थाने में एक महिला ने शिकायत दर्ज कराई कि 2017 से उसका आरोपी व्यक्ति के साथ प्रेम संबंध था। महिला के अनुसार, उसने शादी का वादा करके उसे साल्ट लेक के एक होटल में बुलाया और शारीरिक संबंध बनाए। महिला ने आरोप लगाया कि अगली सुबह आरोपी ने शादी से इनकार कर दिया और वहां से भाग गया।
इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने 25 नवंबर 2020 को आरोपी को गिरफ्तार कर लिया। उसे लगभग 51 दिन जेल में रहना पड़ा और 14 जनवरी 2021 को अदालत से जमानत मिली।
सुनवाई के दौरान क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान आरोपी ने खुद को निर्दोष बताया और कहा कि महिला के साथ संबंध सहमति से थे। अदालती दस्तावेज़ों के अनुसार, महिला ने भी अपना बयान बदल दिया। उसने कहा कि उसने गलतफहमी में शिकायत दर्ज कराई थी और यह भी दावा किया कि एफआईआर उसके मित्र ने लिखी थी। महिला ने अदालत को बताया कि उसने बिना पढ़े उस पर हस्ताक्षर कर दिए और अब उसे याद भी नहीं कि उसमें क्या लिखा था।
महिला ने यह भी कहा कि उसने आरोपी के खिलाफ जानबूझकर कोई गंभीर आरोप नहीं लगाए थे।
अदालत का क्या कहना था?
28 अगस्त को आए फैसले में अदालत ने साफ कहा कि महिला के बयान और साक्ष्य से यह साबित नहीं होता कि आरोपी ने बलात्कार या धोखाधड़ी की। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ता के अलावा अभियोजन पक्ष के किसी भी अन्य गवाह—जैसे महिला की मां, दादी और पड़ोसी—ने आरोपी के खिलाफ कोई आरोप पुष्ट नहीं किया।
जज ने कहा, "ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों वयस्क व्यक्तियों के बीच संबंध सहमति से बने थे।" अदालत ने यह भी कहा कि महिला ने अपने साक्ष्य के दौरान भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और धारा 417 (धोखाधड़ी) के तहत आरोपी के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं किया।
क्या मिला नतीजा?
इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया। फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि केवल आरोप लगाने भर से किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। ठोस सबूत और विश्वसनीय गवाही के बिना अपराध साबित नहीं होता।
क्यों अहम है यह फैसला?
यह मामला ऐसे आरोपों में सावधानी की जरूरत पर जोर देता है जहाँ व्यक्तिगत संबंधों को लेकर गलतफहमी से गंभीर अपराध के आरोप लग जाते हैं। अदालत ने यह संकेत भी दिया कि सहमति से बने संबंधों को बाद में जबरन अपराध नहीं कहा जा सकता, जब तक कोई स्पष्ट सबूत न हो।
51 दिन जेल में रहने के बाद निर्दोष साबित हुए इस व्यक्ति का कहना है कि उसने झूठे आरोपों के कारण मानसिक और सामाजिक नुकसान झेला। वहीं महिला ने अदालत में साफ कहा कि मामला केवल गलतफहमी थी और उसने जानबूझकर कोई झूठा आरोप नहीं लगाया।
यह फैसला न केवल आरोपी के लिए राहत है, बल्कि कानून और न्याय व्यवस्था के लिए भी एक मिसाल है कि किसी भी मामले में निष्पक्ष सुनवाई और ठोस सबूत कितने जरूरी हैं। अदालत का रुख साफ है—"बिना प्रमाण के आरोप टिकते नहीं, और सहमति से बने संबंधों को बलात्कार नहीं कहा जा सकता।"