
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
अमेरिका में एच-1बी वीज़ा आवेदन की नई फीस वृद्धि ने विदेशियों, खासकर भारतीय पेशेवरों और आईटी कंपनियों के बीच हलचल मचा दी थी। हाल ही में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा आवेदन शुल्क को 100,000 अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाने का निर्देश दिया था। इस फैसले का उद्देश्य उच्च कौशल वाले कर्मचारियों को प्राथमिकता देना और कम अनुभव वाले आवेदकों को फ़िल्टर करना बताया गया था। हालांकि, इस घोषणा के बाद उपजे विरोध और स्वास्थ्य क्षेत्र की जरूरतों को देखते हुए अब ट्रंप प्रशासन नरम रुख अपनाता दिख रहा है।
डॉक्टरों को मिल सकती है राहत
ट्रंप प्रशासन ने संकेत दिया है कि अमेरिका जाने वाले डॉक्टरों और कुछ अन्य विशेष मामलों में आवेदकों को बढ़ी हुई फीस से छूट मिल सकती है। यह निर्णय राष्ट्रीय हित और स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत को ध्यान में रखकर लिया गया है। अमेरिका के कई अस्पताल और स्वास्थ्य प्रणालियां दूरदराज़ के इलाकों में काम करने के लिए प्रशिक्षित विदेशी डॉक्टरों और विशेषज्ञों पर निर्भर हैं। ऐसे में शुल्क वृद्धि से उनकी भर्ती प्रक्रिया प्रभावित होती। इसीलिए अब सरकार डॉक्टरों को छूट देने पर विचार कर रही है।
किन मामलों में छूट हो सकती है?
छूट हो सकती है उन डॉक्टरों के लिए जो नई आवेदन कर रहे हों, विशेष रूप से मेडिकल रेज़िडेंट्स और ऐसे विशेषज्ञ जिनकी सेवाएँ “राष्ट्रीय हित” में आती हों—उदाहरण के लिए ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाएँ या ऐसे कार्य जहाँ स्थानीय डॉक्टरों की भारी कमी हो। यह स्पष्ट नहीं है कि यह छूट सभी डॉक्टरों को मिलेगी या प्रत्येक मामले पर अलग से निर्णय होगा।
प्रभावितों के लिए क्या मायने रखेगा?
यदि डॉक्टरों को वास्तविक रूप से इस भारी शुल्क से छूट मिल जाती है, तो इससे:
- भारतीय मेडिकल ग्रेजुएट्स और रेज़िडेंट्स के लिए अमेरिका में काम करने की राह आसान होगी।
- अस्पतालों पर आर्थिक दबाव कम होगा, खासकर उन अस्पतालों में जो कम संसाधन वाले इलाकों में काम करते हैं।
- अमेरिकी स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में जहाँ डॉक्टरों की कमी है; उन्हें राहत मिलेगी।
मौजूदा वीज़ा धारकों पर असर नहीं
आईटी कंपनियों के संगठन नासकॉम के अनुसार, नई फीस वृद्धि मौजूदा वीज़ा धारकों पर लागू नहीं होगी। यह नियम केवल नए आवेदनों पर लागू होगा और वह भी 2026 से। इस बीच कंपनियों को अमेरिका में स्किलिंग प्रोग्राम और स्थानीय भर्ती को और बेहतर बनाने का अवसर मिलेगा। नासकॉम ने यह भी स्पष्ट किया कि बढ़ी हुई फीस केवल एक बार देनी होगी, जिससे अनिश्चितता काफी हद तक कम होगी।
भारतीय आईटी कंपनियों पर सीमित असर
नासकॉम के आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय आईटी कंपनियों ने पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका में अपनी वीज़ा निर्भरता घटाई है और स्थानीय स्तर पर भर्ती बढ़ाई है। उदाहरण के लिए, भारतीय कंपनियों को जारी एच-1बी वीज़ा की संख्या 2015 में 14,792 थी, जो 2024 में घटकर 10,162 रह गई है। इससे स्पष्ट है कि नए नियमों का असर भारतीय आईटी सेक्टर पर बहुत सीमित होगा।
स्थानीय कर्मचारियों के बराबर वेतन
एच-1बी वीज़ा पर काम करने वाले कर्मचारियों को स्थानीय कर्मचारियों के बराबर वेतन दिया जाता है। नासकॉम का कहना है कि यह कार्यक्रम अमेरिका में आवश्यक कौशल की कमी को पूरा करता है और नवाचार को प्रोत्साहित करता है। इस कारण भारतीय आईटी कंपनियों पर अल्पकालिक असर बेहद कम रहेगा। हालांकि, मध्यम अवधि में बढ़ी हुई लागत एक चुनौती बन सकती है।
नवाचार और वैश्विक सहयोग को बढ़ावा
नासकॉम और उद्योग जगत का मानना है कि एच-1बी वीज़ा के तहत कुशल प्रतिभा की आवाजाही से अमेरिका और भारत दोनों को फायदा होता है। इससे अनुसंधान तेज होता है, भविष्य की परियोजनाओं में स्पष्टता आती है और वैश्विक नवाचार में भारत की स्थिति और मजबूत होती है।
कुल मिलाकर, ट्रंप प्रशासन ने स्वास्थ्य सेवाओं और राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए फीस नियमों में लचीलापन दिखाया है। इसका सीधा फायदा डॉक्टरों और आईटी पेशेवरों को मिलेगा, जबकि भारतीय कंपनियों पर इसका प्रभाव सीमित ही रहेगा।