स्टेट डेस्क, आर्या कुमारी।
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में भारत के प्रथम राष्ट्रपति और देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें छात्रों और शिक्षकों ने उनकी सादगी, मानवीय मूल्यों और अद्वितीय नेतृत्व क्षमता से प्रेरणा लेने का संकल्प लिया। जुबली हॉल में आयोजित यह कार्यक्रम डॉ. प्रसाद के जीवन-संघर्ष, आदर्शों और राष्ट्र निर्माण में उनके अमूल्य योगदान को याद करने का अवसर बना।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी ने की। उन्होंने कहा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारतीय इतिहास की एक उज्ज्वल हस्ती थे, जिनके जीवन में संघर्ष तो थे, लेकिन उनसे भी बड़ी थी उनकी सीखने की ललक और देश के प्रति निष्ठा। कुलपति ने बताया कि राष्ट्रपति के रूप में डॉ. प्रसाद ने संवैधानिक मर्यादा और पद की गरिमा का श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत किया। वे विधेयकों पर गहन अध्ययन कर सरकार को सुधार सुझाव भेजते थे, जो उनकी दूरदृष्टि को दर्शाता है।
कुलसचिव डॉ. दिव्या रानी हांसदा ने डॉ. प्रसाद की विनम्रता और सरलता को उनकी सबसे बड़ी पहचान बताया। उन्होंने कहा कि राजेंद्र बाबू के लिए पद नहीं, बल्कि विचार और कर्म की महानता महत्वपूर्ण थी। संविधान सभा में उनकी भूमिका और ग्रामीण भारत को मजबूत करने की उनकी सोच आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। शिक्षा संकायाध्यक्ष प्रो. शशि भूषण राय ने उनके मूल्यपरक शिक्षा और संस्कारों की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यदि युवा पीढ़ी उनके बताए मार्ग पर चले, तो समाज और राष्ट्र दोनों उन्नति की ओर अग्रसर होंगे। इसी क्रम में प्रो. अजय नाथ झा ने कहा कि डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जीवनशैली मानवीय गुणों और आदर्शों से परिपूर्ण थी, जिन्हें आत्मसात करना आज के समय की आवश्यकता है।
राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. मुनेश्वर यादव ने विश्वविद्यालय में पहली बार उनकी जयंती मनाए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में डॉ. प्रसाद की भूमिका इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज है और उनका जीवन प्रत्येक नागरिक के लिए मार्गदर्शक है। कार्यक्रम के दौरान समाजशास्त्र विभाग द्वारा आयोजित भाषण प्रतियोगिता के विजेताओं को कुलपति ने सम्मानित किया। विभा कुमारी को प्रथम, वैष्णवी कुमारी को द्वितीय तथा लाल कुमार और तबस्सुम परवीन को संयुक्त रूप से तृतीय स्थान के लिए प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। इसके अतिरिक्त विभिन्न कॉलेजों के एनएसएस स्वयंसेवकों और छात्रों को भी प्रमाणपत्र प्रदान किए जाएंगे।
संगोष्ठी का संचालन डॉ. सुनीता कुमारी और डॉ. प्रमोद गांधी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सरिता कुमारी ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की शुरुआत डॉ. राजेंद्र प्रसाद के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पांजलि और दीप प्रज्वलन से हुई। आयोजकों ने बताया कि 1884 में सारण जिले के जीरादेई गांव में जन्मे डॉ. प्रसाद अपनी सादगी, कर्तव्यनिष्ठा और आदर्शों के कारण आज भी राष्ट्र के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।







