
स्टेट डेस्क, श्रेयांश पराशर |
राजद के संभावित नए प्रदेश अध्यक्ष मंगनी लाल मंडल का नाम बिहार की राजनीति में नया नहीं है। पिछले चार दशकों से वे राजनीतिक गलियारों में सक्रिय रहे हैं, लेकिन उनके जीवन में जितनी राजनीति है, उतनी ही विवादों की लंबी फेहरिस्त भी। लोकसभा सदस्यता विवाद, पार्टी से निष्कासन, पारिवारिक आरोप और संपत्ति को लेकर जांच—उनका सफर हमेशा सुर्खियों में रहा है।
राजनीतिक करियर:
मंगनी लाल मंडल का राजनीतिक सफर 1986 में शुरू हुआ जब वे पहली बार बिहार विधान परिषद के सदस्य बने। वे 1986 से 2004 तक लगातार तीन कार्यकाल विधान परिषद में रहे। इसके बाद वे 2004 से 2009 तक राज्यसभा सांसद बने। 2009 में उन्होंने मधेपुरा लोकसभा सीट से जीत दर्ज की और 2014 तक लोकसभा सांसद रहे।
लोकसभा सदस्यता विवाद:
2009 के लोकसभा चुनाव के बाद उनके खिलाफ आरोप लगे कि उन्होंने अपनी पहली पत्नी और उसकी संपत्ति की जानकारी चुनावी हलफनामे में छिपाई। इस पर 2011 में पटना हाईकोर्ट ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी। हालांकि, फरवरी 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला पलटते हुए कहा कि इससे चुनाव नतीजे प्रभावित नहीं हुए, और उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई।
2009 का चुनाव और नीतीश कुमार की सक्रियता:
जब वे 2009 में जदयू के उम्मीदवार थे, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके समर्थन में रिकॉर्ड 6 जनसभाएं कीं, जो अब तक किसी एक लोकसभा क्षेत्र के लिए किसी मुख्यमंत्री द्वारा सबसे ज़्यादा है।
2014 में जदयू से निष्कासन:
2014 में मंगनी लाल मंडल को जदयू ने पार्टी विरोधी गतिविधियों और नरेंद्र मोदी व लालू प्रसाद यादव की सार्वजनिक तारीफ के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया। इसके बाद उनकी छवि दलबदलू नेता के रूप में स्थापित हो गई।
दलबदल की छवि:
मंडल समय-समय पर राजनीतिक समीकरण बदलते रहे हैं। वे लोकदल, जनता दल, राजद, जदयू और अब एक बार फिर राजद के करीब बताए जा रहे हैं। उनकी राजनीति वैचारिक कम, अवसरवादी ज्यादा मानी जाती रही है।
पारिवारिक विवाद:
उनकी पत्नी ने उन पर घरेलू हिंसा, धमकी देने और मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया था। उनके बेटे से भी उनका विवाद सामने आया, जिसमें मारपीट और धमकी की बातें पुलिस तक पहुंचीं।
संपत्ति विवाद:
उन पर सरकारी जमीन के गलत उपयोग और आय से अधिक संपत्ति जमा करने के भी आरोप लगे हैं। RTI और स्थानीय जांच रिपोर्टों में इनकी कई संपत्तियों की वैधता पर सवाल उठे हैं।
मंगनी लाल मंडल का नाम यदि RJD के प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए तय होता है, तो पार्टी को नया नेतृत्व तो मिलेगा, पर साथ में विवादों की विरासत भी। एक ऐसे नेता का चुनाव, जो वैचारिक रूप से अस्थिर और व्यक्तिगत रूप से विवादित रहे हैं, RJD की छवि और रणनीति दोनों पर सवाल खड़े कर सकता है।