नेशनल डेस्क, आर्या कुमारी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि "कई चीजें बिना पंजीकरण के मौजूद हैं, और यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है." उन्होंने यह बात बेंगलुरु में आयोजित 'संघ की 100 वर्ष यात्रा: नए क्षितिज' कार्यक्रम में रखी।
बेंगलुरु में हुए एक संबोधन के दौरान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि हिंदू होने का अर्थ क्या है। यहां उनसे यह भी पूछा गया कि आरएसएस की कानूनी मान्यता क्या है और क्या संगठन अपनी मर्जी से या कानूनी दायित्वों से बचने के लिए अपंजीकृत है। इस पर उन्होंने कहा कि "कई चीजें बिना पंजीकरण के मौजूद हैं, और यहां तक कि हिंदू धर्म भी पंजीकृत नहीं है."
भागवत ने यह टिप्पणी कार्यक्रम के दूसरे दिन हुए प्रश्नोत्तर सत्र में दी। उन्होंने कहा कि आरएसएस के पंजीकरण से जुड़े सवालों का जवाब कई बार दिया जा चुका है। जो लोग ऐसे सवाल उठाना चाहते हैं, वही इन्हें बार-बार दोहराते रहते हैं और हमें बार-बार जवाब देना पड़ता है। यह मुद्दा पहली बार नहीं उठा है।
उन्होंने बताया कि संघ की शुरुआत 1925 में हुई थी और पूछा कि क्या आप यह मानते हैं कि हम ब्रिटिश शासन में जाकर पंजीकृत होते, जबकि हमारे सरसंघचालक उसी सत्ता के खिलाफ लड़ रहे थे। भागवत ने कहा कि आजादी के बाद भारत के कानून पंजीकरण को अनिवार्य नहीं बनाते। उन्होंने कहा कि कानून अपंजीकृत व्यक्तिगत संस्थाओं को भी वैधता देता है और हमें भी उसी श्रेणी में रखा गया है। हम मान्यता प्राप्त संगठन हैं।
आरएसएस एक वैध संगठन
भागवत के अनुसार, एक समय आयकर विभाग ने उनसे कर वसूलने की बात कही और मामला अदालत तक गया। अदालत ने माना कि संघ व्यक्तियों का समूह है और गुरु दक्षिणा (दान) आयकर से मुक्त है। उन्होंने यह भी कहा कि हमें तीन बार प्रतिबंधित किया गया। इसका मतलब है कि सरकार भी हमारे अस्तित्व को मानती है। अगर हम होते ही नहीं, तो प्रतिबंध किस पर लगता? हर बार अदालत ने प्रतिबंध हटाया और साबित किया कि आरएसएस एक वैध संस्था है।
उन्होंने कहा कि विधानसभा और संसद में आरएसएस को लेकर लगातार सवाल और बहसें होती रहती हैं। यह सब संगठन की मान्यता को ही दर्शाता है। हम न तो असंवैधानिक हैं और न ही कानून से बाहर। संविधान की मर्यादाओं में काम करते हैं, इसलिए पंजीकरण की कोई जरूरत नहीं।
भागवत ने दोहराया कि कई चीजें बिना पंजीकरण के अस्तित्व में होती हैं। हिंदू धर्म भी इसका उदाहरण है। अगले दो दशकों के लिए पूछे गए आरएसएस के लक्ष्य पर उन्होंने कहा कि उद्देश्य संपूर्ण हिंदू समाज को एकजुट करना, गुणवत्ता और अनुशासन देना है ताकि भारत समृद्ध और मजबूत बने और धर्म-ज्ञान को दुनिया के साथ साझा कर सके, जिससे दुनिया सुखी और शांतिपूर्ण हो।
हमारा एकमात्र दृष्टिकोण
उन्होंने कहा कि यह कार्य समाज और राष्ट्र दोनों को मिलकर करना है। हम हिंदू समाज को इसी लक्ष्य के लिए तैयार कर रहे हैं। यही हमारा एकमात्र उद्देश्य है। इसे पूरा करने के बाद हमारे लिए आगे बढ़ने को कुछ नहीं रहेगा। संपूर्ण हिंदू समाज को संगठित करना ही हमारा आधारभूत काम है और इसे पूरा किया जाएगा। समाज के संगठन के लिए जो भी जरूरी होगा, वह किया जाएगा। हमारा लक्ष्य एक मजबूत और संगठित हिंदू समाज बनाना है।







