Ad Image
Ad Image
टाइफून मातमो तूफान को लेकर चीन में ऑरेंज अलर्ट, सेना तैयार || हमास बंधकों को करेगा रिहा, राष्ट्रपति ट्रंप ने गाजा पर बमबारी रोकने को कहा || पहलगाम हमले के बाद पता चला कौन भारत का असली मित्र: मोहन भागवत || भारत के साथ व्यापार असंतुलन कम करने का अपने अधिकारियों को पुतिन का आदेश || मेक्सिको की राष्ट्रपति शीनबाम की इजरायल से अपील, हिरासत में लिए मेक्सिको के नागरिकों को जल्दी रिहा करें || शास्त्रीय गायक पद्मविभूषण छन्नूलाल मिश्र का मिर्जापुर में निधन, PM मोदी ने दी श्रद्धांजलि || स्वदेशी और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं: मोहन भागवत || अमित शाह ने कहा, देश अगले 31 मार्च तक नक्सलवादी लाल आतंक से मुक्त होगा || भारतीय क्रिकेट टीम ने जीता एशिया कप, PM समेत पूरे देश ने दी बधाई || तमिलनाडु: एक्टर विजय की रैली में भगदड़, 31 की मौत, 40 से ज्यादा घायल

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

अमेरिकी सेना में दाढ़ी पाबंदी, धार्मिक स्वतंत्रता पर संकट

विदेश डेस्क, ऋषि राज |

अमेरिका के रक्षा विभाग (पेंटागन) ने हाल ही में एक नई ग्रूमिंग (साज-सज्जा) नीति लागू की है, जिसने सिख, मुस्लिम, यहूदी और अन्य धार्मिक समुदायों में गहरी चिंता पैदा कर दी है। इस नीति के तहत सैन्य सेवा के दौरान दाढ़ी रखने की अधिकांश छूट समाप्त कर दी गई है। धार्मिक आधार पर दाढ़ी रखने वाले सैनिकों का कहना है कि यह फैसला उनकी आस्था और पहचान पर सीधा हमला है।

नई नीति क्या कहती है?

30 सितंबर को मरीन कॉर्प्स बेस क्वांटिको (वर्जीनिया) में 800 से अधिक वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को संबोधित करते हुए रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने घोषणा की कि "सुपरफिशियल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति" जैसे दाढ़ी को अब समाप्त किया जाएगा। उनके शब्दों में, “हमारे पास नॉर्डिक पगानों की सेना नहीं है।” इसके कुछ घंटों बाद ही पेंटागन ने सभी सैन्य शाखाओं को मेमो जारी किया, जिसमें स्पष्ट निर्देश दिया गया कि अगले 60 दिनों के भीतर धार्मिक छूट सहित लगभग सभी दाढ़ी की अनुमति समाप्त कर दी जाए।

नई नीति केवल एक अपवाद रखती है—विशेष बलों (Special Forces) के लिए। उन्हें स्थानीय आबादी में घुलने-मिलने या मिशन की जरूरतों के आधार पर अस्थायी छूट दी जा सकती है। बाकी सभी सैनिकों को क्लीन-शेव रहना होगा।

पहले कैसी थी नीति?

2017 में अमेरिकी सेना ने सिख सैनिकों को पगड़ी और दाढ़ी रखने की स्थायी छूट दी थी। इसके बाद मुस्लिम सैनिकों, ऑर्थोडॉक्स यहूदियों और यहां तक कि नॉर्स पगान सैनिकों को भी धार्मिक कारणों से छूट दी गई थी। जुलाई 2025 तक सेना ने चेहरे के बालों की नीति अपडेट की थी, लेकिन धार्मिक छूट को सुरक्षित रखा गया था।

नई नीति इन सभी प्रगतिशील बदलावों को पलटते हुए 2010 से पहले के सख्त नियमों की ओर लौटती है। वास्तव में यह आदेश 1981 में आए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के गोल्डमैन बनाम वेनबर्गर फैसले से मेल खाता है, जिसमें सेना को सख्त ड्रेस और ग्रूमिंग नियम लागू करने का अधिकार दिया गया था।

सिख समुदाय की नाराज़गी

अमेरिकी सिख संगठन सिख कोअलिशन ने इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। संगठन ने कहा कि यह नीति उन वर्षों की मेहनत को बर्बाद कर रही है जिनमें सिख सैनिकों ने धार्मिक स्वतंत्रता और समावेशिता के लिए लंबी लड़ाई लड़ी।

एक सिख सैनिक ने सोशल मीडिया पर लिखा – “मेरे केश मेरी पहचान हैं। यह फैसला हमारे विश्वास और बलिदानों के साथ विश्वासघात जैसा है।”

इतिहास गवाह है कि सिख समुदाय ने अमेरिका की सेना में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। प्रथम विश्व युद्ध में भगत सिंह थिंड पहले सिख थे जिन्होंने पगड़ी पहनकर अमेरिकी सेना में सेवा की थी। इसके बाद 2011 में रब्बी मेनाचेम स्टर्न, 2016 में कैप्टन सिमरतपाल सिंह और 2022 में सिंह बनाम बर्गर मामले में अदालतों ने धार्मिक छूट के पक्ष में फैसला सुनाया।

सिख कोअलिशन का तर्क है कि दाढ़ी रखने से सैन्य सेवा में कोई बाधा नहीं आती। उन्होंने उदाहरण दिया कि सिख सैनिक गैस मास्क टेस्ट पास कर चुके हैं, यानी सुरक्षा और ऑपरेशनल दक्षता पर दाढ़ी का कोई असर नहीं है।

मुस्लिम और यहूदी सैनिकों की चिंता

यह नीति केवल सिखों तक सीमित नहीं है। मुस्लिम सैनिकों के लिए दाढ़ी रखना धार्मिक दायित्व है। इसी तरह, ऑर्थोडॉक्स यहूदी समुदाय में पायोट और दाढ़ी धार्मिक परंपरा का हिस्सा है।

काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (CAIR) ने रक्षा सचिव को पत्र लिखकर पूछा है – “क्या मुस्लिम, सिख और यहूदी सैनिकों की धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षित रहेगी?” संगठन ने अमेरिकी संविधान के प्रथम संशोधन (First Amendment) का हवाला देते हुए कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जा सकता।

अफ्रीकी-अमेरिकी सैनिकों पर भी असर

इस नीति से केवल धार्मिक अल्पसंख्यक ही नहीं, बल्कि काले सैनिक भी प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल, अफ्रीकी मूल के कई सैनिक पसूडोफॉलिकुलाइटिस बार्बे (रेजर बंप्स) की समस्या से जूझते हैं। इस कारण उन्हें दाढ़ी रखने की चिकित्सा छूट दी जाती थी। लेकिन अब यह स्थायी छूट भी खतरे में है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला नस्ल और धर्म के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है।

व्यापक विरोध की संभावना

धार्मिक और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि यह नीति सेना की विविधता और समावेशिता की छवि को नुकसान पहुंचाएगी। अमेरिकी समाज लंबे समय से खुद को धार्मिक स्वतंत्रता और बहुलतावाद का समर्थक मानता आया है। ऐसे में यह फैसला न केवल धार्मिक समुदायों में असंतोष पैदा करेगा, बल्कि अमेरिकी सेना की भर्ती और मनोबल पर भी असर डाल सकता है।