स्टेट डेस्क, मुस्कान कुमारी |
पटना: बिहार विधानसभा चुनावों में एनडीए की शानदार जीत के ठीक एक दिन बाद बीजेपी ने विद्रोही नेताओं पर शिकंजा कस दिया। पूर्व केंद्रीय मंत्री और अराह के पूर्व सांसद आरके सिंह को एंटी-पार्टी गतिविधियों के आरोप में 6 वर्ष के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। सिंह समेत विधान परिषद सदस्य अशोक अग्रवाल और कटिहार मेयर उषा अग्रवाल को निलंबित करने के बाद शो-कॉज नोटिस जारी किया गया था, लेकिन सिंह ने सफाई देने के बजाय तत्काल प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। सूत्रों के अनुसार, यह निष्कासन पार्टी की अनुशासन मुहिम का हिस्सा है, जो जीत के जश्न के बीच आंतरिक कलह को कुचलने का संदेश दे रहा है।
निष्कासन का ऐलान: शो-कॉज से सीधे 6 साल की सजा
राज्य मुख्यालय प्रभारी अरविंद शर्मा ने तीनों नेताओं को सुबह नोटिस जारी कर निलंबन की सूचना दी और एक हफ्ते में सफाई मांगी। नोटिस में साफ लिखा, "आप एंटी-पार्टी गतिविधियों में लिप्त हैं। यह अनुशासन के दायरे में आता है। पार्टी ने इसे गंभीरता से लिया है। इससे पार्टी को नुकसान पहुंचा है। इसलिए आपको निलंबित किया जा रहा है और स्पष्ट करें कि आपको निष्कासित क्यों न किया जाए।" लेकिन सिंह ने जवाब देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद पार्टी ने त्वरित कार्रवाई करते हुए उन्हें 6 वर्ष के लिए बाहर का रास्ता दिखा दिया। अन्य दो नेताओं पर भी निष्कासन की तलवार लटक रही है।
यह कदम बिहार बीजेपी के लिए बड़ा संदेश है। चुनावी माहौल में सिंह की बयानबाजी ने पार्टी की छवि को झकझोर दिया था। वे उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर भ्रष्टाचार, हत्या के आरोप और शैक्षिक योग्यता के मुद्दे उठा चुके थे। प्रशांत किशोर के चौधरी पर लगाए भ्रष्टाचार के इल्जामों का हवाला देते हुए सिंह ने कहा था, "इन नेताओं ने पार्टी की साख बर्बाद कर दी।" उन्होंने दोनों को "हत्या के आरोपी" तक ठहराया और वोटरों से अपील की, "ऐसे दागदार उम्मीदवारों को वोट न दें।"
पुरानी कटुता फूट पड़ी: चौधरी-अनंत सिंह पर तीखे हमले
सिंह की नाराजगी का निशाना मुख्य रूप से सम्राट चौधरी रहे। उन्होंने चौधरी की डिग्री पर सवाल उठाए और स्पष्टीकरण की मांग की। जेडीयू के अनंत सिंह—जो गैंगस्टर से राजनेता बने—का नाम भी घसीटा। उनका वायरल बयान था: "इनके लिए वोट देना मुट्ठी भर पानी में डूबने से बेहतर नहीं।" चौधरी और जायसवाल ने अपनी सीटें जीत लीं, लेकिन सिंह की यह बगावत ने एनडीए गठबंधन को शर्मसार कर दिया।
रिटायर्ड आईएएस अधिकारी सिंह का राजनीतिक सफर शानदार रहा। बिहार कैडर के अधिकारी के तौर पर वे मनमोहन सिंह सरकार में गृह सचिव रहे। 2013 में बीजेपी में शामिल होकर 2014 व 2019 में अराह से सांसद बने। 2017 में मोदी कैबिनेट में ऊर्जा मंत्री बने। लेकिन 2024 लोकसभा हार ने उन्हें हाशिए पर धकेल दिया। हार के बाद वे एनडीए नेतृत्व, सहयोगी दलों के उम्मीदवारों और बिहार सरकार की नीतियों पर तीखे सवाल ठोकते रहे। पार्टी हाईकमान में असंतोष भरा था, चेतावनी दी गई, लेकिन सिंह ने पीछे नहीं हटा। इस्तीफे के साथ उन्होंने कहा, "अब स्वतंत्र आवाज बुलंद करूंगा।"
बिहार सियासत में भूचाल: विपक्ष को मिला नया हथियार
एनडीए की जीत के जश्न में यह निष्कासन पानी फेर रहा है। आरजेडी जैसे विपक्षी दल पहले ही "आंतरिक कलह" का आरोप लगा चुके हैं। सिंह का अराह जैसे मजबूत इलाके से जाना रणनीतिक झटका है। विश्लेषक कहते हैं, सिंह ने अपराध-भ्रष्टाचार पर जो बोला, वह जनता की नब्ज है। क्या अन्य असंतुष्ट नेता प्रेरित होंगे? अशोक अग्रवाल (विधान परिषद) और उषा अग्रवाल (मेयर) की प्रतिक्रिया बाकी है—दोनों पर भी एंटी-पार्टी का ठप्पा लगा।
बीजेपी प्रवक्ताओं ने इसे "जरूरी सफाई" बताया: "जीत के बाद संगठन मजबूत करना अनिवार्य।" लेकिन सिंह समर्थक इसे दमन कह रहे: "असहमति दबाने की साजिश।" सिंह का भविष्य अनिश्चित—नई पार्टी या स्वतंत्र रास्ता? बिहार राजनीति में यह ट्विस्ट लंबे समय गूंजेगा।







