
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
मध्य-पूर्व में तनाव एक बार फिर गहरा गया है। इजरायल ने देर रात यमन और सीरिया की सीमा के पास स्थित हूती विद्रोहियों के ठिकानों पर हवाई हमला किया, जिसमें हूती विद्रोही सरकार के प्रधानमंत्री अहमद-अल-रहावी की मौत हो गई। सीरियाई और अरब मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक, यह हमला बेहद सटीक तरीके से किया गया और इसमें कई मिसाइलों का इस्तेमाल हुआ।
कैसे हुआ हमला?
सूत्रों का कहना है कि इजरायल के लड़ाकू विमानों ने दमिश्क और यमन सीमा के बीच समन्वित हवाई अभियान चलाया। इस दौरान हूती विद्रोहियों के हथियार गोदामों और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया गया। इसी हमले में अहमद-अल-रहावी जिस कमांड सेंटर में बैठक कर रहे थे, वहां एक मिसाइल सीधी आकर गिरी। मौके पर ही उनकी मौत हो गई।
इजरायल की चुप्पी, बढ़ी अटकलें
इजरायल की ओर से इस हमले पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। हालांकि, सैन्य सूत्रों का कहना है कि यह हमला ईरान समर्थित ताकतों को कमजोर करने की रणनीति का हिस्सा था। हूती विद्रोही लंबे समय से इजरायल और सऊदी अरब के खिलाफ हमले कर रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय अस्थिरता लगातार बढ़ी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
यमन की निर्वासित सरकार ने इस हमले की पुष्टि करते हुए कहा है कि अल-रहावी की मौत से हूती विद्रोही नेतृत्व को गहरी चोट पहुंचेगी। वहीं, ईरान ने इस कार्रवाई की कड़ी निंदा की है और कहा है कि यह हमला “मध्य-पूर्व को युद्ध की आग में झोंकने की साजिश” है। संयुक्त राष्ट्र ने भी तुरंत संयम बरतने और संघर्ष रोकने की अपील की है।
असर और भविष्य
अहमद-अल-रहावी हूती विद्रोही सरकार के एक अहम चेहरा माने जाते थे। उनकी मौत से संगठन में सत्ता संघर्ष तेज हो सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि अल-रहावी की मौत से अल्पकालिक तौर पर हूती नेतृत्व कमजोर होगा, लेकिन इससे विद्रोही और उग्र भी हो सकते हैं।
मध्य-पूर्व के पहले से ही जटिल हालात इस घटना के बाद और बिगड़ने की आशंका है। यदि इजरायल ने आधिकारिक तौर पर इस हमले की जिम्मेदारी ली, तो ईरान और उसके सहयोगी समूहों के साथ तनाव और बढ़ सकता है।