
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख प्रतिबंध एक बार फिर से लागू कर दिए गए हैं। लगभग दस वर्षों के अंतराल के बाद रविवार आधी रात से ये प्रतिबंध प्रभावी हो गए। यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बड़े भू-राजनीतिक परिवर्तन का संकेत माना जा रहा है, क्योंकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर लंबे समय से वैश्विक चिंताएँ बनी हुई हैं।
अमेरिका के विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने एक्स पर एक पोस्ट के माध्यम से इसकी पुष्टि की। उन्होंने लिखा, “संयुक्त राष्ट्र के छह प्रस्तावों को फिर से सक्रिय कर दिया गया है। ये प्रतिबंध ईरान के परमाणु संवर्धन और उससे जुड़ी गतिविधियों पर कड़ी पाबंदी लगाएंगे।”
साल 2015 में ईरान और छह महाशक्तियों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और चीन) के बीच हुए ऐतिहासिक परमाणु समझौते के बाद संयुक्त राष्ट्र ने कई प्रतिबंधों को हटाया था। उस समझौते के तहत ईरान ने वादा किया था कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करेगा। बदले में उस पर लगे कड़े आर्थिक और सैन्य प्रतिबंधों को चरणबद्ध तरीके से हटाया गया था।
हालांकि पिछले कुछ वर्षों में यह समझौता लगातार विवादों में रहा। अमेरिका ने 2018 में समझौते से बाहर निकलते हुए ईरान पर फिर से एकतरफा प्रतिबंध लगा दिए। इसके बाद से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तनाव बढ़ा और अब आखिरकार संयुक्त राष्ट्र स्तर पर भी पुराने प्रतिबंधों को बहाल कर दिया गया है।
प्रभाव और संभावित नतीजे
इन प्रतिबंधों के चलते ईरान को सैन्य तकनीक और परमाणु संवर्धन से जुड़ी सामग्री की आपूर्ति पूरी तरह प्रतिबंधित हो जाएगी। इसके अलावा विदेशी निवेश और व्यापार पर भी असर पड़ेगा। ऊर्जा क्षेत्र, विशेषकर तेल और गैस के निर्यात पर अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बढ़ सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इन प्रतिबंधों से ईरान की अर्थव्यवस्था पर बड़ा आघात होगा। पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी और राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहे ईरान को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन और वैश्विक बाजारों में और कठिनाइयाँ झेलनी पड़ेंगी।
वैश्विक प्रतिक्रियाएँ
कई पश्चिमी देशों ने इस फैसले का स्वागत किया है और इसे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए आवश्यक कदम बताया है। वहीं, रूस और चीन जैसे देशों ने इस पर असहमति जताई है। उनका कहना है कि प्रतिबंधों से हालात और बिगड़ सकते हैं तथा क्षेत्रीय स्थिरता पर विपरीत असर पड़ सकता है।
ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों की वापसी सिर्फ एक देश का मामला नहीं है, बल्कि पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र और वैश्विक राजनीति पर इसका गहरा असर देखने को मिलेगा। आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि ईरान इस दबाव का किस तरह जवाब देता है—क्या वह बातचीत का रास्ता चुनता है या फिर टकराव को और बढ़ाता है।