
नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |
धार्मिक भावनाओं बनाम राष्ट्रीय प्रतीक पर विवाद, घाटी में तनाव और राजनीतिक घमासान
श्रीनगर: श्रीनगर के पवित्र हजरतबल मस्जिद में हाल ही में स्थापित अशोक चिन्ह वाली एक उद्घाटन पट्टिका को शुक्रवार को तोड़ दिया गया, जिससे कश्मीर घाटी में व्यापक विरोध प्रदर्शन और तीखा राजनीतिक विवाद शुरू हो गया। पैगंबर मुहम्मद की पवित्र निशानी को संजोए यह मस्जिद जम्मू-कश्मीर में सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है, और इस घटना ने धार्मिक व राजनीतिक भावनाओं को भड़का दिया है।
अशोक चिन्ह पर भड़का विवाद
विवाद तब शुरू हुआ जब शुक्रवार की नमाज के लिए हजरतबल मस्जिद में एकत्र हुए नमाजियों ने अशोक चिन्ह वाली पट्टिका देखी, जो भारत का राष्ट्रीय प्रतीक है। कई लोगों ने इस चिन्ह, जिसमें चार शेर और धर्म चक्र शामिल हैं, को इस्लाम के तौहीद सिद्धांत के खिलाफ माना, जो मस्जिदों में किसी भी प्रकार की मूर्ति पूजा या छवियों को सख्ती से मना करता है। इसे अपनी धार्मिक भावनाओं पर हमला मानकर, कुछ नमाजियों ने पट्टिका पर पत्थर फेंके, अशोक चिन्ह को नुकसान पहुंचाया और विरोध में नारे लगाए। इस तोड़फोड़ ने मस्जिद में तनाव को तेजी से बढ़ा दिया, जिसने स्थानीय लोगों और राजनीतिक नेताओं का ध्यान खींचा।
यह पट्टिका मस्जिद में हाल के नवीनीकरण कार्यों का हिस्सा थी, जिसका उद्घाटन जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की प्रमुख नेता दाराख्शां अंद्राबी ने किया था। कुछ लोगों द्वारा राष्ट्रीय गौरव के प्रतीक के रूप में देखे जाने वाले इस चिन्ह की स्थापना को प्रदर्शनकारियों ने अनुचित ठहराया, उनका तर्क था कि यह मस्जिद की पवित्रता का उल्लंघन करता है। इस घटना ने कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में राष्ट्रीय प्रतीकों और धार्मिक भावनाओं के टकराव पर व्यापक बहस छेड़ दी है।
राजनीतिक नेताओं की प्रतिक्रिया
इस तोड़फोड़ ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है, जिसमें विभिन्न दलों के नेता अलग-अलग रुख अपना रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता तनवीर सादिक ने अशोक चिन्ह की स्थापना की निंदा की और इसे इस्लामी मान्यताओं का उल्लंघन बताया। उन्होंने तर्क दिया कि मस्जिद में ऐसा प्रतीक लगाना एक उकसावे वाला कृत्य था, जो मुस्लिम समुदाय की धार्मिक भावनाओं की अवहेलना करता है। सादिक की टिप्पणियां उन कई नमाजियों के साथ गूंजीं, जिन्हें इस चिन्ह की मौजूदगी पवित्र स्थान पर थोपी गई लगी।
वहीं, वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दाराख्शां अंद्राबी ने तोड़फोड़ की कड़े शब्दों में निंदा की और इसे “आतंकी कृत्य” करार देते हुए सामुदायिक सौहार्द को अस्थिर करने का प्रयास बताया। उन्होंने जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की मांग की और अधिकारियों से प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने और दोषियों को गिरफ्तार करने का आग्रह किया। अंद्राबी ने स्थापना का बचाव करते हुए जोर दिया कि अशोक चिन्ह एक राष्ट्रीय प्रतीक है और इसका पट्टिका पर शामिल करना सरकार की मस्जिद के विकास के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी इस विवाद में हस्तक्षेप किया और धार्मिक स्थल पर अशोक चिन्ह लगाने की आवश्यकता पर सवाल उठाए। उन्होंने शांति और संवाद की अपील की, साथ ही चेतावनी दी कि ऐसी कार्रवाइयां घाटी में तनाव को और भड़का सकती हैं। इस बीच, राज्यपाल मनोज सिन्हा ने तोड़फोड़ पर गहरा दुख व्यक्त किया और अशोक चिन्ह को भारत की विरासत और गौरव का प्रतीक बताया। सिन्हा की टिप्पणियों ने सरकार के इस रुख को रेखांकित किया कि राष्ट्रीय प्रतीकों का अनादर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
पुलिस कार्रवाई और तनाव
तोड़फोड़ के जवाब में, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ तुरंत एक एफआईआर दर्ज की। अधिकारियों ने दोषियों की पहचान करने और उन्हें न्याय के दायरे में लाने के लिए गहन जांच का वादा किया है। हजरतबल मस्जिद के आसपास सुरक्षा को और सख्त कर दिया गया है ताकि आगे की अशांति को रोका जा सके, और पुलिस क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति बनाए हुए है।
इस घटना ने घाटी में राय को ध्रुवीकृत कर दिया है, कुछ लोग प्रदर्शनकारियों के कृत्य को धार्मिक भावनाओं की वैध अभिव्यक्ति के रूप में समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य इसे राष्ट्रीय प्रतीक पर हमला मानते हैं। इस विवाद ने वक्फ बोर्ड की धार्मिक स्थलों के प्रबंधन में भूमिका और जम्मू-कश्मीर में शासन व सांस्कृतिक संवेदनशीलता के बीच नाजुक संतुलन पर चर्चा को फिर से शुरू कर दिया है।
कश्मीर के लिए व्यापक प्रभाव
हजरतबल मस्जिद, जिसे क्षेत्र की सबसे पवित्र मुस्लिम मस्जिद के रूप में पूजा जाता है, लंबे समय से कश्मीरियों के लिए आध्यात्मिक एकता का प्रतीक रही है। पट्टिका की तोड़फोड़ ने एक ऐसे क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव की आशंका बढ़ा दी है, जो पहले से ही जटिल सामाजिक-राजनीतिक गतिशीलता से जूझ रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का सुझाव है कि यह घटना धार्मिक समुदायों और प्रशासन के बीच संबंधों को और तनावपूर्ण कर सकती है, खासकर हाल के प्रशासनिक परिवर्तनों के संदर्भ में।
जैसे-जैसे यह विवाद सामने आ रहा है, सभी की नजर इस बात पर है कि सरकार और धार्मिक नेता इस संवेदनशील मुद्दे को कैसे संभालेंगे। अशोक चिन्ह की पट्टिका की तोड़फोड़ ने न केवल स्थानीय स्तर पर हंगामा मचाया है, बल्कि ऐतिहासिक और राजनीतिक जटिलताओं से चिह्नित इस क्षेत्र में राष्ट्रीय पहचान और धार्मिक परंपराओं को समेटने की चुनौतियों को भी उजागर किया है।