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केरल ने सुप्रीम कोर्ट से SIR को स्थगित करने की गुहार लगाई

नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

नई दिल्ली: स्थानीय निकाय चुनावों की तैयारी जोरों पर होने के बीच केरल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव आयोग के विशेष गहन संशोधन (SIR) प्रक्रिया को स्थगित करने की गुहार लगाई है। राज्य का दावा है कि यह संशोधन चुनावी मशीनरी पर भारी बोझ डालेगा और मतदान प्रक्रिया को पटरी से उतार सकता है। याचिका में तत्काल राहत की मांग की गई है, ताकि दिसंबर में निर्धारित स्थानीय निकाय चुनाव सुचारू रूप से संपन्न हो सकें।

सुप्रीम कोर्ट में दायर इस संवैधानिक याचिका (अनुच्छेद 32 के तहत) में केरल ने स्पष्ट किया है कि SIR प्रक्रिया को स्थानीय स्वशासन संस्थाओं (LSGI) के चुनावों के समापन तक टाल दिया जाए। राज्य सरकार का कहना है कि दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ संचालन प्रशासनिक जटिलताओं को जन्म देगा, जिससे चुनावी समयसीमा का उल्लंघन हो सकता है। याचिका में SIR प्रक्रिया की वैधता को चुनौती देने का अधिकार सुरक्षित रखते हुए वर्तमान में केवल स्थगन पर जोर दिया गया है।

केरल में कुल 1,200 स्थानीय निकाय हैं, जिनमें 941 ग्राम पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायतें, 14 जिला पंचायतें, 87 नगर पालिकाएं और 6 निगम शामिल हैं। इनके अंतर्गत 23,612 वार्ड आते हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, ये चुनाव दो चरणों में 9 और 11 दिसंबर को होंगे। SIR प्रक्रिया 4 नवंबर से शुरू हो चुकी है और ड्राफ्ट मतदाता सूची 4 दिसंबर को प्रकाशित होनी है। याचिकाकर्ता का तर्क है कि इतने कम समय में दोनों कामों को संभालना असंभव है।

चुनावी समयसीमा पर संकट: संवैधानिक बाध्यता का हवाला

संविधान के अनुच्छेद 243-ई और 243-यू तथा केरल पंचायती राज अधिनियम की धारा 38 और केरल नगर निगम अधिनियम की धारा 94 के तहत स्थानीय निकाय चुनावों को पिछले परिषदों की पहली बैठक के पांच वर्ष के भीतर अनिवार्य रूप से संपन्न कराना होता है। केरल में नई परिषदों को 21 दिसंबर से पहले शपथ दिलानी होगी। याचिका में चेतावनी दी गई है कि SIR से उत्पन्न होने वाली "प्रशासनिक गतिरोध" स्थिति चुनावी प्रक्रिया को खतरे में डाल सकती है।

राज्य सरकार ने आंकड़े पेश कर दावा किया है कि LSGI चुनावों के लिए 1,76,000 कर्मियों की जरूरत पड़ेगी, जबकि सुरक्षा के लिए 68,000 जवान लगेंगे। वहीं SIR के लिए अतिरिक्त 25,668 कर्मी चाहिए। इस दोहरी जिम्मेदारी से राज्य प्रशासन की सामान्य कार्यप्रणाली ठप हो जाएगी। मुख्य सचिव ने 5 नवंबर को मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर SIR स्थगन की मांग की थी, लेकिन कोई जवाब नहीं आया।

याचिका में जोर दिया गया है कि स्थानीय चुनावों के लिए संवैधानिक समयसीमा सख्त है, जबकि SIR के लिए कोई ऐसी बाध्यता नहीं। चुनाव आयोग ने राज्य के किसी हिस्से में SIR के लिए कोई विशेष कारण भी नहीं बताया। इसलिए, चुनाव समाप्त होने तक इसे टालने से किसी पक्ष को नुकसान नहीं होगा। याचिका स्टैंडिंग काउंसल सीके शासी के माध्यम से दायर की गई है।

हाईकोर्ट से निराशा, अब सुप्रीम कोर्ट में उम्मीदें

पिछले सप्ताह केरल हाईकोर्ट में राज्य ने SIR स्थगन की मांग की थी, लेकिन अदालत ने हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। हाईकोर्ट ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट ही इस मामले में उचित है, जो पहले से ही SIR से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहा है। कल ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी SIR अधिसूचना को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।

न्यायमूर्ति सूर्य कांत और ज्योमल्या बागची की बेंच SIR से जुड़ी याचिकाओं पर विचार कर रही है। पिछले सप्ताह बेंच ने इन मामलों को 26 नवंबर के लिए स्थगित किया था। केरल की याचिका (स्टेट ऑफ केरल बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया एंड अदर्स) इसी बेंच के समक्ष आएगी।

चुनावी माहौल में SIR का विवाद: क्या होगा असर?

केरल में SIR का विरोध केवल सरकार तक सीमित नहीं। विपक्षी दल और राजनीतिक संगठन भी इसे चुनावी हस्तक्षेप बता रहे हैं। राज्य में लाखों मतदाताओं की सूची में बदलाव से नए वोटरों का पंजीकरण प्रभावित हो सकता है, जो स्थानीय मुद्दों पर निर्भर चुनावी समीकरण को बदल सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह विवाद राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव सुधारों पर बहस छेड़ सकता है।

याचिका में विस्तार से बताया गया है कि SIR के दौरान मतदाता सूची के ड्राफ्ट पर आपत्तियां दर्ज करने का समय भी सीमित है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान प्रभावित होंगे। राज्य सरकार ने तर्क दिया है कि चुनाव आयोग की यह पहल अनावश्यक है, क्योंकि सामान्य संशोधन पहले ही हो चुका है।

प्रशासनिक चुनौतियां: कर्मियों की किल्लत से हाहाकार

केरल जैसे घनी आबादी वाले राज्य में चुनावी ड्यूटी एक बड़ी चुनौती है। ग्राम पंचायत स्तर से लेकर निगम चुनावों तक हर स्तर पर स्वयंसेवकों और अधिकारियों की कमी महसूस हो रही है। SIR के लिए BLO (बूथ लेवल ऑफिसर) और अन्य स्टाफ की मांग अतिरिक्त दबाव डाल रही है। याचिकाकर्ताओं ने आंकड़ों के साथ प्रमाणित किया है कि इससे न केवल चुनाव विलंबित होंगे, बल्कि मतदाता विश्वास भी कमजोर पड़ेगा।

राज्य ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि तत्काल अंतरिम आदेश जारी कर SIR को स्थगित किया जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो 21 दिसंबर की समयसीमा का पालन असंभव हो जाएगा, जो संवैधानिक उल्लंघन का कारण बनेगा।

राजनीतिक निहितार्थ: सत्ता और विपक्ष के बीच टकराव

यह मामला केरल की सियासत में नया मोड़ ला सकता है। सत्तारूढ़ LDF और विपक्षी UDF के बीच स्थानीय चुनावों को लेकर पहले से ही तनाव है। SIR को विपक्ष "वोट बैंक इंजीनियरिंग" का हथियार बता रहा है। हालांकि, चुनाव आयोग ने इसे पारदर्शी प्रक्रिया बताया है, लेकिन राज्य सरकार का विरोध मजबूत है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला न केवल केरल बल्कि अन्य राज्यों के लिए मिसाल कायम करेगा, जहां स्थानीय चुनावों का दबाव बढ़ रहा है। सुनवाई की तारीख नजदीक आते ही नजरें अदालत पर टिकी हैं।