हेल्थ डेस्क, मुस्कान कुमारी |
नई दिल्ली: क्या आप भी बचपन से क्रीम बिस्किट को दूध की मलाई समझकर खाते आ रहे हैं? एक वायरल इंस्टाग्राम रील ने इस आम धारणा को चुनौती दी है, जिसमें दावा किया गया है कि ये बिस्किट असली दूध की क्रीम से नहीं, बल्कि हाइड्रोजेनेटेड वनस्पति तेल से बनाए जाते हैं। यह खुलासा लाखों उपभोक्ताओं को चौंका रहा है, खासकर भारत में जहां बच्चे रोजाना ऐसे स्नैक्स का सेवन करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ नाम का फेर नहीं, बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ा बड़ा मुद्दा है।
स्वास्थ्य जोखिम: ट्रांस फैट्स का खतरा बढ़ाता है रोजाना सेवन
क्रीम बिस्किट की फिलिंग में असली दूध की क्रीम न होने का दावा बिल्कुल सही है। ज्यादातर ब्रांड्स में 'क्रेम' (e के साथ) शब्द इस्तेमाल होता है, जो वनस्पति वसा, चीनी और फ्लेवरिंग से तैयार की जाती है। भारत में लोकप्रिय ब्रांड्स जैसे पैकेजिंग पर साफ लिखते हैं कि फिलिंग में हाइड्रोजेनेटेड वेजिटेबल ऑयल (जिसे वनस्पति या डालडा भी कहते हैं) मुख्य सामग्री है। यह तेल सस्ता और शेल्फ-लाइफ बढ़ाने वाला होता है, लेकिन इसमें ट्रांस फैट्स की मात्रा अधिक होती है, जो दिल की बीमारियों, डायबिटीज और मोटापे का खतरा बढ़ाती है।
शोध बताते हैं कि भारतीय बिस्किट में सैचुरेटेड और ट्रांस फैट्स का स्तर ऊंचा है, जो बच्चों के लिए खासतौर पर हानिकारक है। शहरों में 70% से ज्यादा बच्चे रोजाना पैकेज्ड बिस्किट खाते हैं, जिससे लंबे समय में स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। पोषण विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि लेबल पर 'पार्शियली हाइड्रोजेनेटेड ऑयल' देखकर ऐसे उत्पादों से दूर रहें और होल फूड विकल्प चुनें।
उद्योग की चालाकी: लेबलिंग में छिपा धोखा
फूड इंडस्ट्री में यह प्रथा पुरानी है। अमेरिका की एफडीए जैसी संस्थाएं गैर-डेयरी फिलिंग को 'क्रीम' की बजाय 'क्रेम' लिखने का नियम बनाती हैं, ताकि उपभोक्ता धोखा न खाएं। भारत में एफएसएसएआई (फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) भी सामग्री की स्पष्ट लेबलिंग की मांग करता है, लेकिन 'क्रीम बिस्किट' जैसे नाम अभी भी भ्रम पैदा करते हैं। ग्लोबली, ओरियो जैसे ब्रांड्स की फिलिंग में सोया लेसिथिन और प्रोसेस्ड कोको जैसी चीजें होती हैं, कोई डेयरी नहीं। अफवाहें जानवरों की चर्बी की आती रहती हैं, लेकिन हकीकत में प्लांट-बेस्ड शॉर्टनिंग का इस्तेमाल vegan उत्पादन के लिए किया जाता है।
सोशल मीडिया पर ऐसे रील्स वेलनेस अकाउंट्स से आते हैं, जैसे सत्विक मूवमेंट, जो क्लीन ईटिंग को बढ़ावा देते हैं। 2025 में ऐसे वीडियोज ने इंस्टाग्राम पर तहलका मचा दिया है, जहां यूजर्स अपनी लेबल शॉक की कहानियां शेयर कर रहे हैं। यह ट्रेंड उपभोक्ता जागरूकता की बढ़ती मांग को दिखाता है, जहां लोग अब पैकेजिंग के पीछे लिखी सामग्री पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
विकल्प और सुझाव: घरेलू रेसिपी से लें मजा बिना जोखिम
अगर आप स्वादिष्ट बिस्किट चाहते हैं, तो घर पर असली डेयरी या नट बटर से बनाएं। कई ब्रांड्स अब नॉन-हाइड्रोजेनेटेड ऑयल इस्तेमाल कर रहे हैं, जो स्वास्थ्यवर्धक हैं। फूड साइंटिस्ट्स कहते हैं कि फ्रंट लेबल पर भरोसा न करें, हमेशा बैक साइड पढ़ें जहां फैट्स और एडिटिव्स की डिटेल होती है। यह छोटा बदलाव बड़ी स्वास्थ्य रक्षा कर सकता है।
यह रील सिर्फ एक उत्पाद पर नहीं, बल्कि पूरी प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री पर सवाल उठाती है। उपभोक्ताओं को अब ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है, ताकि नाम के फेर में स्वास्थ्य न गंवाएं।







