स्टेट डेस्क, मुस्कान कुमारी |
नई दिल्ली: दसवें सिख गुरु गोबिंद सिंह और उनकी पत्नी माता साहिब कौर के पवित्र जूतों की अंतिम यात्रा दिवाली के बाद दिल्ली से शुरू होकर बिहार की राजधानी पटना स्थित पटना साहिब गुरुद्वारा पहुंचेगी। यह यात्रा 1500 किलोमीटर लंबी होगी और गुरु गोबिंद सिंह के जन्मस्थान पर इन पवित्र अवशेषों को स्थापित किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, जिनके परिवार ने पिछले तीन सौ वर्षों से इन अवशेषों की देखभाल की है, ने बताया कि यह यात्रा नौ दिनों में पूरी होगी और चार राज्यों से गुजरेगी।
यह ऐतिहासिक कदम सिख समुदाय के लिए एक भावुक पल है, जहां सदियों पुरानी विरासत अपने मूल स्थान पर लौट रही है। पुरी ने इसे "300 साल की यात्रा का पूर्ण चक्र" बताया, जो सिख इतिहास की गहराई को दर्शाता है। यात्रा के दौरान विभिन्न गुरुद्वारों और सिख संगठनों द्वारा स्वागत की तैयारी की जा रही है, जो इस घटना को और अधिक महत्वपूर्ण बना रही है।
यात्रा का मार्ग और महत्व: चार राज्यों से गुजरते हुए पटना पहुंचेगी पवित्र जोड़ी
यात्रा दिल्ली से शुरू होकर उत्तर प्रदेश, हरियाणा और अन्य राज्यों से होकर पटना पहुंचेगी। पुरी के अनुसार, यह नौ दिवसीय यात्रा सिख समुदाय के लिए एक धार्मिक उत्सव की तरह होगी, जहां हजारों श्रद्धालु हिस्सा लेंगे। इन जूतों को पटना साहिब गुरुद्वारा में स्थापित करने से गुरु गोबिंद सिंह के जन्मस्थान की पवित्रता और बढ़ जाएगी, जो पहले से ही सिखों का प्रमुख तीर्थस्थल है।
गुरु गोबिंद सिंह सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे, जिन्होंने 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की थी। उनके जीवन और शिक्षाओं ने सिख समुदाय को मजबूती प्रदान की, और ये अवशेष उनके व्यक्तिगत जीवन की याद दिलाते हैं। माता साहिब कौर, जिन्हें सिख इतिहास में "खालसा की मां" कहा जाता है, की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। उनके जूते सिख महिलाओं की शक्ति और समर्पण का प्रतीक हैं।
पुरी का परिवार इन अवशेषों का संरक्षक रहा है, जो मुगल काल से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है। इतिहासकारों के अनुसार, ये जूते गुरु गोबिंद सिंह के समय से संरक्षित हैं और विभिन्न युद्धों व यात्राओं के दौरान सुरक्षित रखे गए। अब, इनकी वापसी पटना साहिब में सिख इतिहास के एक अध्याय को पूरा करेगी।
सिख समुदाय में उत्साह: यात्रा से जुड़ने की तैयारी, धार्मिक महत्व पर जोर
सिख संगठनों ने इस यात्रा को "ऐतिहासिक वापसी" करार दिया है। दिल्ली से पटना तक के मार्ग पर विभिन्न स्थानों पर लंगर और कीर्तन की व्यवस्था की जा रही है। पुरी ने कहा कि यह यात्रा न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक एकता का संदेश भी देगी। चार राज्यों के लोग इसमें शामिल होकर गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाओं को याद करेंगे, जो समानता, साहस और सेवा पर आधारित हैं।
पटना साहिब गुरुद्वारा, जहां गुरु गोबिंद सिंह का जन्म 1666 में हुआ था, पहले से ही लाखों श्रद्धालुओं का केंद्र है। इन अवशेषों की स्थापना से इसकी लोकप्रियता और बढ़ेगी। यात्रा के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए जा रहे हैं, ताकि कोई असुविधा न हो।
पृष्ठभूमि: तीन सौ साल की संरक्षा की कहानी
पुरी के परिवार की कहानी गुरु गोबिंद सिंह के समय से जुड़ी है। इतिहास बताता है कि मुगल आक्रमणों के दौरान ये अवशेष विभिन्न स्थानों पर ले जाए गए और अंततः दिल्ली पहुंचे। परिवार ने इन्हें गोपनीय रूप से संभाला, ताकि कोई क्षति न पहुंचे। अब, इस निर्णय से सिख समुदाय में खुशी की लहर है।
यात्रा दिवाली के बाद शुरू होगी, जो हिंदू और सिख दोनों समुदायों के लिए महत्वपूर्ण है। इससे त्योहारों का माहौल और जीवंत हो जाएगा।
ज्ञान का मोती: गुरु गोबिंद सिंह का जीवन
एक पुरानी उत्कीर्णन में गुरु गोबिंद सिंह और पंज प्यारे दिखाए गए हैं, जो महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल में बने गुरुद्वारा भाई थान सिंह से मिली है। यह छवि गुरु की विरासत को जीवित रखती है।
यह यात्रा सिख इतिहास की निरंतरता को दर्शाती है, जहां पुरानी परंपराएं नई पीढ़ियों से जुड़ रही हैं। पटना साहिब में स्थापना के बाद ये अवशेष सार्वजनिक दर्शन के लिए उपलब्ध होंगे।







