
नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |
घरेलू बोझ से डीएसपी की कुर्सी तक: अंजू यादव की अमिट संघर्षगाथा, जो चीख-चीखकर कहती है - सपने जिंदा रहते हैं!
जयपुर: ग्रामीण भारत की एक साधारण सी गृहिणी, जो कभी घर की चारदीवारी में सिसकियां भरती रहती, आज राजस्थान पुलिस की डिप्टी सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस (डीएसपी) के रूप में समाज को नई दिशा दे रही है। अंजू यादव ने सोशल मीडिया पर एक दिल दहला देने वाला कोलाज शेयर किया - एक तरफ पारंपरिक घूंघट और साड़ी में थकी-हारी उनकी पुरानी तस्वीर, दूसरी तरफ खाकी वर्दी में गर्व से खड़ी नई अंजू। इस कोलाज के जरिए उन्होंने अपनी जिंदगी का कड़वा सच उकेरा: दर्दनाक अपमान, परिवारिक धमकियां और सामाजिक बेड़ियां, जिन्हें तोड़कर उन्होंने आजादी का परचम लहराया।
यह कहानी सिर्फ एक महिला की जीत नहीं, बल्कि उन लाखों सपनों की जीत है जो समाज की जंजीरों में जकड़े पड़े सड़ रहे हैं। अंजू ने अपनी पोस्ट में लिखा, "उस वक्त मेरी जिंदगी में कोई सपना नहीं था। डीएसपी? वो शब्द तो सपने में भी न आया हो। बस घर के झाड़ू-पोंछे, चूल्हा-चौका और अगले दिन की चिंता। थकी आंखों में डर, बंधनों में कैद जिंदगी - सपने सोचने की हिम्मत ही न थी।" ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवार की बेटियां अगर उड़ान भरने की कोशिश करें, तो ताने, गालियां, मारपीट या ससुराल से निकाल देने की धमकी मिलती है। अंजू के साथ भी यही हुआ, लेकिन उनकी आंखों में वो चिंगारी बाकी रही जो आग बनकर भड़क उठी।
पति के साया से विधवा की काली रात: फिर भी उम्मीद की किरण
हरियाणा के नर्णौल जिले के एक छोटे से किसान परिवार में 1988 में पैदा हुईं अंजू ने सरकारी स्कूलों की कठिन राह पर चलकर पढ़ाई की। 2009 में शादी हुई, 2012 में बेटा मुकुल आया - खुशियां लग रही थीं पूरी। लेकिन किस्मत ने पलटकर मारा। पति के अचानक निधन ने सब कुछ छीन लिया। विधवा बनते ही समाज की नजरें चुभने लगीं, परिवारिक दबाव बढ़ा। लेकिन अंजू ने हार न मानी। पति के जाने के महज 12 दिन बाद ही, 2021 में उन्होंने राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) परीक्षा के लिए फॉर्म भरा। विधवा कोटे का सहारा लिया और कड़ी मेहनत से न सिर्फ पास हुईं, बल्कि डीएसपी का सपना साकार कर लिया।
पिता लालाराम यादव, एक मेहनती किसान, उनकी पहली प्रेरणा बने। उन्होंने बेटी की शिक्षा को कभी नहीं रोका, बल्कि हर कदम पर साथ दिया। अंजू ने दूरी शिक्षा से ग्रेजुएशन पूरा किया, बीएड की डिग्री हासिल की। नौकरी की तलाश में 2016 में मध्य प्रदेश के जवाहर नवोदय विद्यालय में शिक्षिका बनीं। 2018 में राजस्थान के एक सरकारी स्कूल पहुंचीं, फिर 2019 में दिल्ली चली गईं। इस दौरान बेटे की जिम्मेदारी माता-पिता ने संभाली, जबकि अंजू रात-दिन प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गईं। सिपाही भर्ती से शुरू होकर आरएएस तक का सफर कांटों भरा था - आर्थिक तंगी, सामाजिक बहिष्कार, लेकिन शिक्षा उनके सबसे बड़े हथियार बनी। आखिरकार, सितंबर 2025 में राजस्थान पुलिस की पासिंग आउट परेड में उन्होंने डीएसपी के रूप में शपथ ली। वह पल था जब चारदीवारी टूट गई और दुनिया उनके कदमों में लेट गई।
घूंघट से खाकी तक: एक क्रांति जो महिलाओं को जगाएगी
अंजू की यह यात्रा व्यक्तिगत संघर्ष से कहीं आगे है - यह ग्रामीण भारत की उन महिलाओं की आवाज है जो पर्दे के पीछे सांस लेने को तरसती हैं। घूंघट, चारदीवारी और घरेलू गुलामी में जीने वाली एक महिला ने साबित कर दिया कि उम्र हो, परिस्थिति हो या समाज का दबाव - इच्छाशक्ति के आगे सब बौना है। उन्होंने अपनी पोस्ट में कहा, "मेरी तरह पर्दे में छिपी ग्रामीण बहनें अगर इतना आगे पहुंच सकती हैं, तो शिक्षा की ताकत से कोई भी पहाड़ हिला सकता है।" उनके परिवार में वह पहली महिला हैं जिन्होंने सरकारी नौकरी पाई, पुलिस की वर्दी पहनी। यह उपलब्धि न सिर्फ उनका गौरव, बल्कि पूरे समाज का उत्सव है।
सोशल मीडिया पर उनकी कहानी तूफान की तरह फैल गई। हजारों कमेंट्स, शेयर्स - हर तरफ उनकी हिम्मत की गूंज। एक यूजर ने लिखा, "संघर्ष की आग में तपकर निकली ताकत ही सच्ची ताकत है।" पहले घर की जंजीरों में जकड़ी अंजू आज निडर, आत्मनिर्भर योद्धा बन चुकी हैं। घरेलू बोझ से आजाद होकर अब समाज सेवा में डूबी हुईं। यह बदलाव सालों की मेहनत, अनगिनत बलिदानों और परिवार के अटूट समर्थन का फल है। महिलाओं के लिए उनका संदेश साफ है: सपने देखना कोई गुनाह नहीं, बल्कि हक है। तानों की चाबुकें बरसें, धमकियां आएं - आगे बढ़ना ही सच्ची मुक्ति है।
अंजू की यह पोस्ट लाखों दिलों को छू गई। ग्रामीण भारत में महिलाओं की दयनीय हालत पर उंगली उठाई। शिक्षा और लगन से कोई भी आसमान छू सकता है। राजस्थान पुलिस में उनकी एंट्री नई आशा की किरण बनी। बेटे मुकुल के साथ सम्मानजनक जिंदगी का सपना जो पूरा हुआ, वह दूसरों के लिए मशाल बन जाएगा। दर्द की राहें भी अगर हौसले से पार की जाएं, तो सफलता गले लग आती है। अंजू की गाथा चिल्ला-चिल्लाकर कह रही है - सपने मरते नहीं, बस जागने का इंतजार करते हैं।