
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
चीन ने भारत की स्वतंत्र और संतुलित विदेश नीति की सराहना करते हुए कहा है कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए जो नीति अपनाई है, वह संतुलन और व्यवहारिकता का उदाहरण है। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक बयान में कहा कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में अपने निर्णय स्वयं लेने की परंपरा को बरकरार रखा है और किसी भी महाशक्ति के दबाव में नहीं आया है।
चीन का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत ने हाल के वर्षों में अमेरिका, रूस, यूरोप और एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को नए आयाम दिए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत की विदेश नीति अब केवल किसी एक ध्रुव पर केंद्रित नहीं है, बल्कि वह बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में अपनी जगह मजबूत करने पर ध्यान दे रहा है।
चीनी प्रवक्ता ने कहा कि भारत का यह रुख न केवल एशिया बल्कि पूरे विश्व में स्थिरता और शांति को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत ने ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार और तकनीकी सहयोग जैसे मुद्दों पर जिस तरह से संतुलन साधा है, वह विकासशील देशों के लिए एक मिसाल है।
भारत की स्वतंत्र विदेश नीति का सबसे बड़ा उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान देखने को मिला, जब भारत ने किसी एक पक्ष का समर्थन करने के बजाय संवाद और शांति की वकालत की। भारत ने पश्चिमी दबाव के pबावजूद रूस से तेल और ऊर्जा खरीद जारी रखी, साथ ही अमेरिका और यूरोप के साथ भी अपने रणनीतिक संबंधों को बनाए रखा। इस संतुलन ने भारत की “स्वतंत्र विदेश नीति” की वैश्विक स्तर पर छवि को और मजबूत किया।
विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की यह टिप्पणी एक संकेत है कि बीजिंग भारत के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार है। हालांकि, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद अब भी एक बड़ी चुनौती है। इसके बावजूद, चीन का यह बयान कूटनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका और उसकी स्वतंत्र विदेश नीति की स्वीकारोक्ति है।