Ad Image
Ad Image
दिल्ली पुलिस ने साइबर अपराधियों के लिए चलाया साईं हॉक अभियान, 48 घंटे में 800 गिरफ्तार || झारखंड की मंत्री दीपिका पाण्डेय का EC पर हमला, SIR के कारण हारा महागठबंधन || पूर्वी चंपारण के रक्सौल में VIP पार्टी के अनुमंडल प्रमुख की गोली मार हत्या || राष्ट्रपति ट्रंप ने यूक्रेन से शांति समझौते के प्रस्ताव को जल्दी स्वीकार करने का आग्रह किया || ईरान पर अमेरिका की सख्ती, आज नए प्रतिबंधों का किया ऐलान || BJP को 90 पर लीड, JDU को 80 पर लीड, महागठबंधन फेल || नीतीश कुमार CM हैं और आगे भी रहेंगे: जेडीयू की प्रतिक्रिया || NDA को शानदार बढ़त, 198 पर लीड जबकि महागठबंधन को 45 पर लीड || तुर्की : सैन्य विमान दुर्घटना में मृत सभी 20 सैनिकों के शव बरामद || RJD के एम एल सी सुनील सिंह का भड़काऊ बयान, DGP के आदेश पर FIR

The argument in favor of using filler text goes something like this: If you use any real content in the Consulting Process anytime you reach.

  • img
  • img
  • img
  • img
  • img
  • img

Get In Touch

जिसे जेल जाना था उसे मिली बेल, जिसे मिलनी थी बेल वो पहुंचा जेल: MP हाईकोर्ट की बड़ी चूक

स्टेट डेस्क, वेरोनिका राय |

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिसने न्यायालय प्रणाली की गंभीरता और मानवीय त्रुटि के खतरों को उजागर कर दिया। एक मामूली टाइपिंग गलती ने जमानत आदेश को इस तरह पलट दिया कि जिसे जेल में रहना था, वह बाहर आ गया और जिसे बेल मिलनी थी, उसका नाम आदेश में गलत दर्ज हो गया।

ग्वालियर पीठ के जस्टिस राजेश कुमार गुप्ता की अदालत में हत्या के आरोप में जेल में बंद पिता-पुत्र की जमानत अर्जी पर सुनवाई चल रही थी। 5 जुलाई 2023 को विदिशा जिले के त्योंदा कस्बे में दुकानदार प्रकाश पाल की पीट-पीटकर हत्या के शक में आरोपी हल्के और उनके बेटे अशोक को गिरफ्तार किया गया था। दोनों ने अलग-अलग जमानत अर्जियां दायर की थीं।

सुनवाई के बाद अदालत ने एक आदेश पारित किया—एक आरोपी की जमानत मंजूर की और दूसरे की अर्जी खारिज कर दी। लेकिन कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किए गए आदेश में दोनों आरोपियों के नाम आपस में बदल गए। इस तकनीकी चूक के कारण जिसका जमानत खारिज होना तय था, उसे जमानत मिल गई और सही आरोपी जेल में रहने के बावजूद बाहर जाने के आदेश के करीब पहुँच गया।

वेबसाइट पर उपलब्ध आदेश को सही मानते हुए हल्के के वकील अमीन खान ने बेल बांड भी जमा कर दिया और जेल अधिकारियों को रिहाई आदेश जारी कर दिया गया। कोर्ट परिसर में यह खबर फैलते ही हलचल मच गई। कुछ ही घंटों में अदालत कर्मचारियों को त्रुटि का अहसास हुआ और वकील को सूचित किया गया कि आदेश में गड़बड़ी है।

सोमवार को दोबारा सुनवाई के दौरान जस्टिस राजेश कुमार गुप्ता ने स्पष्ट किया कि यह पूरी गड़बड़ी एक टाइपिंग एरर के कारण हुई थी। अदालत ने पूर्व आदेश को तत्काल वापस लेते हुए नया आदेश जारी किया। संशोधित आदेश में साफ किया गया कि जिस आरोपी को जमानत मंजूर हुई थी, वही बाहर आएगा और जिसका आवेदन खारिज हुआ था, वह जेल में ही रहेगा।

यह घटना इस बात का उदाहरण है कि न्यायिक आदेशों में छोटी-सी तकनीकी चूक भी बड़े परिणाम दे सकती है। एक तरफ यह सवाल उठता है कि न्यायालय के आदेश अपलोड और सत्यापन की प्रक्रिया में कितनी सावधानी बरती जाती है। वहीं, यह भी साफ हुआ कि हाईकोर्ट ने गलती पकड़ते ही फौरन सुधारात्मक कार्रवाई कर न्यायिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बहाल किया।

प्रकाश पाल की हत्या के बाद इलाके में तनाव फैल गया था। पिता-पुत्र को स्थानीय पुलिस ने मुख्य आरोपी मानते हुए गिरफ्तार किया था। पुलिस का दावा है कि निजी रंजिश में यह हत्या की गई थी। मामले की सुनवाई जारी है, और अदालत का ताजा आदेश यह सुनिश्चित करता है कि गलत व्यक्ति को रिहाई न मिल पाए।

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की यह घटना इस बात की सीख देती है कि न्यायिक दस्तावेजों की तैयारी और प्रकाशन में मानवीय त्रुटि की गुंजाइश नहीं छोड़ी जानी चाहिए। भले ही गलती कुछ घंटों में सुधार ली गई, लेकिन यह एक ऐसा मामला है जिसने पूरे न्यायालय परिसर को हिला दिया और न्यायिक प्रक्रियाओं में अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत पर जोर दिया।