
नेशनल डेस्क, नीतीश कुमार |
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान को पराजित करने वाले सैनिकों से बातचीत के दौरान आश्वासन दिया कि मातृभूमि की रक्षा करने वाले प्रत्येक सैनिक का सम्मान और कल्याण सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है और सेनाओं को किसी संसाधन की कमी नहीं होने दी जाएगी। श्री सिंह ने 1965 की लड़ाई की 60वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में भाग लेते हुए कहा कि सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि सैनिकों को सम्मान के साथ-साथ प्रशिक्षण और उपकरणों के उन्नयन तक किसी भी तरह की कमी का सामना न करना पड़े।
उन्होंने कहा, "आज जब मैं अपने वेटरन्स के बीच हूँ, तो यह संकल्प दोहराता हूँ कि चाहे वह सेवारत सैनिक हों, वेटरन्स हों या शहीदों के परिवारजन, सबका सम्मान और कल्याण हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। सेनाओं के आधुनिकीकरण और उपकरणों के उन्नयन का उद्देश्य यही है कि हमारे जवान कभी किसी संसाधन की कमी महसूस न करें।"
इस अवसर पर 1965 के युद्ध के वीर चक्र से सम्मानित लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सतीश नाम्बियार, मेजर आर एस बेदी और अन्य पूर्व सैनिक भी मौजूद रहे।
रक्षा मंत्री ने कहा कि 1965 का युद्ध केवल एक साधारण संघर्ष नहीं था बल्कि भारत की शक्ति की परीक्षा थी। पाकिस्तान ने यह मान लिया था कि घुसपैठ और गुरिल्ला युद्ध से भारत को डराया जा सकता है, लेकिन उसे भारतीय सैनिकों की भावना और संकल्प का अंदाजा नहीं था। उन्होंने फिलौरा और चाविंडा की लड़ाइयों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान की हिम्मत तोड़ दी और यह सिद्ध कर दिया कि युद्ध टैंकों से नहीं, बल्कि हौसले और दृढ़ निश्चय से जीते जाते हैं।
श्री सिंह ने परमवीर चक्र विजेता अब्दुल हमीद का स्मरण करते हुए कहा कि उनकी वीरता ने यह सिखाया कि हथियारों से नहीं, बल्कि सैनिकों के दिल से असली साहस और रणकौशल का परिचय मिलता है। उन्होंने कहा कि उनकी बहादुरी हर भारतीय के सीने को गर्व से चौड़ा करती है।
उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की इच्छाशक्ति को याद करते हुए कहा कि युद्ध केवल रणभूमि में नहीं जीते जाते, बल्कि पूरे राष्ट्र के सामूहिक संकल्प से विजय मिलती है। शास्त्री जी के नेतृत्व ने उस कठिन समय में पूरे देश का मनोबल बढ़ाया और उनका दिया नारा "जय जवान, जय किसान" आज भी प्रेरणा देता है।
रक्षा मंत्री ने कहा कि स्वतंत्रता के बाद भारत ने पड़ोसियों से लगातार चुनौतियों का सामना किया, लेकिन देश ने इन्हें प्रारब्ध मानकर स्वीकार नहीं किया, बल्कि मेहनत से अपनी नियति का निर्माण किया। उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर में स्वदेशी हथियारों की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी राष्ट्र का वास्तविक भाग्य उसके खेतों, कारखानों, प्रयोगशालाओं और रणभूमि में बहाए गए पसीने से तय होता है।
उन्होंने कहा कि ऑपरेशन सिंदूर ने साबित किया है कि जीत अब भारत के लिए अपवाद नहीं, बल्कि आदत बन चुकी है, और इस आदत को हमें हमेशा बनाए रखना होगा।