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ट्रंप के H-1B वीजा फैसले से अमेरिका में हड़कंप

इंटरनेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

वाशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एच-1बी वीजा शुल्क को 100,000 डॉलर सालाना करने के फैसले ने अमेरिका में ही तूफान खड़ा कर दिया है। सांसदों, सामुदायिक नेताओं और टेक दिग्गजों ने इसे 'अमेरिकी नवाचार की हत्या' करार देते हुए विरोध शुरू कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे अमेरिकी आइटी उद्योग की रीढ़ टूट सकती है, जबकि भारत जैसे देशों के लिए यह हजारों पेशेवरों का अमेरिकी सपना चूर करने वाला झटका साबित होगा। ट्रंप प्रशासन का दावा है कि यह कदम अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करेगा, लेकिन आलोचक इसे अर्थव्यवस्था के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा बता रहे हैं।

अमेरिका में ही शुरू हो गया ट्रंप के फैसले का जबरदस्त विरोध

ट्रंप ने शुक्रवार को हस्ताक्षरित एग्जीक्यूटिव ऑर्डर से एच-1बी वीजा के लिए नया शुल्क लागू किया, जो रविवार रात 12 बजे से प्रभावी हो गया। यह शुल्क केवल नई आवेदनों पर लागू होगा, लेकिन मौजूदा वीजा धारकों को भी यात्रा प्रतिबंधों की आशंका से घेर लिया है। अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को ईमेल भेजकर विदेश यात्रा पर रोक लगाने की सलाह दी, क्योंकि वे अमेरिका लौटने में देरी का जोखिम नहीं लेना चाहतीं।

अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने इसे 'लापरवाह कदम' कहा, जो अमेरिकी कार्यबल को कमजोर करेगा। उन्होंने कहा, "एच-1बी वीजा धारकों ने अमेरिका में नवाचार को बढ़ावा दिया, लाखों नौकरियां पैदा कीं। ये लोग अमेरिकी नागरिक बने और कंपनियां खड़ी कीं, जो आज भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।" पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के सलाहकार अजय भुटोरिया ने चेतावनी दी कि इससे अमेरिका की तकनीकी प्रतिस्पर्धात्मकता को गहरा झटका लगेगा। कनाडा और यूरोप जैसे देश वैश्विक प्रतिभाओं को लुभा रहे हैं, जबकि अमेरिका खुद को अलग-थलग कर रहा है।

रिपब्लिकन नेताओं में भी फूट नजर आ रही है। एलन मस्क जैसे ट्रंप समर्थक, जो खुद एच-1बी वीजा पर आए थे, ने चुप्पी साध ली है, जबकि कुछ पूर्व अधिकारी इसे 'रणनीतिक आपदा' बता रहे हैं। व्हाइट हाउस का कहना है कि यह शुल्क विदेशी कंपनियों को अमेरिकी मजदूरों को प्राथमिकता देने के लिए मजबूर करेगा, लेकिन आलोचक पूछ रहे हैं कि क्या अमेरिका में इतने कुशल मजदूर तैयार हैं?

आइटी उद्योग पर पड़ेगा भयानक नकारात्मक असर, छोटी कंपनियां होंगी सबसे ज्यादा प्रभावित

ट्रंप का यह फैसला अमेरिकी आइटी सेक्टर के लिए विस्फोटक साबित हो सकता है। एच-1बी वीजा पर निर्भर 70% से ज्यादा भारतीय इंजीनियरों के बिना गूगल, एमेजॉन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियां ठप हो सकती हैं। 2025 की पहली छमाही में ही अमेजन को 12,000 से ज्यादा एच-1बी वीजा मिले थे, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा को 5,000-5,000। नया शुल्क लागू होने से स्टार्टअप्स और छोटी फर्मों पर बोझ बढ़ेगा, जो 2,000-5,000 डॉलर में विदेशी टैलेंट हायर करती थीं।

विशेषज्ञों के मुताबिक, इससे अमेरिकी कंपनियों का तकनीकी खर्च 20-30% बढ़ सकता है, जो अंततः उपभोक्ताओं पर महंगाई के रूप में लौटेगा। भुटोरिया ने कहा, "छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स तबाह हो जाएंगे। कनाडा और यूरोप को फायदा मिलेगा, जहां वीजा प्रक्रिया सस्ती और तेज है।" फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा के खांडेराव कंद ने चिंता जताई कि एआई और टैरिफ की मार से पहले ही जूझ रहा सॉफ्टवेयर उद्योग अब पूरी तरह ध्वस्त हो सकता है।

भारत के लिए यह और भी खतरनाक है। अमेरिकी बाजार से 60% कमाई करने वाली इंफोसिस, टीसीएस, विप्रो और एचसीएल जैसी कंपनियों पर अनिश्चितता का ग्रहण लग गया है। 200 अरब डॉलर के सॉफ्टवेयर निर्यात पर उल्टा असर पड़ेगा। नए सत्या नडेला या सुंदर पिचाई जैसे नेता उभरने का रास्ता बंद हो जाएगा, और हजारों भारतीय युवाओं का अमेरिकी सपना टूटेगा। नासकॉम ने कहा कि यह कदम परिवारों को बिखेर सकता है, क्योंकि वीजा धारक विदेश यात्रा से डरेंगे।

HIRE एक्ट से आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स का खतरा, भारतीय कंपनियों की बढ़ेगी लागत

ट्रंप के वीजा फैसले के साथ ही सीनेटर बर्नी मोरेनो द्वारा पेश HIRE एक्ट (हैल्टिंग इंटरनेशनल रिलोकेशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट एक्ट) ने भारतीय आइटी को दोहरी मार दी है। यह बिल अमेरिकी कंपनियों पर विदेशी आउटसोर्सिंग पेमेंट्स पर 25% एक्साइज टैक्स लगाने का प्रस्ताव करता है, जो जनवरी 2026 से लागू हो सकता है। टैक्स के अलावा, ये पेमेंट्स बिजनेस खर्च के रूप में कटौती योग्य नहीं होंगे, जिससे कुल लागत 46% तक बढ़ सकती है।

HIRE एक्ट का लक्ष्य 'आउटसोर्सिंग पेमेंट्स' हैं—यानी विदेशी फर्मों को दिए जाने वाले फीस, रॉयल्टी या सर्विस चार्ज, जिनका फायदा अमेरिकी उपभोक्ताओं को मिलता है। कॉल सेंटर्स, बैकऑफिस और सॉफ्टवेयर सर्विसेज इसका शिकार हो सकती हैं। राजस्व 'डोमेस्टिक वर्कफोर्स फंड' में जाएगा, जो अमेरिकी अप्रेंटिसशिप प्रोग्राम्स को मजबूत करेगा। मोरेनो ने कहा, "ग्लोबलिस्ट कंपनियां स्लेव वेजेस के चक्कर में अमेरिकी नौकरियां भेज रही हैं—यह अब बंद होगा।"

भारतीय आइटी फर्मों के लिए यह वीजा शुल्क से भी बुरा है। अमेरिकी क्लाइंट्स कॉन्ट्रैक्ट रिन्यू करने से हिचकिचाएंगे, प्रोजेक्ट्स स्थगित होंगे। एनालिस्ट्स का अनुमान है कि इससे डील साइज 15-20% घट सकती है। छोटी-मध्यम कंपनियां सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी, जो यूएस क्लाइंट्स पर 80% निर्भर हैं। भारत सरकार ने चिंता जताई है, लेकिन ट्रंप प्रशासन का रुख सख्त है।

ट्रंप प्रशासन का दावा: अमेरिकी मजदूरों को मिलेगा फायदा, विदेशी 'दोहन' रुकेगा

ट्रंप के वाणिज्य मंत्री हावर्ड लुटनिक ने शुल्क बढ़ोतरी का स्वागत किया। उन्होंने कहा, "कंपनियां खुश हैं, क्योंकि यह प्रक्रिया स्पष्ट और तेज होगी। हम चाहते हैं कि फर्म्स अमेरिकी यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट्स को हायर करें, न कि बाहर से सस्ते मजदूर लाएं।" लुटनिक ने एक्स पर पोस्ट किया, "हम ऐसे लोग लाएंगे जो देश के लिए बेशकीमती हों, वरना उन्हें जाना होगा।"

ट्रंप प्रशासन का कहना है कि एच-1बी प्रोग्राम का दुरुपयोग हो रहा था—विदेशी मजदूर कम वेतन पर अमेरिकियों की जगह ले रहे थे। नई पॉलिसी कंपनियों को अमेरिकी नागरिकों को प्राथमिकता देने के लिए बाध्य करेगी। साथ ही, 1 मिलियन डॉलर का 'गोल्ड कार्ड' वीजा अमीर विदेशियों के लिए पेश किया गया, जो ग्रीन कार्ड प्रोग्राम्स को रिप्लेस करेगा। लेकिन आलोचक इसे 'अमीरों के लिए खुला दरवाजा, गरीब टैलेंट के लिए बंद' बता रहे हैं।

HIRE एक्ट पर ट्रंप ने समर्थन जताया, कहा कि इससे विदेशी 'अर्थव्यवस्था का दोहन' रुकेगा। लेकिन लीगल एक्सपर्ट्स सवाल उठा रहे हैं कि क्या यह WTO नियमों का उल्लंघन है? डिजिटल सर्विसेज पर टैक्स मोरेटोरियम 2026 तक है।

भारतीय पेशेवरों में फैला डर, विकल्प तलाशने की हो रही कोशिशें

भारतीय आइटी इंजीनियरों में हड़कंप मच गया है। मेटा, गूगल और एमेजॉन में काम करने वाले हजारों H-1B धारक अब अनिश्चितता से जूझ रहे हैं। एक इंजीनियर ने कहा, "हमने अमेरिकी ड्रीम देखा, लेकिन अब परिवार बिखरने का डर है।" नासकॉम ने विदेश मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की।

कई फर्म्स अब कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप की ओर रुख कर रही हैं। लेकिन अमेरिकी बाजार का विकल्प आसान नहीं। ट्रंप के फैसले से न केवल रोजगार प्रभावित होंगे, बल्कि भारत-यूएस स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप पर भी सवाल उठेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि यह 'अमेरिका फर्स्ट' पॉलिसी का अतिरेक है, जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा।