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ट्रंप के वीज़ा बम से भारतीयों में मचा हड़कंप

विदेश डेस्क, ऋषि राज |

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा एच-1बी वीज़ा की आवेदन फीस को रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ाने के फैसले ने भारतीय आईटी पेशेवरों और छात्रों के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है। फीस में अचानक वृद्धि और भविष्य में वीज़ा नीति को और कड़ा करने के संकेतों ने भारतीय समुदाय को हिलाकर रख दिया है। इसके चलते बड़ी संख्या में भारतीयों ने अमेरिका की उड़ानों की टिकटें कैंसिल कर दी हैं और दूतावास की हेल्पलाइन पर लगातार कॉल्स आ रही हैं।

क्या है ट्रंप का नया फैसला?

डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा की आवेदन फीस को बढ़ाकर सालाना 1 लाख डॉलर यानी लगभग 88 लाख रुपये कर दिया है। अब तक यह फीस महज कुछ हजार डॉलर होती थी। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि यह कदम “अमेरिकी नौकरियों की रक्षा” के लिए उठाया गया है और इससे विदेशी श्रमिकों की संख्या कम होगी।

गौरतलब है कि एच-1बी वीज़ा का सबसे ज्यादा लाभ भारतीयों को मिलता है। हर साल इस वीज़ा के जरिए हजारों भारतीय आईटी पेशेवर अमेरिका जाकर नौकरी करते हैं। चीन इस सूची में दूसरे स्थान पर है।

भारतीयों में दहशत

फीस बढ़ोतरी की खबर के बाद अमेरिका में रह रहे और वहां जाने की तैयारी कर रहे भारतीय परिवारों में तनाव बढ़ गया है। आईटी कंपनियों के कई कर्मचारी, जो अक्टूबर में अमेरिका जाने वाले थे, उन्होंने अपनी टिकटें रद्द कर दीं। कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी चिंताएं व्यक्त करते हुए कहा कि अब अमेरिकी सपना और भी दूर हो गया है।

दिल्ली के नोएडा में काम कर रहे आईटी इंजीनियर विशाल ने कहा, “मैंने अमेरिका जाने के लिए सारी तैयारियां कर ली थीं। कंपनी ने मेरा ऑफर लेटर भी भेज दिया था। लेकिन अब फीस इतनी ज्यादा हो गई है कि जाना संभव नहीं दिख रहा। कई दोस्तों ने अपनी फ्लाइट भी कैंसिल कर दी है।”

दूतावास की पहल

इस पूरे मामले में भारतीय दूतावास भी सक्रिय हो गया है। वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास ने इमरजेंसी हेल्पलाइन नंबर जारी किया है ताकि वहां रह रहे या जाने वाले भारतीय सीधे अपनी समस्याएं बता सकें। दूतावास ने साफ किया है कि वह भारतीय छात्रों और पेशेवरों के हितों की रक्षा के लिए अमेरिकी सरकार के साथ बातचीत कर रहा है।

आईटी इंडस्ट्री पर असर

भारतीय आईटी कंपनियां, जो अपने कर्मचारियों को अमेरिका भेजकर प्रोजेक्ट्स संभालती हैं, अब बड़े संकट में हैं। उद्योग जगत का मानना है कि इतनी ऊंची फीस से कंपनियों पर भारी आर्थिक बोझ पड़ेगा और उनके लिए अमेरिका में प्रोजेक्ट्स चलाना मुश्किल हो जाएगा। नासकॉम ने बयान जारी कर कहा है कि यह कदम वैश्विक प्रतिभा के प्रवाह को रोक देगा और अमेरिकी कंपनियों को भी नुकसान होगा।

राजनीतिक हलचल

भारत सरकार ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारतीय पेशेवरों ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दिया है और इस तरह की नीतियां “दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों के लिए सही नहीं हैं।” सूत्रों के अनुसार, नई दिल्ली जल्द ही इस मामले पर औपचारिक विरोध दर्ज करा सकती है।

ट्रंप प्रशासन के इस फैसले से भारतीय आईटी सेक्टर, छात्रों और अमेरिका जाने की तैयारी कर रहे परिवारों पर सीधा असर पड़ा है। अचानक लागू की गई इस नीति से भारतीय समुदाय में अफरा-तफरी मच गई है। अब सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि भारत सरकार और अमेरिकी प्रशासन के बीच बातचीत से क्या कोई राहत निकल पाएगी।