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ट्रंप टैरिफ से अमेरिका भारत को खो सकता है: पश्चिमी मीडिया

विदेश डेस्क, ऋषि राज |

ट्रंप टैरिफ से अमेरिका भारत को खो सकता है, और अपनी विकास दर में भी नुकसान उठा सकता है : पश्चिमी मीडिया

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ लागू कर दिया है। यह निर्णय न केवल भारत-अमेरिका संबंधों में नया तनाव लेकर आया है, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है। पश्चिमी मीडिया ने अपने विश्लेषणों में चेतावनी दी है कि यह कदम अमेरिका को ही दीर्घकालिक आर्थिक नुकसान पहुँचा सकता है और साथ ही वह अपने सबसे अहम साझेदार भारत को खोने की कगार पर ला सकता है।

भारत पर टैरिफ का असर

भारत और अमेरिका का व्यापारिक रिश्ता दशकों से मजबूत रहा है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, खासकर टेक्सटाइल, फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग गुड्स, और आईटी सेवाओं के लिए। अमेरिका द्वारा 50% टैरिफ लगाए जाने से भारत के इन क्षेत्रों पर तगड़ा झटका लग सकता  है।

निर्यात में गिरावट 

भारतीय कंपनियों की अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा घटेगी और वे यूरोप, एशिया या अफ्रीका की ओर नए बाजार खोजने के लिए मजबूर होंगे।

  • नौकरी संकट : खासकर टेक्सटाइल और लघु उद्योग क्षेत्रों में लाखों नौकरियां खतरे में पड़ सकती हैं।
  • मुद्रास्फीति का असर : अमेरिकी आयात महंगा होने से भारत में भी कीमतों पर दबाव बढ़ेगा।

अमेरिका के लिए जोखिम

विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप का यह कदम अमेरिका के लिए भी “आर्थिक आत्मघात” जैसा है।

  1. भारतीय आईटी और फार्मा पर निर्भरता : अमेरिकी कंपनियां भारतीय सॉफ्टवेयर और दवाओं पर काफी हद तक निर्भर हैं। टैरिफ से इनकी लागत बढ़ेगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं को महंगे उत्पाद खरीदने पड़ेंगे।
  2. साझेदार खोने का खतरा : भारत को अब चीन, रूस और यूरोप जैसे विकल्प तलाशने का मौका मिलेगा। यदि भारत अपनी रणनीतिक साझेदारी अमेरिका से हटाकर एशिया-यूरोप की ओर मोड़ता है, तो यह अमेरिका के लिए बड़ा झटका होगा।
  3. विकास दर पर असर : अमेरिकी मीडिया का कहना है कि व्यापारिक युद्ध से अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर आधा प्रतिशत तक गिर सकती है।

राजनीतिक कारण

ट्रंप का यह टैरिफ केवल आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि इसके पीछे राजनीतिक कारण भी माने जा रहे हैं।

  • रूस से भारत के रिश्ते : भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में तेल आयात जारी रखा, जिससे अमेरिका असहज था।
  • पाकिस्तान संघर्षविराम : ट्रंप का मानना था कि भारत ने पाकिस्तान के साथ संघर्षविराम का श्रेय अमेरिका को नहीं दिया।

इन कारणों से वे भारत को “सख्त संदेश” देना चाहते थे।

पश्चिमी मीडिया की प्रतिक्रिया

अमेरिका और यूरोप के कई बड़े अखबारों और थिंक-टैंकों ने इस फैसले की आलोचना की है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा कि “भारत जैसे लोकतांत्रिक साझेदार पर इतनी बड़ी आर्थिक चोट करना रणनीतिक भूल है।”

फाइनेंशियल टाइम्स ने चेतावनी दी कि “भारत को अलग-थलग करने से एशिया में चीन को और ज्यादा रणनीतिक लाभ मिलेगा।”

वॉशिंगटन पोस्ट का विश्लेषण है कि “50% टैरिफ अमेरिका के उपभोक्ताओं के लिए महंगाई बढ़ाएगा और अमेरिकी उद्योग को नुकसान देगा।”

भारत की प्रतिक्रिया

भारत सरकार ने इस कदम को “अनुचित और अप्रत्याशित” करार दिया है। विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत अमेरिका से संवाद की कोशिश करेगा, लेकिन यदि समाधान नहीं निकला तो वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। साथ ही, भारत अपने निर्यातकों के लिए नए बाजार खोलने पर भी तेजी से काम कर रहा है।

वैश्विक असर

यह टैरिफ विवाद केवल द्विपक्षीय संबंधों तक सीमित नहीं रहेगा।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर दबाव : फार्मा और आईटी सेक्टर में खलल आने से पूरी दुनिया प्रभावित होगी।

  • चीन को फायदा : भारत और अमेरिका के बीच खटास से चीन को व्यापारिक और कूटनीतिक दोनों ही स्तर पर लाभ होगा।
  • उभरते गठबंधन : यूरोप, जापान और दक्षिण-पूर्व एशिया के देश भारत के साथ सहयोग बढ़ा सकते हैं, जिससे अमेरिका वैश्विक रणनीतिक संतुलन में कमजोर हो सकता है।

ट्रंप का यह टैरिफ भारत के लिए गंभीर चुनौती है, लेकिन दीर्घकाल में अमेरिका के लिए भी नुकसानदेह साबित हो सकता है। पश्चिमी मीडिया का विश्लेषण साफ संकेत देता है कि यदि यह टैरिफ लंबे समय तक जारी रहा तो अमेरिका न केवल भारत जैसे साझेदार को खो देगा, बल्कि अपनी आर्थिक विकास दर को भी गिरावट की ओर धकेल देगा।