
विदेश डेस्क, ऋषि राज |
ब्राजील और भारत इस समय दुनिया के ऐसे दो बड़े देश हैं जो अमेरिका की भारी-भरकम टैरिफ नीति का सामना कर रहे हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लिए गए फैसलों को लेकर ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा ने खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर की है। उन्होंने साफ कहा कि ट्रंप के साथ उनका किसी भी तरह का संबंध नहीं है और वे उनके फैसलों से बेहद असहमत हैं।
दरअसल, ट्रंप प्रशासन ने भारत और ब्राजील पर बड़े पैमाने पर टैरिफ लगाए थे। शुरुआत में भारत पर 25% शुल्क लगाया गया और बाद में 25% अतिरिक्त टैक्स जोड़कर कुल 50% टैरिफ लागू कर दिया गया। यही नहीं, भारत पर रूसी तेल की खरीद को लेकर जुर्माना भी ठोंका गया था। इसी तरह ब्राजील पर भी ट्रंप ने 50% टैरिफ लगाया, जिससे दोनों देशों के लिए अमेरिका के साथ व्यापार करना बेहद महंगा हो गया।
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने कहा कि यह किसी भी तरह से सहयोगी देशों के बीच स्वस्थ रिश्तों का तरीका नहीं है। उन्होंने नाराजगी जताते हुए कहा कि उन्हें टैरिफ के फैसले की जानकारी अखबारों से मिली, जबकि सामान्य तौर पर ऐसे मामलों में देशों के बीच बातचीत होती है। लूला का कहना है कि ट्रंप प्रशासन के लोग किसी तरह की बातचीत करने को तैयार ही नहीं थे।
लूला ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “मेरे ट्रंप से कोई संबंध नहीं हैं, क्योंकि जब वे पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे, तब मैं ब्राजील का राष्ट्रपति नहीं था। ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति हो सकते हैं, लेकिन दुनिया के सम्राट नहीं हैं।”
उन्होंने आगे कहा कि ट्रंप ने सोशल मीडिया पर टैरिफ संबंधी घोषणाएँ कीं, जो किसी भी तरह से कूटनीतिक शिष्टाचार का हिस्सा नहीं माना जा सकता। अंतरराष्ट्रीय व्यापार के इतने गंभीर मामलों में ट्वीट या पोस्ट करना उचित नहीं है।
ब्राजील और भारत दोनों देशों के लिए इन टैरिफों का असर सीधा अर्थव्यवस्था और व्यापारिक रिश्तों पर पड़ा है। भारत और ब्राजील जैसे उभरते बाजारों के लिए अमेरिका एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, लेकिन टैरिफ की वजह से दोनों देशों की निर्यात लागत बढ़ गई और कंपनियों को अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा करना कठिन हो गया।
लूला ने चेतावनी दी कि टैरिफ के चलते अमेरिका की छवि सहयोगी की बजाय एक राजनीतिक दुश्मन के रूप में बन रही है। खास बात यह है कि भारत और ब्राजील दोनों ही देश अब विकल्प तलाश रहे हैं, ताकि अमेरिका पर अपनी निर्भरता को कम कर सकें।
ट्रंप प्रशासन के इस फैसले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक नई बहस को जन्म दिया है कि क्या बड़ी अर्थव्यवस्थाएं छोटे और मध्यम देशों पर दबाव डालकर वैश्विक व्यापार संतुलन बिगाड़ रही हैं।