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ट्रांसजेंडर शिक्षिका बर्खास्तगी पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

नेशनल डेस्क, मुस्कान कुमारी |

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर अधिकारों पर एक महत्वपूर्ण फैसले में, एक ट्रांसवुमन शिक्षिका को उनकी जेंडर आइडेंटिटी के आधार पर दो निजी स्कूलों से बर्खास्त किए जाने पर मुआवजा प्रदान किया है। अदालत ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक समिति का गठन भी किया है, जो समान अवसर नीति तैयार करेगी। यह फैसला उत्तर प्रदेश और गुजरात के दो स्कूलों से जुड़े मामले में आया, जहां शिक्षिका की सेवाएं एक साल के भीतर समाप्त कर दी गईं।

जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अदालत ने केंद्र सरकार को नीति दस्तावेज तैयार करने तक अंतरिम दिशानिर्देश जारी किए हैं। "हमने दिशानिर्देश तैयार किए हैं ताकि सरकार की नीति आने तक इनका पालन किया जाए," जस्टिस परदीवाला ने कहा। उन्होंने जोर दिया कि शिक्षिका के साथ हुए व्यवहार पर गंभीर संज्ञान लिया गया है।

शिक्षिका की दर्दनाक कहानी: दो स्कूलों से बर्खास्तगी

याचिकाकर्ता जेन कौशिक, जो एक ट्रांसवुमन हैं, ने अपनी याचिका में बताया कि उनकी जेंडर आइडेंटिटी सामने आने के बाद उत्तर प्रदेश के एक निजी स्कूल ने उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। उसके बाद गुजरात के दूसरे स्कूल में भी यही हुआ। दोनों मामलों में बर्खास्तगी का आधार उनकी ट्रांसजेंडर पहचान थी। अदालत ने इस भेदभाव को गंभीर मानते हुए मुआवजे का आदेश दिया। "यह मामला ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है," विशेषज्ञों का मानना है।

अदालत ने कहा कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मिलने चाहिए, जैसा कि 2014 के नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में तय किया गया था। उस फैसले में ट्रांसजेंडर को तीसरे जेंडर के रूप में मान्यता दी गई थी। 2019 में ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट लागू होने के बावजूद, भेदभाव के मामले सामने आ रहे हैं।

समिति का गठन: ट्रांसजेंडर अधिकारों की मजबूती

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट की रिटायर्ड जस्टिस आशा मेनन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है। समिति ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए समान अवसर नीति तैयार करेगी। सदस्यों में शामिल हैं- कर्नाटक की ट्रांसराइट्स एक्टिविस्ट अकाई पद्मशाली, दलित और ट्रांस राइट्स एक्टिविस्ट ग्रेस बानू, तेलंगाना की व्यजयंती वसंत मोगली, जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर गौरव मंडल, सेंटर फॉर लॉ एंड पॉलिसी की सीनियर एसोसिएट नित्या राजशेखर, और एसोसिएशन फॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ इन इंडिया के रिटायर्ड सीईओ डॉ. संजय शर्मा।

एक्स ऑफिशियो सदस्यों में सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय के सचिव, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव, और शिक्षा मंत्रालय के सचिव शामिल हैं। समिति का कार्यक्षेत्र व्यापक है, जिसमें ट्रांसजेंडर पर्सन्स एक्ट 2019 और 2020 के नियमों का अध्ययन, उचित सुविधाएं, शिकायत निवारण तंत्र, जेंडर और नाम बदलने की प्रक्रिया, ट्रांसजेंडर और जेंडर डायवर्स व्यक्तियों के लिए समावेशी चिकित्सा देखभाल, और जेंडर नॉन-कन्फॉर्मिंग व्यक्तियों की सुरक्षा शामिल है।

ट्रांसजेंडर अधिकारों का ऐतिहासिक संदर्भ

यह फैसला ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए बड़ी जीत है, क्योंकि यह भेदभाव के खिलाफ ठोस कदम उठाता है। अदालत ने कहा कि इन दिशानिर्देशों से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा में मदद मिलेगी। जस्टिस परदीवाला ने फैसला सुनाते हुए उम्मीद जताई कि ये दिशानिर्देश भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों को मजबूत करने में लंबा रास्ता तय करेंगे।

मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों से ट्रांसजेंडर नीतियों पर रिपोर्ट मांगी थी। याचिका में उठाए गए मुद्दों ने ट्रांसजेंडर समुदाय की चुनौतियों को उजागर किया, जैसे रोजगार में भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार।

समान अवसरों की दिशा में कदम

समिति को समान अवसर नीति तैयार करने का जिम्मा सौंपा गया है, जो ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मुख्यधारा में लाने में मदद करेगी। अदालत ने कहा कि जब तक सरकार अपनी नीति नहीं लाती, तब तक ये दिशानिर्देश सभी संस्थानों पर लागू होंगे। यह फैसला अन्य समान मामलों के लिए नजीर बन सकता है।

ट्रांसजेंडर एक्ट के तहत जारी नियमों का अध्ययन समिति का प्रमुख कार्य है। इसके अलावा, उचित सुविधाएं प्रदान करना, जैसे कार्यस्थलों में ट्रांसजेंडर-अनुकूल वातावरण, भी शामिल है। शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करने पर जोर दिया गया है, ताकि भेदभाव के मामलों में त्वरित न्याय मिले।

जेंडर और नाम बदलने की प्रक्रिया को सरल बनाने के निर्देश दिए गए हैं। ट्रांसजेंडर और जेंडर डायवर्स व्यक्तियों के लिए समावेशी चिकित्सा देखभाल सुनिश्चित करने का भी आदेश है। जेंडर नॉन-कन्फॉर्मिंग व्यक्तियों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी गई है। यह फैसला ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए उम्मीद की किरण है, जो लंबे समय से भेदभाव का शिकार रहा है। अदालत का यह कदम समाज में समावेशिता को बढ़ावा देगा।mकेस डिटेल्स: जेन कौशिक बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स, डब्ल्यूपी(सी) नंबर 1405/2023।