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नेपाल में प्रदर्शनकारियों ने पूर्व PM कोइराला की मूर्ति तोड़ी

विदेश डेस्क, ऋषि राज |

नेपाल में प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की मूर्ति तोड़ी, तनाव बढ़ा

नेपाल में राजनीतिक असंतोष और विरोध प्रदर्शन अब हिंसक रूप ले चुके हैं। राजधानी काठमांडू सहित कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री गिरिजा प्रसाद कोइराला की मूर्ति को तोड़ दिया। यह घटना देश में बढ़ते असंतोष और राजनीतिक ध्रुवीकरण का संकेत मानी जा रही है।

गिरिजा प्रसाद कोइराला नेपाल के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते थे। वे लोकतंत्र के समर्थक और कई बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। उनकी मूर्ति को तोड़ने की घटना ने राजनीतिक दलों, नागरिकों और इतिहास प्रेमियों के बीच गहरी प्रतिक्रिया उत्पन्न कर दी है। कई लोगों ने इसे राष्ट्र की विरासत और लोकतांत्रिक संघर्ष का अपमान बताया। वहीं कुछ उग्रवादी समूहों ने इसे राजनीतिक विरोध का प्रतीक बताते हुए समर्थन भी किया।

मूर्तिभंजन की घटना उस समय हुई जब देश में सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज हो गए। महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं को लेकर जनता में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। युवा वर्ग सोशल मीडिया के माध्यम से प्रदर्शन को व्यापक बना रहा है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि लंबे समय से चली आ रही राजनीतिक असमानताओं और नेताओं की विफलताओं के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है।

नेपाल पुलिस ने घटना के बाद क्षेत्र में सुरक्षा बढ़ा दी है। अधिकारियों का कहना है कि हिंसक गतिविधियों में शामिल लोगों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, सरकार ने नागरिकों से संयम बनाए रखने और शांति की अपील की है।

विपक्षी नेताओं ने कहा कि यह घटना सरकार की विफलता का परिणाम है। उनका आरोप है कि जनता की आवाज़ दबाई जा रही है, जिसके कारण लोग आक्रोशित होकर हिंसक कदम उठा रहे हैं। वहीं, सत्तारूढ़ दल ने कहा कि प्रदर्शनकारियों की हिंसा से देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को नुकसान हो रहा है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नेपाल में बढ़ते असंतोष की जड़ आर्थिक संकट और प्रशासनिक भ्रष्टाचार में है। लंबे समय से चली आ रही समस्याओं ने जनता को निराश कर दिया है। यदि हालात ऐसे ही बने रहे तो देश में राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा का खतरा बढ़ सकता है।

गिरिजा प्रसाद कोइराला की मूर्ति का तोड़ा जाना नेपाल के राजनीतिक इतिहास में एक संवेदनशील घटना बन गया है। इससे न केवल नेताओं की आलोचना हो रही है, बल्कि आम नागरिकों में भी असंतोष की लहर फैल रही है।